- 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का कब्जा हो गया।
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान का स्वागत किया।
- लेकिन अफगानिस्तान के लोग तालिबान के भय से देश छोड़कर जाना चाहते हैं।
तालिबान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है। तालिबान लड़ाके का एक बड़ा समूह राजधानी काबुल में स्थित राष्ट्रपति भवन के भीतर घुस गया है। यानी अब अफगानिस्तान पर तालिबान राज हो गया है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी रविवार को देश छोड़कर चले गए। 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से निकलने के कुछ ही दिनों के भीतर करीब पूरे देश पर फिर से तालिबान का कब्जा हो गया है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान का स्वागत किया। और उन्होंने कहा कि तालिबान ने मानसिक गुलामी को तोड़ा।
रविवार की शुरुआत तालिबान द्वारा पास के जलालाबाद शहर पर कब्जा करने के साथ हुई। जो राजधानी के अलावा वह आखिरी प्रमुख शहर था जो उनके हाथ में नहीं था। अफगान अधिकारियों ने कहा कि आतंकवादियों ने मैदान वर्दक, खोस्त, कपिसा और परवान प्रांतों की राजधानियों के साथ-साथ देश की सरकार के कब्जे वाली आखिरी सीमा पर भी कब्जा कर लिया। बाद में बगराम हवाई ठिकाने पर तैनात सुरक्षा बलों ने तालिबान के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। वहां एक जेल में करीब 5,000 कैदी बंद हैं। बगराम के जिला प्रमुख दरवेश रऊफी ने कहा कि इस आत्मसमर्पण से एक समय का अमेरिकी ठिकाना तालिबान लड़ाकों के हाथों में चला गया। जेल में तालिबान और इस्लामिक स्टेट समूह, दोनों के लड़ाके हैं।
तालिबान के भय से देश छोड़कर जाना चाहते हैं अफगानिस्तान के लोग
उधर अफगानिस्तान के लोग तालिबान के भय से देश छोड़कर जाना चाहते हैं कि तालिबान उस क्रूर शासन को फिर से लागू कर सकता है जिसमें महिलाओं के अधिकार खत्म हो जाएंगे। नागरिक अपने जीवन भर की बचत को निकालने के लिए कैश मशीनों के बाहर खड़े हो गए। वहीं काबुल में अधिक सुरक्षित माहौल के लिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपने घरों को छोड़कर आये हजारों की संख्या में आम लोग पूरे शहर में उद्यानों और खुले स्थानों में शरण लिये हुए दिखे।
तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका और नाटो ने खर्च किए अरबों डॉलर
अफगानिस्तान में करीब दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह में करीब पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। कुछ ही दिन पहले, एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा।
9/11 के बाद तालिबान के खिलाफ अमेरिका ने छेड़ी थी जंग
काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था। ओसामा को तब तालिबान सरकार द्वारा आश्रय दिया गया था। एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। हालांकि इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग हो गया।
तालिबान के खिलाफ युद्ध से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था अमेरिका
अमेरिका वर्षों से, युद्ध से बाहर निकलने को प्रयासरत है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में वाशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो विद्रोहियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है। इसने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी। वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा की।