Budget 2024: जहां-जहां जख्म मिले, वहां-वहां मरहम लगाने की कोशिश!
Budget 2024: किसी भी सरकार का पहला बजट अगले पांच वर्षों के लिए उसके विजन और फ्रेमवर्क को दर्शाता है। 2014 में मोदी 1.0 मिडिल क्लास पर केंद्रित था। तब कम घाटे के लक्ष्य के साथ टैक्स छूट की लिमिट बढ़ाई गई थी। 2019 में मोदी 2.0 में सामाजिक न्याय पर जोर दिया गया।
राजनीतिक बदलाव के संकेत देता बजट
Budget 2024: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने के दर्द भरे जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश मोदी सरकार ने आम बजट से की है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने लगभग एक महीने पहले जनादेश से मिले संदेश का जवाब, बजट में पुरजोर तरीके से देने का प्रयास किया है। किसानों में पनपे असंतोष को संबोधित करने का प्रयास किया है। रोजगार सृजन पर स्पष्ट ध्यान, बिहार और आंध्र प्रदेश में एनडीए के सहयोगियों के लिए खजाना खोलना एक बड़े राजनीतिक बदलाव के संकेत हैं। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में संसद की शुरुआत से ही बीजेपी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि संख्या बल में बदलाव के बावजूद कुछ खास बदला नहीं है। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह बजट राजनीतिक बदलाव का पहला बड़ा सार्वजनिक संकेत है। कुछ संकेतों को समझने की कोशिश करते हैं।
युवा मतदाताओं के बीच भरोसा कायम करने की कोशिश
बजट में पहला बड़ा संकेत युवा मतदाताओं के मोर्चे पर देखने को मिला। देश के युवा मतदाता हमेशा से ही ब्रांड मोदी को मजबूत बनाने के लिए जरूरी ईंधन रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनावों में नौकरियों को लेकर युवाओं के गुस्से ने सरकार को झकझोर कर रख दिया। नतीजतन वित्त मंत्री सीतारमण ने इस मुद्दे को फ्रंटफुट पर आकर संबोधित किया। अपने बजट के शुरुआती भाषण में नौकरियों के लिए बड़े ऐलान किए। इनमें पहली बार नौकरी करने वालों के लिए 15,000 रुपये तक डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और युवाओं को 5,000 रुपये के मासिक भत्ते के साथ टॉप 500 कंपनियों में इंटर्नशिप की योजना शामिल है।
सरकार के अपने आर्थिक सर्वेक्षण में नौकिरियों की जरूरतों को बारे में बताया था। सर्वे के अनुसार, डेमोग्राफिक परिवर्तन के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए भारत को अगले सात वर्षों में नॉन-फार्म सेक्टर में कम से कम 78 लाख नौकरियों की आवश्यकता है। बजट में इसपर सरकार की सीधी प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
गरीब और युवा टैक्सपेयर्स
बजट में इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव के साथ युवा टैक्सपेयर्स के हाथों अधिक पैसा डालने की ओर भी प्रयास करता हुआ नजर आता है। इस बदलाव से नई टैक्स रिजीम चुनने वालों के हाथों में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति 17,500 रुपये से अधिक बचत की संभावना है। बढ़ती खाद्य कीमतों की मार गरीबों पर पड़ रही है। ऐसे में मुद्रास्फीति के लिए 10,000 करोड़ रुपये के नए प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड की स्थापना इस मोर्चे पर सरकार की चिंता और उसकी प्राथमिकताओं का संकेत देती है।
किसानों के बीच समर्थन के लिए जोर
सरकार ने किसानों और ग्रामीण भारत के बीच अपने लिए समर्थन में कमी को देखते हुए पैसे को उसी जगह पर लगाया है, जहां उसकी जरूरत है। कृषि पर खर्च अब 1.52 लाख करोड़ रुपये (पिछले साल से 11,318 करोड़ रुपये अधिक) तक पहुंच गया है। ग्रामीण क्षेत्र में 10 फीसदी से अधिक खर्च बढ़ाकर 2.66 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। पिछले दशक में बीजेपी का चुनावी वर्चस्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में गांव की नई पार्टी के रूप में उभरने में मदद की थी। खासकर उत्तर प्रदेश और 2024 में हिंदी पट्टी के अन्य हिस्सों में उलटफेर ने एक रीसेट को जन्म दिया है।
बिहार और आंध्र को साधने की कोशिश
आम बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए खजाना खोलना नई राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रदर्शित कर रहा है। इन दोनों राज्यों में जिन दलों की सरकारें हैं, उनकी संख्या के दम पर ही बीजेपी देश की सत्ता के शीर्ष पर काबिज है। हालांकि, केंद्र सरकार ने बजट से पहले बिहार और आंध्र के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को खारिज कर दिया था। लेकिन बजट में इन दोनों राज्यों पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित किया गया। आंध्र के लिए 15,000 करोड़ रुपये तक के मल्टीलेटरल फंडिंग के साथ-साथ पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिए वित्तीय जरूरतों को पूरा करना शामिल है। इस सिंचाई प्रोजेक्ट को आंध्र प्रदेश और उसके किसानों के लिए लाइफ लाइन माना जा रहा।
बिहार के लिए भी सरकार ने अपना खजाना खोल दिया। वित्त मंत्री ने वादा किया है कि सड़क परियोजनाओं के लिए 26,000 करोड़ रुपये और बिजली परियोजनाओं के लिए 21,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों से बाहरी सहायता के लिए बिहार सरकार के अनुरोधों में तेजी लाई जाएगी। वित्त मंत्री ने टेंपल इकोनॉमी के विचार पर भी जोर दिया और विष्णुपद मंदिर और महाबोधि मंदिर के आसपास कॉरिडोर के विकास के लिए समर्थन का प्रस्ताव रखा। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के मॉडल की तरह होगा। साथ ही नालंदा को पर्यटन केंद्र के रूप में मजबूत करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च पर घाटे पर कंट्रोल की नीति
पिछले कुछ साल में बजट में मोदी सरकार का उद्देश्य राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने का रहा है। इसके साथ ही विकास को बढ़ावा देने के लिए कैपिटल एक्सपेंडिचर में इजाफा करना रहा है। इस मोर्चे पर भी सरकार ने हमेशा की तरह काम करने का संकेत दिया है। वित्त मंत्री ने बताया कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च पहले की तरह 11.11 लाख करोड़ रुपये रहेगा और राजकोषीय घाटा 4.9 फीसदी तक कम होने की उम्मीद है। (अंतरिम बजट में अनुमानित 5.1% की तुलना में)।
राजनीतिक प्राथमिकताएं और राजकोषीय संतुलन
किसी भी सरकार का पहला बजट अगले पांच वर्षों के लिए उसके विजन और फ्रेमवर्क को दर्शाता है। 2014 में मोदी 1.0 मिडिल क्लास पर केंद्रित था। तब कम घाटे के लक्ष्य के साथ टैक्स छूट की लिमिट बढ़ाई गई थी। 2019 में मोदी 2.0 में सामाजिक न्याय पर जोर दिया गया। 2024 में मोदी 3.0 में राजनीतिक प्राथमिकताएं सबसे ऊपर हैं और नौकरियों को लेकर सरकार के ऐलान इस बात के संकेत दे रहे हैं। क्योंकि सरकार ने इस बार कैपिटल गेन टैक्स बढ़ाकर निवेशकों के लिए राह कठिन कर दी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह आम बजट सियासी जरूरतों को देखते हुए हर उस जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश करता हुआ नजर आता है, जो 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को देश मतदाताओं ने दिए थे। साथ ही बजट में राजनीतिक आवश्यकताओं के साथ राजकोषीय समझ का संतुलन भी प्रतित होता नजर आता है।
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रोहित ओझा Timesnowhindi.com में बतौर सीनियर कॉरस्पॉडेंट सितंबर 2023 से काम कर रहे हैं। यहां पर ...और देखें
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