Rising Rice Prices: सरकार क्यों नहीं कंट्रोल कर पा रही चावल के दाम, उत्पादन में कमी समेत ये हैं कारण
Rice Prices Are Increasing: चावलों के दाम बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगातार वृद्धि, चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा एमएसपी से ऊपर चावल की खरीदारी करना शामिल है।
चावल की कीमतें बढ़ रही हैं
- लगातार बढ़ रहे चावल के दाम
- सरकार के प्रयास हो रहे फेल
- उत्पादन में कमी एक बड़ा कारण
Rice Prices Are Increasing: बीते काफी समय से चावल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। सरकार ने चावल की कीमतों को काबू में रखने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं। इनमें घरेलू स्तर पर गैर-बासमती चावल की कीमतें कम करने के लिए चावल इंडस्ट्री एसोसिएशंस को निर्देश दिया जाना शामिल है। इसी तरह सरकार ने जुलाई 2023 में गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और इसकी घरेलू उपलब्धता में सुधार के लिए उबले चावल (धान को छिलके सहित थोड़ा उबालने के बाद उसे सुखाकर जो चावल निकाला जाता है उसे उबला चावल कहते हैं) पर 20% निर्यात शुल्क लगाया था। मगर इन तमाम उपायों के बाद भी चावल के दाम कम नहीं हो रहे हैं। आगे जानिए क्या हैं इसके कारण।
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क्यों बढ़ रहे चावल के दाम
चावलों के दाम बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में लगातार वृद्धि, चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा एमएसपी से ऊपर चावल की खरीदारी करना और अलनीनो चक्रवात के प्रभाव के कारण भारत के खरीफ चावल उत्पादन में लगभग 4% की गिरावट की संभावना शामिल है। वहीं पोल्ट्री और इथेनॉल इंडस्ट्री से मजबूत मांग भी इसका एक कारण है।
कहां से कहां पहुंचे दाम
2023-24 के लिए धान की सामान्य किस्म के लिए एमएसपी 2,183 रुपये/क्विंटल है। छत्तीसगढ़ में नई भाजपा सरकार पार्टी के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए प्रति एकड़ 21 टन धान की सीमा के साथ 3,100 रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीद रही है, जो एमएसपी से 42% अधिक है।
इसके नतीजे में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत मुफ्त या रियायती दरों पर दिए जाने वाले चावल की कीमत खुले खुदरा बाजार में पिछले साल के 30 रुपये से बढ़कर 40 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है।
सस्ती किस्म के चावल का उत्पादन हुआ बेहतर
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार चावल निर्यातक संघ (टीआरईए) के अधिकारियों के अनुसार एमएसपी पॉलिसी ने पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिए रियायती दरों पर दिए जाने वाले चावल की सस्ती किस्मों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया है।
इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स के मुताबिक सरकार 18% घाटा झेलकर खुले बाजार में 29 रुपये प्रति किलोग्राम पर अनाज बेच रही है, लेकिन लंबी नौकरशाही प्रॉसेस के कारण कोई खरीददार नहीं है।
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