10 साल में ये 12 बड़े पर्सनल फाइनेंशियल फैसले, बैंक से लेकर पेमेंट तक हुए कई बदलाव

बिजनेस
Updated Dec 27, 2019 | 15:32 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

पिछले एक दशक की बात करें तो पर्सनल फाइनेंस से जुड़े कई बड़े बदलाव हुए हैं। बैंकिंग से लेकर बैंक अकाउंट खुलवाने तक कई बदलाव हुए हैं। आइए एक नजर इन बदलाव पर डालते हैं।

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Personal finance: 10 साल में पर्सनल फाइसेंश से कई बदलाव हुए हैं  |  तस्वीर साभार: Getty Images

साल के समापन और एक नए दशक के आगमन की तरफ बढ़ते हुए, हम बीती बातों के बारे में सोच रहे हैं। पिछले 10 साल में हुए बदलावों का विश्लेषण और आंकलन करने के लिए यह एकदम सही समय है और हमारी जिंदगी पर उन बदलावों का कैसा असर पड़ा है। आपने अपने पर्सनल फाइनेंस को कैसे मैनेज किया, खास तौर पर, आपने कैसे महत्वपूर्ण बदलावों का सामना किया। ये बदलाव हमारे फाइनेंस में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। इस गुजरते फाइनेंशियल दशक को अलविदा कहने के साथ-साथ इनमें से कुछ बदलावों को याद रखना भी जरूरी है:

आपको पेपरलेस बैंकिंग की सुविधा मिली है

वे दिन गए जब आपको अपना अकाउंट खुलवाने के लिए तरह-तरह के सबूत, स्टेटमेंट और फोटोकॉपी लेकर बैंक के ब्रांच में जाना पड़ता था, और उसके बाद कई दिन या सप्ताह तक इंतजार करना पड़ता था। अब, फिनटेक इनोवेशन की मदद से, आप अपने घर में आराम से बैठकर, अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके, कुछ ही मिनट में अपना फाइनेंशियल अकाउंट खुलवा सकते हैं।

अब आपकी मौजूदगी के बिना भी आपका अकाउंट वेरीफाई हो सकता है

गुजरे सालों में, बैंक या फाइनेंशियल कंपनी का एक प्रतिनिधि खुद आकर आपसे मिलता था और कागज पर आपका सिग्नेचर लेता था। यह एक महंगी और समय लगने वाली प्रक्रिया थी। अब, टेक्नोलॉजी के माध्यम से अपनी पहचान को वेरीफाई कर सकते हैं। आधार OTP आधारित वेरिफिकेशन और ऑथेंटिकेशन के नए-नए टेक्नीक जैसे वीडियो वेरिफिकेशन और जीवंतता की जांच (लाइवनेस चेक) की मदद से कुछ ही सेकंड में आपकी पहचान और जीवंतता को प्रमाणित किया जा सकता है।

इससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है, और आप जैसे ग्राहक बिना किसी देरी के अपना अकाउंट खुलवा सकते हैं। लेकिन, इन नए टेक्नीक्स के कुछ लिमिट्स हैं, और ग्राहकों को इस तरह अधिक से अधिक फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स खरीदने की सुविधा प्रदान करने के लिए फिनटेक इन लिमिट्स को हटाने की दिशा में काम कर रहा है।

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अब आपको लगभग तीन गुना टैक्स फ्री इनकम मिलती है

पिछले 10 साल में टैक्स छूट सीमा और रेट में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला है। एसेसमेंट ईयर 2010-11 में 1.6 लाख रु. की छूट सीमा बढ़कर वर्तमान फाइनेंशियल ईयर में 2.5 लाख रु. हो गई। लेकिन, 5 लाख रु. तक का टैक्सेबल इनकम, सेक्शन 87A के तहत 12,500 रु. के एक नए रिबेट के कारण टैक्स फ्री हो गया है। इसे टैक्स फ्री इनकम में एक बहुत बड़ी बढ़ोत्तरी मानी जा सकती है। एसेसमेंट ईयर 2010-11 और 2019-20 के टैक्स स्लैब और रेट्स पर जल्दी से एक नजर डालने से आपको इस बदलाव के बारे में साफ़ तौर पर पता चल जाएगा।

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AY 2010-11 में, स्लैब रेट था:

  • 1,60,000 रु. तक: शून्य
  • 1,60,000 रु. < = 3,00,000 रु.: 1,60,000 रु. से अधिक अमाउंट का 10%
  • 3,00,000 रु. <= 5,00,000 रु.: 14,000 रु. + 3,00,000 रु. से अधिक अमाउंट का 20%
  • 5,00,000 रु. और उससे अधिक: 54,000 रु. + 5,00,000 रु. से अधिक अमाउंट का 30%

इस एसेसमेंट एयर का स्लैब रेट है:

  • 2,50,000 रु.: शून्य
  •  2,50,000 रु. < = 5,00,000 रु.: 2,50,000 रु. से अधिक अमाउंट का 5%
  • 5,00,000 रु. <= 10,00,000 रु.: 12,500 रु. + 5,00,000 रु. से अधिक अमाउंट का 20%
  • 10,00,000 रु. और उससे अधिक: 1,12,500 रु. + 10,00,000 रु. से अधिक अमाउंट का 30%

अब आप और अधिक टैक्स सेवर्स खरीद सकते हैं

पिछले 10 साल में, सरकार ने तरह-तरह के टैक्स डिडक्शन लिमिट को बढ़ा दिया है। AY 2010-11 में, सेक्शन 80C, सेक्शन 80CCD और सेक्शन 80CCC के तहत टोटल टैक्स डिडक्शन लिमिट 1 लाख रु. तक था। सेक्शन 80D के तहत टैक्स डिडक्शन लिमिट, अपने लिए और डिपेंडेंट फैमिली मेंबर के लिए 15,000 रु. और माता-पिता के लिए अलग से 15,000 रु. था (वरिष्ठ नागरिक माता-पिता के लिए 20,000 रु. तक)।

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(Getty Images)

AY 2019-20 में, सेक्शन 80C के तहत टैक्स डिडक्शन लिमिट बढ़कर 1.5 लाख रु. तक हो गया। सेक्शन 80CCD के तहत 50,000 रु. का एडिशनल टैक्स डिडक्शन बेनिफिट भी दिया गया, जो सेक्शन 80C के तहत मिलने वाले डिडक्शन के अलावा अलग से था। सेक्शन 80D के तहत, खुद और एलिजिबल डिपेंडेंट फैमिली मेम्बर्स के लिए 25,000 रु. तक और वरिष्ठ नागरिक माता-पिता के लिए 50,000 रु. तक (और गैर-वरिष्ठ नागरिक माता-पिता के लिए 25,000 रु. तक) का डिडक्शन बेनिफिट दिया गया है।

इस तरह, टैक्स स्लैब रेट को रिलैक्स करने के अलावा, सरकार ने पिछले 10 साल में तरह-तरह के टैक्स डिडक्शन बेनिफिट को भी बढ़ा दिया है। टैक्स प्रोसेस को सिंपल बनाने की वजह से, लोगों के हाथ में आने वाले डिस्पोजेबल इनकम में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

अपने पेंशन को मैनेज करना ज्यादा आसान हो गया है

सरकार ने प्रत्येक नागरिक के लिए एक पेंशन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) चालू की थी। लेकिन, शुरू-शुरू में इसे इन्वेस्टरों का फेवर नहीं मिला जो अधिक आसान लिक्विडिटी और अधिक रिटर्न देने वाली अन्य स्कीम्स में इन्वेस्ट करना पसंद करते थे। इन्वेस्टरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए, सरकार ने NPS के नियमों को थोड़ा ढीला कर दिया और मैच्योरिटी के समय टोटल फंड का

60% तक निकाले जाने वाले अमाउंट को टैक्स फ्री कर दिया और बाकी के 40% अमाउंट को जरूरी तौर पर एन्युटी में इन्वेस्ट करना आवश्यक कर दिया है। इससे पहले, सिर्फ 40% तक निकाला जाने वाला अमाउंट, टैक्स फ्री था।

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(Getty Images)

डिजिटल युग में एक लम्बी छलांग

ऑनलाइन लेनदेन को बढ़ाने का रास्ता तैयार करने के लिए सरकार, बैंक और फिनटेक के एक साथ आ जाने से पिछले दशक में भारत में डिजिटल पेमेंट क्रांति देखने को मिली है। 2016 में डिमोनेटाइजेशन यानी नोटबंदी के कारण भारत के लोगों को नेटबैंकिंग, वॉलेट, और नए-नए शुरू हुए UPI का इस्तेमाल शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

अर्थव्यवस्था में कैश के वापस लौटने के बावजूद, डिजिटल आदत लगी रह गई, और लाख लोग अब इंस्टेंट ऑनलाइन पेमेंट सेवाओं का आनंद उठाने लगे हैं जिस पर उन्हें रिवार्ड और कैशबैक भी मिल रहा है। सरकार ने ऑनलाइन लेनदेन पर लगने वाले चार्ज को कम करने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं और सिर्फ बैंकिंग कामकाजी घंटों के बजाय उन्हें धीरे-धीरे चौबीसों घंटे उपलब्ध करा दिया है।

इंटरेस्ट रेट सिस्टम में बदलाव

पिछले दशक में, लेंडिंग इंटरेस्ट रेट सिस्टम में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला। 2010 में BPLR रेट की जगह बेस रेट सिस्टम चालू हुआ, और उसके बाद बेस रेट सिस्टम की जगह MCLR, और अब 2019 में MCLR की जगह एक्सटर्नल बेंचमार्क लिंक्ड लेंडिंग रेट (EBLR) का इस्तेमाल होने लगा है।

इस तरह के प्रत्येक कदम का लक्ष्य, अर्थव्यवस्था में उधार लेने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए इंटरेस्ट रेट ट्रांसमिशन को ज्यादा से ज्यादा असरदार बनाने के साथ-साथ इंटरेस्ट रेट कैलिब्रेशन प्रोसेस को और ज्यादा पारदर्शी बनाना था। EBLR के आ जाने से, उधारकर्ताओं को अब सिस्टमेटिक तरीके से RBI के आदेश वाली इंटरेस्ट रेट कटौती का लाभ मिल सकता है।

अब म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्ट करना ज्यादा सस्ता हो गया है

पिछले दशक में म्यूच्यूअल फंड इन्वेस्टमेंट्स में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है और पिछले 10 साल में कई नए प्रोडक्ट्स और फंड केटेगरी की शुरुआत हुई है। पिछले दशक में कई बड़े घटनाक्रमों में से एक है - डायरेक्ट फंड्स की शुरुआत जहां इन्वेस्टर किसी बिचौलिए के माध्यम से इन्वेस्ट करने के बजाय सीधे फंड हाउस के साथ इन्वेस्ट कर सकते हैं जिससे उनका कमीशन कॉस्ट काफी कम हो गया है।

दस साल से ठीक पहले, SEBI ने म्यूच्यूअल फंड्स को एंट्री लोड हटाने का भी आदेश दिया था - यह फंड खरीदने के लिए लगने वाला एक चार्ज है। इससे म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्ट करना ज्यादा आसान हो गया है जिससे इन्वेस्टरों को ज्यादा रिटर्न मिल रहा है।

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(Getty Images)

GST सिस्टम चालू हो गया है

1 जुलाई 2017 को, कई इनडायरेक्ट टैक्स जैसे VAT, एक्साइज, सर्विस टैक्स, इत्यादि की जगह गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) लागू हुआ। इससे इनडायरेक्ट टैक्सेशन सिस्टम बहुत सिंपल हो गया और टैक्स का भयानक प्रभाव समाप्त हो गया। सामानों की कीमत पर GST का मिलाजुला असर पड़ा; लेकिन, टैक्स कम होने की वजह से अधिकांश प्रोडक्ट्स की कीमत कम हो गई।

नए इन्वेस्टमेंट साधनों की शुरुआत हुई

पिछले दशक में कई नए इन्वेस्टमेंट साधनों की शुरुआत हुई है। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB), सुकन्या समृद्धि स्कीम, REIT, CPSE ETF और भारत बॉन्ड ETF, इनमें से कुछ महत्वपूर्ण इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स हैं। इससे इन्वेस्टरों को बेहतर इन्वेस्टमेंट ऑप्शन मिला और अपना इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी मिली।

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घर खरीदारों की सुरक्षा के लिए RERA को लागू किया गया

देर से कब्जा, धोखाधड़ी, और जालसाजी ये सब कुछ साल पहले घर खरीदारों और रियल्टी इन्वेस्टरों के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय था। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, सरकार ने रियल एस्टेट (रेगुलेशन ऐंड डेवलपमेंट) एक्ट, 2016 (RERA) को लागू किया।

इससे बहुत जरूरी सुरक्षा और मानकों की स्थापना हुई जिससे घर खरीदारों को फायदा हुआ और घर खरीदारों के हितों और अधिकारों की रक्षा करने के लिए रियल्टी लेनदेनों में डेवलपर और अन्य हितधारकों की जवाबदेही निर्धारित करने की प्रक्रिया भी आसान हो गई।

सबके लिए घर का नया मंत्र

एक घर खरीदना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन अब, RERA, पारदर्शी फाइनेंसिंग और सरकारी सब्सिडी के कारण, घर खरीदना अब कठिन नहीं है। सरकार ने PMAY सब्सिडी स्कीम (क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम) का ऐलान किया है जिससे घर खरीदारों को EWS/LIG और MIG सेगमेंट के तहत 2.67 रु. तक की इंटरेस्ट रेट सब्सिडी पाने में मदद मिल रही है।

(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।)

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