Bibek Debroy: शास्त्रीय संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों में महारत रखने वाला अर्थशास्त्री थे बिबेक देबरॉय
Bibek Debroy: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय का 69 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह न केवल अर्थशास्त्री थे बल्कि उन्हें शास्त्रीय संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान था।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की अध्यक्ष बिबेक देबरॉय नहीं रहे
Bibek Debroy: शास्त्रीय संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों का गहरा ज्ञान बिबेक देबरॉय को बाकी अर्थशास्त्रियों से अलग करता था। उन्हें अर्थशास्त्र के साथ पुराणों, वाल्मीकि रामायण और महाभारत के अनुवाद के लिए भी लंबे समय तक याद किया जाएगा। वे अपनी रुचियों और ज्ञान के क्षेत्र में बेमिसाल थे। संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद के लिए उनके गहरे जुनून, रेलवे सुधारों के प्रति उनके समर्पण, फाउंटेन पेन में रुचि और भारतीय/हिंदू जीवन में कुत्तों की भूमिका जैसे कुछ असामान्य विषयों में शोध के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। देबरॉय (69) की आर्थिक रुचियों और शोध कार्यों में आर्थिक सिद्धांत, आय असमानता और बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण जैसे कई क्षेत्र शामिल थे।
सरकार के भीतर और बाहर लंबे समय तक कार्यरत अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने कई विवादों को भी जन्म दिया। इसमें 2005 में राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान के निदेशक (शोध) के रूप में एक विवाद भी शामिल है। उन्होंने एक शोध पत्र में गुजरात को आर्थिक स्वतंत्रता देने के मामले में भारत में अग्रणी राज्य बताया था। कथित तौर पर इसके बाद उनका तबादला कर दिया गया था। उस शोध पत्र को जर्मनी स्थित फ्रेडरिक-नौमान स्टिफ्टंग ने प्रायोजित किया था और संस्थान के संचालन की देखरेख करने वाले राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) ने प्रकाशित किया था।
इस साल सितंबर में देबरॉय ने गोखले राजनीति और अर्थशास्त्र संस्थान (जीआईपीई) के कुलाधिपति पद से इस्तीफा दे दिया था। बंबई उच्च न्यायालय ने संस्थान के कुलपति अजीत रानाडे को अंतरिम राहत दी थी, जिन्हें पहले उनके पद से हटा दिया गया था। उन्हें दो महीने पहले ही जीआईपीई का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था। यह भी एक अजीब संयोग है कि देबरॉय ने अपने निधन से चार दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक स्तंभ में लिखा था कि बाहर एक दुनिया है जो मौजूद है। अगर मैं वहां नहीं हूं तो क्या होगा? वास्तव में क्या होगा।
देबरॉय रामकृष्ण मिशन स्कूल, नरेंद्रपुर और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता के पूर्व छात्र थे। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के बाद ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से उच्च अध्ययन किया था। उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के जीआईपीई, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान और कानूनी सुधारों पर वित्त मंत्रालय/ यूएनडीपी परियोजना के निदेशक के रूप में भी काम किया था। वह पांच जून, 2019 तक नीति आयोग के सदस्य भी थे। उन्होंने कई किताबें, शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे। साथ ही कई अखबारों के लिए लेख लिखते रहे।
अर्थशास्त्र के अलावा उनकी दिलचस्पी प्राचीन भारतीय ग्रंथों और रेलवे में थी। वर्ष 2016 में सरकार ने देबरॉय की अगुवाई वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर ही रेल बजट को आम बजट में मिला देने का फैसला किया था। देबरॉय ने दर्जनों प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इनमें महाभारत के दस खंड, तीन खंडों वाली वाल्मीकि रामायण, शिव पुराण और लगभग एक दर्जन महापुराणों का संक्षिप्त संस्करण शामिल है। उन्होंने एक किताब 'सरमा एंड हर चिल्ड्रन' भी लिखी, जिसमें कुत्तों के प्रति उनके प्रेम के साथ हिंदू धर्म में उनकी रुचि को भी दर्शाया गया है।
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