- पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के कारण 1990 के दशक में हजारों की संख्या में लोगों ने पलायन किया था
- स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ ने इतने बड़े पलायन पर भी 'दुनिया के नेताओं के' चुप्पी साधे रखने पर सवाल उठाए
- उन्होंने अनुच्छेद 370 के अहम प्रावधानों को निरस्त करने के भारत के फैसले को भी जायज ठहराया
वाशिंगटन : कश्मीर में चरमपंथी हिंसा के कारण 1990 के दशक में बड़ी संख्या में लोगों ने घाटी से पलायन किया, जिसकी टीस आज भी उनके दिलों में है। इसका जिक्र वे गाहे-बगाहे करते रहे हैं। अब कश्मीर में उसी खूनी हालात को स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभारा है। अमेरिकी कांग्रेस में मानवाधिकार पर एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा कि आज इस्लामिक स्टेट के जिस खौफ व खतरे को पश्चिमी दुनिया महसूस कर रही है, उस तरह की क्रूरता कश्मीर में लोग करीब तीन दशक पहले भुगत चुके हैं।
उन्होंने बताया कि किस तरह जब घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू किया तो आतंकियों ने सिर्फ इसलिए लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि उनकी धार्मिक आस्था अलग थी। उन्होंने उन खौफनाक वारदातों का भी जिक्र किया, जिसे तब आतंकियों ने अंजाम दिया था। आतंकियों के खौफ से उनका हर पल डर के साये में बीत रहा था। लोगों का कत्ल किया जा रहा था, उनके घर जलाए जा रहे थे। ऐसे में उनके पास जान बचाने का एक ही विकल्प था कि वे अपनी धरती छोड़ दें।
कश्मीर में 1989 के बाद बढ़ते आतंकवाद के कारण हजारों की तादाद में लोगों ने अपना घरबार छोड़ दिया था और सिर्फ जान बचाकर वहां से निकले। इनमें कश्मीरी पंडितों की संख्या सबसे ज्यादा रही। सुनंदा ने अमेरिकी कांग्रेस के सम्मेलन के दौरान इस बड़े पलायन पर भी 'दुनिया के नेताओं के' चुप्पी साधे रखने पर सवाल उठाए। उन्होंने यह भी कहा कि 'कश्मीर के बगैर कोई भारत नहीं और भारत के बगैर कोई कश्मीर नहीं है।'
उन्होंने कहा कि भारत ने कश्मीर पर कोई कब्जा नहीं किया है और न ही इसकी पहचान आजादी के बाद के सात दशकों से है, बल्कि यह 5,000 पुरानी सभ्यता है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अहम प्रावधानों को निरस्त करने के भारत के फैसले को भी जायज ठहराया और इसे कश्मीर में चरमपंथ से निपटने के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि इससे क्षेत्र में मानवाधिकारों की समस्याओं से निपटने में भी मदद मिलेगी।