अगर आपका बैंक करने लगे ये काम, तो समझिए होने वाला है दिवालिया
Bank Crisis in USA, How Any Bank Become Bankrupt: साल 2008 में लेहमन ब्रदर्स बैंक का संकट इतना बड़ा था कि उससे पूरी दुनिया हिल गई और उसे आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। लेहमन ब्रदर्स ने असल में अपनी चादर से कहीं ज्यादा पैर फैला लिए थे।
बैंक क्यों हो जाते हैं दिवालिया
Bank Crisis in America, How Any Bank Become Bankrupt: करीब 14 साल बाद अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम एक नए संकट क सामना कर रहा है। अमेरिका में धड़ाधड़ बैंक डूब रहे है। पहले तो अमेरिका का 16 वां सबसे बड़ा बैंक सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) दिवालिया हुआ। इसके बाद सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) भी डूब गया। इन बैंकों के डूबने का असर दुनिया भर के शेयर मार्केट पर दिख रहा है। सवाल यही उठता है कि इन बैंकों ने ऐसा क्या किया जिससे बैंक दिवालिया हो गया। तो इसका सीधा जवाब है कि ज्यादा कमाई का लालच और बढ़ती महंगाई के दौर में फेड रिजर्व की सख्ती ने इन बैंकों को डूबने के हालात में पहुंचा दिया।
भारत में भी बिगड़ चुके हैं हालात
पिछले 2-3 साल में भारत के बैंकों पर नजर डाली जाय तो यस बैंक, DHFL,लक्ष्मी विलास बैंक, PMC बैंक, IDBI का संकट भी गहरा गया था। और इन बैंकों को लेकर आरबीआई और सरकार को सख्त कदम उठाने पड़े थे। उसके बाद कहीं जाकर स्थितियां कंट्रोल में आई। चाहे अमेरिका हो या भारत ऐसा बैंक क्या करने लगते हैं, जिसके वजह से उनके पास जमा हजारो करोड़ रुपये डूब जाते हैं और ऐसी स्थिति आ जाती है कि बैंक अपने ग्राहकों का ही पैसा नहीं चुका पाते ? इसे समझने लिए साल 2008 में लेहमन ब्रदर्स बैंक के संकट से लेकर मौजूदा सिलिकॉन वैली बैंक के संकट की कड़ी को जोड़ना होगा।
लालच और चादर से ज्यादा पैर फैलाना पड़ता है भारी
साल 2008 में लेहमन ब्रदर्स बैंक का संकट इतना बड़ा था कि उससे पूरी दुनिया हिल गई और उसे आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। लेहमन ब्रदर्स ने असल में अपनी चादर से कहीं ज्यादा पैर फैला लिए थे। यह कितना ज्यादा था, इसे इस आंकड़े से समझा जा सकता है। बैंक का वित्तीय लेवरेज अनुपात 44 के मुकाबले 1 था। यानी बैंक ने अपने हर एक रुपये पर 44 रुपया उधार ले रखा था। जाहिर है यह रणनीति ज्यादा दिन कारगर नहीं रह सकती है। क्योंकि जब बाजार बूम पर रहेगा तब तक तो सब अच्छा लेकिन जैसे ही बुलबुला फूटेगा तो गिरने के अलावा कुछ नहीं रहने वाला। ऐसा ही लेहमन ब्रदर्स के साथ हुआ अमेरिका रियल एस्टेट बाजार का बुलबुला टूटते ही सब कुछ बिखर गया।
अब सिलिकॉन वाली बैंक का मामला देखिए, उसने अपने खाताधारकों के पैसे ट्रेजरी बॉन्ड्स में निवेश कर रखे थे। जब तक ब्याज दर कम थी तब तक अच्छी कमाई हो रही थी। लेकिन जैसे ही रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद महंगाई बेकाबू हुई , तो फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके अलावा कोविड की वजह से स्टार्ट अप के लिए मुश्किलें शुरू हो गई। तो बैंक से स्टार्टअप अपनी जमा पैसे निकालने लगे। सिलिकॉन वाली बैंक स्टार्टअप फंडिंग के लिए ही अपनी पहचान रखता था। ऐसे में बैंक में रखी जमाएं कम होने लगी। बैलेंस मेंटेन करने के लिए बैंक को अपने एसेट कम दाम पर बेचने पड़े। बैंक के अनुसार कम दाम पर अपने एसेट बेचने से बैंकों को करीब 1.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। और हालात ऐसे हो गए कि बैंक के पास पूंजी नहीं बची और उसे दिवालिया होना पड़ा।
अब भारत के यस बैंक की करते हैं, जो एक सबसे तेजी से बढ़ने वाले बैंकों में से एक था। उसके फाउंडर राणा कपूर और अशोक कपूर बैंक को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे। लेकिन अशोक कपूर की मौत के बाद उनकी पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर विवाद शुरू हो गया। इसके बाद 2018 में राणा कपूर भी बैंक के एमडी के पद से हट गए। और उनके हटने के बाद पहली बार बैंक ने 1500 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया। ऐसा कहा गया बैंक ने पहले ये आंकड़े छुपा रखे थे। बैंक से अलग होने के बाद राणा कपूर उनके परिवार के लोगों ने बैंक से अपनी हिस्सेदारी भी कम करनी शुरू कर दी। पतली हालत को देखते हुए विदेशी फंड हाउसेज और क्रेडिट एजेंसियों ने यस बैंक का आउटलुक घटा दिया और उसे निगेटिव लिस्ट में डाल दिया। इससे बैंक के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो गया।
किन बातों पर रखें नजर
इन तीन उदाहरणों से आप आसानी से समझ सकते हैं कि बैंक कौन सी गलतियां करते हैं, जिससे वह डूबने के कगार पर पहुंच जाते हैं। अहम बात यह है कि इस बात पर नजर रखनी चाहिए बैंक ने अपने पैर कितने पसार रखे हैं। दूसरी अहम बात यह है कि क्या बैंक के पास जमा पूंजी घट रही है। तीसरी अहम बात यह है कि बैंक को लेकर कोई कानूनी विवाद तो नहीं चल रहा है। इसके अलावा क्रेडिट एजेंसियों ने बैंक का आउटलुक घटाया तो नहीं है। इन पर नजर रखकर बैंक की सेहत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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