Hyundai IPO GMP: भारत के सबसे बड़े IPO में क्या हैं जोखिम, कितना पहुंचा Hyundai का GMP, केवल 22% हुआ सब्सक्राइब

Hyundai Motor India IPO GMP: हुंडई के आईपीओ में 1865-1960 रु का प्राइस बैंड है। जबकि लॉट साइज 7 शेयरों की है। कंपनी की लिस्टिंग 22 अक्टूबर को BSE-NSE पर होगी।

हुंडई मोटर इंडिया आईपीओ जीएमपी

मुख्य बातें
  • हुंडई IPO का दूसरा दिन
  • 65 रु है जीएमपी
  • मिल रहा हल्का रेस्पॉन्स
Hyundai Motor India IPO GMP: दक्षिण कोरियाई ऑटो कंपनी हुंडई मोटर की भारतीय यूनिट हुंडई मोटर इंडिया का IPO खुल गया है। IPO का साइज 27870.16 करोड़ रु है। इस हिसाब से ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा आईपीओ है। मगर इसे कोई खास रेस्पॉन्स मिलता नहीं दिख रहा। आईपीओ के दूसरे दिन बुधवार को 11 बजे इसे सिर्फ 22 फीसदी सब्सक्राइब किया गया है। इसकी एक बड़ी वजह शेयर के GMP (ग्रे-मार्केट प्रीमियम) में गिरावट मानी जा रही है, जो कि पिछले दो सप्ताह में 570 रुपए प्रति शेयर से घटकर 65 रुपए प्रति शेयर रह गया है।
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हुंडई आईपीओ में क्या हैं रिस्क (Hyundai IPO Risk)

  • कंपनी ने अपने IPO पेपर में खुद कहा है कि हमारे कारोबार के लिए आवश्यक पार्ट्स और मैटेरियल्स की कीमतों में बढ़ोतरी से हमारे बिजनेस और ऑपरेशंस के नतीजों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है
  • कंपनी के मुताबिक ये पुर्जों और मैटेरियल के लिए सीमित सप्लायर्स पर निर्भर है। पुर्जों और मैटेरियल की उपलब्धता में कोई भी रुकावट इसके कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है
  • हुंडई, इसकी एक सब्सिडियरी कंपनी और कंपनी के प्रमोटर लंबित कानूनी कार्यवाही में शामिल हैं और इनमें से किसी भी कार्यवाही का कोई भी प्रतिकूल नतीजे इसके बिजनेस, प्रतिष्ठा, फाइनेंशियल कंडीशन और कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है
  • इसकी दो ग्रुप कंपनियां, किआ कॉरपोरेशन और किआ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, समान बिजनेस में हैं, जिनमें हितों का टकराव हो सकता है, जिससे कंपनी के बिजनेस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
  • हुंडई का बिजनेस सीजनल है और कुछ तिमाहियों के दौरान इसकी सेल्स में कमी से इसके फाइनेंशियल परफॉर्मेंस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
  • सरकारी प्रोत्साहनों न होने पर, उनमें कमी से बिजनेस, संभावनाओं, फाइनेंशियल कंडीशन, ऑपरेशन के नतीजों और कैश फ्लो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
  • कंपनी की सफलता इसकी और हुंडई मोटर कंपनी के मार्केट ट्रेंड्स को पहचानने और ग्राहकों की बदलती मांगों को पूरा करने की क्षमता पर निर्भर करती है, साथ ही साथ हमारी प्रॉफिटैबिलिटी को बनाए रखती है या उसमें सुधार करती है। यदि कंपनी ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो इसकी सेल्स, बिजनेस और ऑपरेशंस प्रभावित होंगे
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