तेल अवीव : हाल ही में ईरान के परमाणु संयंत्र नतांज पर साइबर अटैक की खबर सामने आई है, जिससे वहां बिजली आपूर्ति व्यवस्था बुरी तरह तबाह हो गई। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है। ईरान को हुई इस भारी नुकसान के लिए इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद को जिम्मेदार समझा जा रहा है, जो पहले ही दुनिया में 'किलिंग मशीन' के नाम से मशहूर है।
मोसाद की गिनती दुनिया की सबसे सबसे तेज तर्रार और खतरनाक खुफिया एजेंसी के तौर की जाती है और ऐसा कहा जाता है कि अपने दुश्मनों को तबाह करने के लिए यह किसी भी हद तक जा सकती है। इसके एजेंट्स दुनियाभर में फैले हैं, जो अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। इनमें पुरुष ही नहीं महिलाएं भी होती हैं, जो अपनी खूबसूरती के झांसे में लेकर अपना काम निकाल लेती हैं।
महिलाएं भी करती हैं जासूसी
ऐसी ही एक महिला जासूस की कहानी 1980 के दशक में सामने आई थी, जिसने 'सिंडी' के फर्जी नाम से उस शख्स की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके पास इसराइल के गोपनीय परमाणु कार्यक्रम की जानकारी थी और एक व्हिसलब्लोअर के तौर पर उसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को इस बारे में जानकारी भी दी। उस शख्स का नाम मौर्डेखाई वनुनु था, जो 1976 से 1985 तक इसराइली परमाणु कार्यक्रम से जुड़े थे।
मोसाद के ऐसे कई किस्से मशहूर हैं, जिससे जाहिर होता है कि अपने दुश्मनों को नेस्ताबूद करने के लिए यह किसी भी हद तक जा सकती है। दुश्मनों के खात्मे के लिए यह कार बम, नकली पासपोर्ट से लेकर फोन बम, जहर की सूई तक का इस्तेमाल करती है। कोई एक बार अगर उसकी नजर में आ जाए तो फिर उसका बच पाना बेहद मुश्किल होता है, भले ही वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो।
दो दशकों तक चला था ये ऑपरेशन
इजरायली खुफिया एजेंसी के ऐसे कई ऑपरेशन हैं, जो बताते हैं कि ये कितनी खतरनाक है। ऐसे ही ऑपरेशंस में से एक 'रैथ ऑफ गॉड' की चर्चा होती है, जिसके तहत इजरायली एजेंट्स ने लगभग 20 वर्षों तक दुनियाभर में घूम-घूम उन आतंकियों को मार डाला, जिन्हें 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में हिस्सा लेने गए 11 खिलाड़ियों को होटल में मार देने का जिम्मेदार समझा गया। इसका आरोप फिलीस्तीनी आतंकी संगठनों पर लगा था।
इस वारदात ने इजरायली सरकार को गुस्से से भर दिया था। ऑपरेशन के लिए योजना बनाई गई, जिसकी हिट लिस्ट में 11 लोग थे। मोसाद के एजेंट्स ने फोन बम, नकली पासपोर्ट, जहर की सुई, इन सब का इस्तेमाल करते हुए चुन-चुनकर उन लोगों को मारा, जो इजरायली खिलाड़ियों की हत्या के लिए जिम्मेदार थे। इस दौरान उन्होंने कई देशों में प्रोटोकॉल तोड़ा तो अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वे मध्य-पूर्व के कई देशों की सुरक्षा एजेंसियों में भी घुस गए थे।
अपराधियों के परिवार को भेजते थे बुके
बताया जाता है कि मोसाद जा यह ऑपरेशन करीब 20 वर्षों तक चला था और हर टारगेट को वे 11 गोलियां उन 11 खिलाड़ियों की तरफ से मारते थे, जिनकी 1972 में हत्या कर दी गई थी। इतना ही नहीं, अपने टारगेट को खत्म करने के बाद मोसाद की तरफ से उनके परिवारवालों को बुके के साथ एक संदेश भी भेजा जाता था, जिसमें लिखा होता था, 'यह याद दिलाने के लिए हम न भूलते हैं, न माफ करते हैं।'
मोसाद के ऐसे और भी कई किस्से हैं, जो बताते हैं कि इसके एजेंट्स किस कदर प्रशिक्षित और अपने इरादों को लेकर मजबूत होते हैं। हालांकि इजरायली एजेंट्स की कई मौकों पर आलोचना भी होती रही है, लेकिन इन सबसे उनकी नीतियों में कोई खास बदलाव नहीं आया। इजरायल के हितों की रक्षा करना ही इसका सर्वोच्च लक्ष्य होता है और जिस किसी से भी इजरायली हितों को खतरा उन्हें नजर आता है, वे उसका चुन-चुनकर खात्मा करते हैं।
दिसंबर 1949 में हुई थी स्थापना
इसका मकसद महज किसी वारदात के लिए जिम्मेदार शख्स की जान लेकर उसे सजा देना नहीं होता, बल्कि मोसाद इसके जरिये एक तरह का खौफ पैदा करती है और यह संदेश देने का प्रयास करती है कि कोई भी उससे पंगा न ले। इसकी स्थापना 13 दिसंबर, 1949 को इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन-गूरियन की सलाह पर की गई थी, जिसका मुख्यालय इजरायल के तेल अवीव शहर में है।