- नेपाल में बीते दिनों भारतीय सेना में महिलाओं की भर्ती का मुद्दा छाया रहा
- सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे लेकर तरह-तरह के रिएक्शन दिए हैं
- नेपाल सरकार ने भी इससे इनकार किया उसे इस बारे में कोई जानकारी है
काठमांडू: नेपाल में सोशल मीडिया पर बीते कुछ दिनों से गोरखा महिलाओं की भारतीय सेना में भर्ती का मुद्दा छाया हुआ है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे लेकर हैरानी जताई कि इस बारे में नेपाल सरकार को जानकारी है भी या नहीं। इस मामले ने ऐसे समय में तूल पकड़ा है, जब यहां पहले ही भारतीय सेना में गोरखा युवाओं की भर्ती को लेकर असंतोष की आवाजें उठी हैं।
भारतीय सेना में नेपाली महिलाओं की भर्ती से जुड़ा ताजा विवाद काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास के वेलफेयर ब्रांच के उस विज्ञापन के बाद शुरू हुआ, जिसमें पात्र नेपाली महिलाओं के लिए भारतीय सेना में भर्ती को लेकर ऑनलाइन आवेदन मांगा गया। इसे भारतीय सेना ने पहली बार नेपाली महिलाओं के लिए रास्ता खुलने के तौर देखा गया। लेकिन नेपाल में इस बात को लेकर असंतोष भड़क गया।
नेपाल में विज्ञापन पर बवाल
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने सवाल किए कि इसकी जानकारी नेपाल सरकार को है भी नहीं। बढ़ते विवाद के बीच नेपाल सरकार ने कहा कि उसे इसकी कोई जानकारी नहीं है। नेपाल के शीर्ष नेताओं ने इसे भारत और नेपाल के बीच हुए समझौते का उल्लंघन बताया। हालांकि कुछ लोगों ने इसे नेपाली महिलाओं के लिए रोजगार के एक अवसर के तौर पर भी देखा।
मामले को लेकर बढ़ते विवाद के बीच भारतीय सेना ने बाद में स्पष्ट किया कि ये नौकरियां नेपाली महिलाओं के लिए नहीं हैं। नौकरी के आवेदन में संशोधन भी किया गया।
भारत-नेपाल-बिटेन समझौता
यहां उल्लेखनीय है कि भारत-ब्रिटेन और नेपाल के बीच हुए एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत भारतीय सेना में नेपाली मूल के युवाओं की भर्ती होती रही है। लेकिन इसके तहत महिलाओं की नियुक्ति अब तक नहीं हुई है। भारतीय सेना में नेपाली मूल के गोरखा युवाओं की भर्ती की व्यवस्था 1815 से ही चली आ रही है, जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य का एक उपनिवेश था।
वर्ष 1947 में ब्रिटिश उपनिवेश से भारत की आजादी के बाद इसे लेकर भारत-ब्रिटेन और नेपाल के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। लेकिन जुलाई 2020 में जब भारत और नेपाल के बीच देश के नक्शे को लेकर विवाद गहराया तो नेपाल ने इस समझौते के कई प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए थे। नेपाल के आम लोगों में भी ऐसी भावना उफान पर रही कि गोरखा युवाओं को भारतीय सेना में भर्ती नहीं होना चाहिए।
गोरखा सैनिकों पर विवाद
इस विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब कोरोना काल में घर लौटे हजारों गोरखा सैनिकों को वापस ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए कहा गया। नेपाली लोगों में तब यह भावना आम रही कि भारत इन गोरखा सैनिकों को चीन के खिलाफ तैनात करता है और चूंकि नेपाल के चीन से अच्छे रिश्ते हैं, इसलिए इन सैनिकों को ड्यूटी नहीं ज्वाइन करनी चाहिए। नेपाल ने ब्रिटेन से भी 1947 में हुई त्रिपक्षीय संधि की समीक्षा करने के लिए कहा था।
हालांकि इस साल जनवरी में जब नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली भारत दौरे पर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि गोरखा रेजीमेंट में नेपालियों का जुड़ना जारी रहेगा और इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा। उनके इस बयान के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया था, जो अब एक बार फिर भारतीय सेना में नेपाली महिलाओं की भर्ती को लेकर गर्म हो गया है। हालांकि सेना इसमें संशोधन कर चुकी है।
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