2000 के नोटों का कमाल, बैंकों में डिपॉजिट 6 साल के टॉप पर, कुल जमाएं 191.6 लाख करोड़

Bank Deposit At Six Year High: 30 जून को समाप्त पखवाड़े में जमा राशि सालाना आधार पर 13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 191.6 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यह पिछले छह साल में जमा का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इसकी मुख्य वजह दो हजार रुपये के नोट को चलन से वापस लेना और जमा राशि पर ऊंची ब्याज दर है।

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2000 नोटों की जमाओं से बढ़ी नकदी

Bank Deposit At Six Year High:भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के दो हजार रुपये के नोट को चलन से वापस लेने के बाद बैंकों की जमा में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है। यह जून में बढ़कर छह साल के उच्चस्तर 191.6 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। एक रिपोर्ट में यह जानकरी दी गई।आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि दो हजार रुपये के कुल 3.62 लाख करोड़ नोट में से तीन-चौथाई से अधिक बैंकों के पास वापस आ गए हैं। इनमें से 85 प्रतिशत नोट लोगों ने अपने बैंक खातों में जमा कराए हैं, जबकि शेष को अन्य मूल्य वर्ग के नोटों से बदला गया है।
छह साल का टॉप लेवल
केयर रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक संजय अग्रवाल ने बताया कि 30 जून को समाप्त पखवाड़े में जमा राशि सालाना आधार पर 13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 191.6 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यह पिछले छह साल में (मार्च 2017 के बाद से) जमा का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। इसकी मुख्य वजह दो हजार रुपये के नोट को चलन से वापस लेना और जमा राशि पर ऊंची ब्याज दर है।समीक्षाधीन पखवाड़े में जमा राशि में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 3.2 प्रतिशत बढ़कर 191.6 लाख करोड़ रुपये हो गई। इसमें पिछले 12 माह की अवधि में बैंकों की जमा 22 लाख करोड़ रुपये बढ़कर 185.7 लाख रुपये करोड़ रही थी।भारतीय रिज़र्व बैंक ने 19 मई को दो हजार के नोट को चलन से वापय लेने की घोषणा की थी।
सरकारी बैंकों पर मंडरा रहा है निजीकरण का खतरा
इस बीच देश में बैंक अधिकारियों की शीर्ष निकाय अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने मंगलवार को कहा कि समाज में आर्थिक विभाजन को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर वास्तव में निजीकरण का खतरा मंडरा रहा है।निकाय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने 1969 में निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और बचत बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।एआईबीओसी के महासचिव रुपम रॉय ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर वास्तव में निजीकरण का खतरा मंडरा रहा है। यह एक वैचारिक संघर्ष है जिसे ऐसी वैकल्पिक विचारधारा के जरिये दूर किया जा सकता है जो बड़ी आबादी के कल्याण को प्राथमिकता देती हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयकरण के बाद से ये पीएसबी कृषि, लघु एवं मझोले उद्यमों (एसएमई), शिक्षा तथा बुनियादी ढांचा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को धन मुहैया करा रहे हैं।
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