Economic Survey 2024: गरीबों को सीधे कूपन या नकदी ट्रांसफर करने पर विचार करे सरकार, तभी मिलेगी महंगाई से राहत

Economic Survey 2024: भारत ने 2016 में मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण को लेकर रूपरेखा पेश की थी। इसके तहत रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं के कारण आरबीआई ने फरवरी, 2023 से नीतिगत दर में बदलाव नहीं किया है।

Economic Survey, Food Inflation

महंगाई से निपटने को गरीबों को मिले कूपन- आर्थिक समीक्षा

Economic Survey 2024: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को रेपो रेट तय करने में खाद्य वस्तुओं की महंगाई पर गौर करना बंद करना चाहिए और सरकार को गरीबों पर खाने के सामान की ऊंची कीमतों का असर कम करने को उन्हें ‘कूपन’ देने या सीधे नकदी ट्रांसफर पर विचार करना चाहिए। हाल के महीनों में महंगाई दर में कमी आई है। लेकिन आरबीआई ने बढ़ी हुई खाद्य मुद्रास्फीति का हवाला देते हुए रेपो रेट में कटौती से परहेज किया है। आरबीआई की नीतिगत दर के आधार पर ही बैंक आवास, व्यक्तिगत और कंपनी कर्ज की ब्याज तय करते हैं।
भारत ने 2016 में मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण को लेकर रूपरेखा पेश की थी। इसके तहत रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। केंद्रीय बैंक हर दो महीने पर कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स आधारित मुद्रास्फीति के आधार पर नीतिगत दर तय करता है। इसमें भोजन, ईंधन, विनिर्मित सामान और चुनिंदा सेवाएं शामिल हैं।

सप्लाई की समस्या से बढ़ती हैं कीमतें

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि खाद्य पदार्थों को छोड़कर, महंगाई का लक्ष्य तय करने पर विचार करना चाहिए। प्राय: खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतें मांग के बजाय सप्लाई की समस्या के कारण होती हैं। बता दें कि खुदरा मुद्रास्फीति जून में 5.08 फीसदी थी जबकि खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 9.36 फीसदी थी। मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं के कारण आरबीआई ने फरवरी, 2023 से नीतिगत दर में बदलाव नहीं किया है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास ने जून में कहा था कि मौजूदा समय में, खाद्य मूल्य परिदृश्य से जुड़ी अनिश्चितताओं पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत है। इसका कारण सकल (हेडलाइन) मुद्रास्फीति पर उसका पड़ने वाला जोखिम है। समीक्षा के अनुसार, मॉनिटरी पॉलिसी केवल मांग आधारित मूल्य दबाव को नियंत्रित करने में मददगार है। सप्लाई बाधाओं के कारण होने वाली महंगाई से निपटने के लिए उसके उपयोग का प्रतिकूल असर हो सकता है।

कूपन के जरिए असर को किया जा सकता है कम

इसमें कहा गया है कि इसलिए, इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि क्या देश में मुद्रास्फीति के लक्ष्य से संबंधित रूपरेखा में खाद्य पदार्थ को छोड़कर महंगाई दर को लक्षित करना चाहिए। वहीं गरीब और कम आय वाले उपभोक्ताओं को खाने के सामान की ऊंची कीमतों के कारण होने वाली कठिनाइयों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण या उचित अवधि के लिए निर्धारित वस्तुओं की खरीद को लेकर कूपन के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है। आरबीआई ने 2024-25 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो पिछले वित्त वर्ष के 5.4 प्रतिशत से कम है। (इनपुट-भाषा)
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | बजट 2024 (business News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

लेटेस्ट न्यूज

Rohit Ojha author

रोहित ओझा Timesnowhindi.com में बतौर सीनियर कॉरस्पॉडेंट सितंबर 2023 से काम कर रहे हैं। यहां पर वो बिजेनस और यूटिलिटी की खबरों पर काम करते हैं। मी...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited