भारतीय फ्रंट कंपनियों के साथ EV के बढ़ते बाजार में घुसने की कोशिश करने वाली चीनी ऑटो कंपनियों पर सरकार की नजर - सरकार सख़्त
दुनियाभर को साफ नजर आ रहा है कि भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन मार्केट किस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है और जम्मू में मिले लिथियम के भंडार से यहां संभावनाएं और भी बढ़ गई हैं। यहां हम आपको बता रहे हैं कि देश के ईवी मार्केट पर अब चीन कैसे सेंध लगा रहा है।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन मार्केट बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- भारत के ईवी मार्केट पर चीन की नजर
- इस सैक्टर में यूं सेंध लगा रहा ड्रैगन
- जम्मू में मिला है लिथियम का भंडार
China Trying To Capture Indian EV Market: देश में बढ़ते इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाजार पर दुनियाभर की कार निर्माताओं की नज़र है ऐसे में चीन की बड़ी कार निर्माता कंपनियां बैक चैनल से भारत के बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए यहाँ की कंपनियों से स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप का रास्ता अपना रही हैं। जिससे भारत के बढ़ते बाज़ार में अपना माल बेचा जा सके। खासकर गाड़ियों में लगने वाली बैटरी। सूत्रों की मानें में चीन की दो बड़ी कार कंपनियाँ स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप के साथ भारत के बाजार में बड़े पैमानें पर आने की तैयारी कर रही है, हालांकि अभी तक इस पार्टनरशिप डील पर अधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं आया हैं पर सूत्रों की मानें तो दोनों की डील अंतिम चरण में है|
बैटरी निर्माण; मेक इन इंडिया
इधर केन्द्र सरकार की सूत्रों की मानें तो सरकार पहले ही साफ कर चुकी हैं कि EV सेक्टर में कार से लेकर बैटरी निर्माण का काम लोकल मैन्युफैक्चरिंग की जाए। जिससे ना केवल मेक इन इंडिया योजना को बढ़ावा मिले बल्कि इस पूरे सेक्टर की निर्भरता के लिए किसी ऐसे पड़ोसी देश पर ना रहना पड़े जिससे भारत के सम्बंध बेहतर ना हो। वही ईवी के लिए सबसे जरूरीलिथियम बैटरी जैसे महत्वपूर्ण कॉम्पोनेन्ट के लिए चीन पर निर्भर रहना भारत के लिए आर्थिक और कूटनीति दोनों तरह से ठीक नहीं है।
लिथियम भंडार के बाद सरकार को उम्मीद
इधर जम्मू के रियासी जिले में मिले लिथियम भंडार के बाद सरकार को उम्मीद है कि ईवी के बढ़ते बाज़ार में बैटरी की मांग को पूरा करने में हमे बाहर से लिथियम इम्पोर्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देश में मौजूदा भंडार काफी है मांग को पूरा करने के लिए।
स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप के साथ आने की योजन
गौरतलब है कि साल 2020 में सरकार के द्वारा चीनी कंपनियों पर की पाबंदियां इनके लिए एक बड़ी परेशानी बनकर सामने आ गई। ऐसे में इन प्रतिबंधों से बचने के लिए कुछ चीनी ऑटो कंपनियां भारतीय कम्पनियों के साथ स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप के साथ आने की योजना बना रही हैं। सरकार का रुख़ साफ़ है की कोई भी भारतीय कंपनी अगर चीन का फ्रंट बनेगी तो उसपे सख़्त करवाई करी जाएगी। सरकार को पता है कि इस तरह की साझेदारी भारतीय ऑटो सेक्टर को ईवी में बदलने के लिए सरकार की प्रयास में बाधा बन सकता है वही मेक इन इंडिया नहीं बल्कि ईवी सेक्टर की निर्भरता चीनी कंपनियों पर होगा। ना कि भारतीय मैन्युफैक्चरिंग पर।
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16 साल का अनुभव, राजनीति, पॉलिसी, पार्लियामेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर मामले में लिखता हूँ। एन्वॉयरमेंट से ...और देखें
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