सूरजमुखी तेल के दाम बढ़ने से बीते सप्ताह सभी तेल तिलहनों में मजबूती
Edible Oil Price: समीक्षाधीन सप्ताह के पिछले सप्ताहांत में जिस सूरजमुखी तेल का दाम 955-960 डॉलर प्रति टन था वह बीते सप्ताह बढ़कर 1,010-1,015 डॉलर प्रति टन हो गया।

कपास और मूंगफली की खेती के रकबे में कमी आई है।
Edible Oil Price: देश के तेल-तिलहन बाजारों में सूरजमुखी तेल के दाम बढ़ने के बाद बीते सप्ताह लगभग सभी तेल तिलहनों के भाव मजबूती के साथ बंद हुए। बाजार सूत्रों ने बताया कि समीक्षाधीन सप्ताह के पिछले सप्ताहांत में जिस सूरजमुखी तेल का दाम 955-960 डॉलर प्रति टन था वह बीते सप्ताह बढ़कर 1,010-1,015 डॉलर प्रति टन हो गया। इस मजबूती का असर बाकी सभी तेल तिलहनों की कीमतों पर हुआ। इसके अलावा सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक देश ब्राजील में मौसम की अनिश्चित स्थिति को देखते हुए उत्पादन प्रभावित होने की आशंका से भी सभी तेल तिलहनों की मजबूती को बल मिला।
सूत्रों ने कहा कि देश में आबादी बढ़ने के साथ खाद्यतेलों की मांग भी सालाना लगभग 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। लेकिन विगत दिनों सरकारी आंकड़ों से पता लगता है कि कपास और मूंगफली की खेती के रकबे में कमी आई है। खरीफ में कपास और रबी मौसम में मूंगफली का रकबा घटा है। सस्ते आयातित तेलों के दबाव में देसी तेल-तिलहनों पर पहले से ही भारी दबाव है। ऐसे में रकबा घटने को खतरे की घंटी माना जा रहा है। कपास से मिलने वाले बिनौले से पशु आहार के लिए सबसे अधिक खली मिलती है। बिनौले से तेल काफी कम मात्रा में मिलता है लेकिन सालाना लगभग 110 लाख टन खली मिलती है। इसलिए कपास खेती का रकबा घटना चिंता की बात है।
कपास से बिनौले को अलग करने वाली जिनिंग मिलों को पूरा माल नहीं मिल रहा है क्योंकि किसान कम कीमत मिलने के कारण पूरी ऊपज मंडियों में नहीं ला रहे। सस्ते आयातित तेलों के कारण देसी तेल मिलों को पेराई करने में नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा नवंबर-दिसंबर में हल्के नरम तेल (सॉफ्ट आयल) का आयात घटने के आसार दिख रहे हैं जबकि जाड़े में ठंड के कारण जमने के गुण की वजह से पाम पामोलीन के बजाय सॉफ्ट आयल की मांग बढ़ती है। ऐसे में तेल संगठनों को त्योहार और शादी विवाह के मौसम में देश में खाद्यतेलों की होने वाली मांग और आपूर्ति की स्थिति के बारे में जानकारियां सरकार को देते रहनी चाहिये।
कारोबारी सूत्रों के मुताबिक, नरम तेलों का आयात कम होने पर पिछले साल की तरह इनके दाम भी बढ़ेंगे। पिछले साल शुल्क-मुक्त आयात के बावजूद खाद्यतेलों की कमी होने से शुल्क-मुक्त खाद्यतेल 20-25 रुपये प्रीमियम पर बेचे गए थे।
इसके अलावा बंदरगाहों पर आयातित खाद्यतेल अपनी लागत से कम दाम पर बेचा जा रहा है। तेल संगठनों और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिये क्योंकि घाटे में सौदे बेचने से आगे चलकर आयात प्रभावित होगा और खाद्यतेलों की और कमी हो सकती है।
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