3000 साल पुराने काला नमक चावल को मिली नई पहचान, पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस वैज्ञानिक का हैै कमाल
Kala Namak Rice: काला नमक चावल का इतिहास 3000 साल पुराना है। भगवान गौतम बुद्ध के काल से इस चावल को जोड़ा जाता है। पुराने रिकॉर्ड की माने तो 50 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण काला नमक चावल अपना वजूद खोता चला गया। सरकारी उदासीनता के कारण इसकी खेती घटकर 2000 हेक्टेयर तक ही सीमित रह गई।
Kala Namak Rice: चावल की अनेक किस्म भारत में उगाई जाती है लेकिन काला नमक चावल एक ऐसी फसल है जो सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में पैदा की जाती है। खाने में बेहद स्वादिष्ट होने के बावजूद किसानों ने काला नमक चावल की खेती से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। असल में काला नमक चावल की खेती करने में किसानों को कोई खास लाभ नहीं मिल रहा था। कहा जाता है कि इस बात की जानकारी जब गोरखपुर में के शिवपुर शाहबाजगंज में रहने वाले वैज्ञानिक डॉक्टर रामचेत चौधरी को हुई तो उन्होंने काला नमक के उन्नत खेती के लिए अनुसंधान शुरू किया और दो दशक के बाद आज तीन मंडलों के 11 जिलों में किसाने की पहली पसंद काला नमक चावल उगाना हो गया है।
3000 पुराना इतिहास
डॉ रामचेत चौधरी की माने तो काला नमक चावल का इतिहास 3000 साल पुराना है। भगवान गौतम बुद्ध के काल से इस चावल को जोड़ा जाता है। पुराने रिकॉर्ड की माने तो 50 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण काला नमक चावल अपना वजूद खोता चला गया। सरकारी उदासीनता के कारण इसकी खेती घटकर 2000 हेक्टेयर तक ही सीमित रह गई। इस चावल को वही किसान उगाते थे जिन्हें खुद काला नमक चावल खाने का शौक हो। बाजार से यह चावल धीरे-धीरे गायब होने लगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी सेवाएं देकर भारत लौटे वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी कहते हैं कि जब उन्हें एहसास हुआ कि अगर समय रहते काला नमक चावल के बारे में नहीं सोचा गया तो यह भी एक विलुप्त प्रजाति में शामिल हो जाएगा। इसलिए उन्होंने किसानों से संपर्क शुरू किया गोरखपुर बस्ती और श्रावस्ती मॉडल के जिलों में सैकड़ों किसानों से बातचीत करने के बाद काला नमक चावल की खेती न करने के कारण को समझ गया। काला नमक चावल को लेकर काफी अध्ययन करने के बाद उन्होंने यह तय किया कि काला नमक चावल की नई प्रजाति विकसित करने का काम किया जाए। इस पर अमल करते हुए उन्होंने किसानों को नई प्रजाति के KN3 के बारे में अवगत कराया। KN3 प्रजाति को डॉक्टर चौधरी ने उत्तर प्रदेश व भारत सरकार से नोटिफाई कराया। किसानों ने KN3 काला नमक चावल की नई प्रजाति को काफी पसंद किया। यह चावल खुशबूदार और नरम था। चावल की नई प्रजाति के उपज के बाद किसानों में एक नया उत्साह पैदा हो गया।
नई प्रजाति ने बदली तस्वीर
नई प्रजाति के काला नमक चावल में सुधार तो आ गया लेकिन इसके पौधे काफी लंबे होने की वजह से गिर जाते थे और पैदावार 10 कुंतल प्रति एकड़ में सिमट कर रह जाता था। किसानों के लिए यह काफी घाटे का सौदा होता था। एक बार फिर डॉक्टर चौधरी ने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए काला नमक चावल के पौधों पर रिसर्च शुरू किया और इन्होंने काला नमक चावल की तीन और प्रजातियां विकसित किया। काला नमक किन प्रजातियों में बौना KN101, बौना KN 102 और KN किरण शामिल किया। पिछले साल काला नमक किरण प्रजाति की उपज 80 हजार हेक्टेयर में की गई जो किसानों के लिए काफी लाभदायक है।डॉ चौधरी बताते हैं की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली काला नमक में जो प्रजाति है वह काला नमक किरण (KN किरण) प्रजाति है।
दुनिया के 40 देशों में चावल अनुसंधान के लिए कर चुके हैं काम
रामचेत चौधरी की प्रारंभिक शिक्षा संत कबीर नगर से ही हुई। 1965 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीएससी और 1967 में एग्रीकल्चर से एमएससी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1969 में कानपुर के चंद्रशेखर आजाद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की। संयुक्त राष्ट्र संघ में नौकरी करते हुए दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों के तकरीबन 40 देश में वह कृषि व चावल से जुड़े हुए मामलों पर लगातार रिसर्च करते रहे। संयुक्त राष्ट्र संघ से 2006 में रिटायर्ड होने के बाद वह अपनी मातृभूमि गोरखपुर की ओर लौटे और अब काला नमक चावल के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
किसानों को जैविक खेती के लिए किया प्रेरित
डॉ चौधरी ने बताया कि जब वह काला नमक खेती के लिए किसानों से रूबरू हुए तो किसान रासायनिक खेती पर ज्यादा निर्भर थे। रासायनिक खेती कर-कर के खेतों को बर्बाद कर दिया था। इन्होंने किसानों को जैविक खेती के बारे में बताना शुरू किया। शुरुआती दौर में तो किसान जैविक खेती में आने वाली कठिनाइयों को देखकर काफी निराश हुए। किसानों को डर था कि जैविक खेती करने से उनकी पैदावार कम हो जाएगी लेकिन जैसे-जैसे डॉक्टर चौधरी ने जैविक खेती के लाभ के बारे में बताया और प्रयोगात्मक तरीके से करके दिखाया तो जैविक खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ने लगा। आज बाजारों में जैविक काला नमक चावल की खूब मांग है। डॉक्टर चौधरी के नेतृत्व में किसान धुआंधार तरीके से जैविक काला नमक चावल खेतों में उगा रहे हैं। जिनका बाजार में अच्छा दाम मिलता है और विदेशों में भी काफी पसंद किया जाता है।
काला नमक खेती के लिए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन का लिया सहारा
डॉ चौधरी बताते हैं कि भारत सरकार के कृषि विभाग की एक टीम उत्तर प्रदेश में 3 सालों तक विभिन्न क्षेत्रों में जाकर सर्वे करती रही। उन्होंने प्रदेश को 9 एग्रो क्लाइमेट जोन में बांटा। टीम हर जोन में मिट्टी पानी, हवा, नमी का गहनता से अध्ययन किया। जोन 7 के गोरखपुर बस्ती और देवीपाटन मंडल के 11 जिलों को भी चिन्हित किया इस रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर चौधरी ने तीन मंडलों के 11 जिलों को काला नमक चावल के उपज के लिए अनुकूल मानते हुए किसानों को प्रेरित करना शुरू किया। इस इलाके के किसानों को बताया कि उनके इलाके की भूमि वातावरण, मौसम हवा,पानी, नमी के एतबार से काला नमक की खेती के लिए बिल्कुल भी माकूल है। इन 11 जिलों का इन्होंने काला नमक चावल के उपज के तहत भारत सरकार की वेबसाइट पर ज्योग्राफिकल इंडिकेशन दर्ज कराया। जिसका लाभ सीधे तौर पर काला नमक उगने वाले किसानों को मिला।
काला नमक चावल की खेती के लिए किसानों का प्रशिक्षण कैंप भी चलाया
डॉक्टर चौधरी ने अपने तकनीक और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए काला नमक चावल की विभिन्न प्रजातियों के खेती के लिए किसानों के बीच में जाकर ट्रेनिंग कैंप का भी आयोजन किया। ट्रेनिंग कैंप में किसानों को कैसे फसल को दुगना और तिगुना करे। इसके लिए तकनीक समझाया। इस काम में मीडिया, सोशल मीडिया का भी इन्हें काफी सहारा मिला। तकनीक का प्रचार-प्रसार ट्रेनिंग कैंप के अलावा विभिन्न प्लेटफॉर्मों के जरिए किसानों तक पहुंचा।
शुगर फ्री है काला नमक चावल और सेहत के लिए है लाभदायक
डॉक्टर चौधरी की माने तो काला नमक चावल विश्व का सर्वोत्तम चावल है।यह चावल सेहत के लिए भी लाभदायक है। यह चावल शुगर फ्री मरीजों के लिए लाभकारी है। इसमें जिंक, लोहा, प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। क्योंकि इस चावल का ग्लाइसिक इंडेक्स 49 से 52 के बीच रहता है।मेडिकल विज्ञान की माने तो जिन खाद्य पदार्थों का ग्लाइजिक इंडेक्स 55 से कम है वह शुगर फ्री की श्रेणी में आता है। इसलिए इस चावल के उपयोग से शुगर फ्री मरीजों को किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है और वह मन भरकर काला नमक चावल खा सकते हैं। जबकि डॉक्टर शुगर के मरीजों को चावल खाने से मना करते हैं।
काला नमक चावल की खेती में है उज्जवल भविष्य, किसान सीधे विदेश कर सकते हैं निर्यात
डॉक्टर चौधरी का कहना है कि वह काला नमक चावल उगाने वाले किसानों को विदेश निर्यात करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। चावल का ऑर्डर मिलने पर विदेशी व्यापारी से किसानों का सीधा संपर्क कर देते हैं। उन्होंने कहा कि भारत के बाजारों में यह चावल ₹120 से लेकर ₹350 तक बिकता है जबकि विदेशों में इस चावल की कीमत कई गुना ज्यादा हो जाती है। अमेजॉन, फ्लिपकार्ट और तमाम ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर यह चावल तकरीबन 300 से 350 रुपए के बीच बिकता है। अगर किसान काला नमक चावल की खेती करता है तो एक मोटी कमाई के साथ उसका एक उज्जवल भविष्य भी दिखाई देता है। डॉक्टर चौधरी खुद विदेशी बाजार का गहनता से अध्ययन करने के बाद विदेशी मांग के अनुरूप किसानों से चावल की सप्लाई विदेशी व्यापारियों को कराते हैं।
2 दशकों के मेहनत का मिला फल, राष्ट्रपति द्वारा पदम भूषण से होंगे सम्मानित
काला नमक चावल की उन्नत खेती व किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने के लिए डॉक्टर रामचेत चौधरी ने तकरीबन 20 साल का समय लगा दिया। इनका डंका देश ही नहीं विदेशों तक के बजता है। यही कारण है कि अब भारत कि राष्ट्रपति द्वारा इन्हें बहुत जल्द पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया जाएगा । सम्मान पाने के बाद डॉक्टर चौधरी का कहना है कि वह इस सम्मान को पाने के लिए यह काम नहीं कर रहे थे l। उनके जीवन का एक ही लक्ष्य है कि काला नमक चावल को किस प्रकार और अच्छा बना कर लोगों के बीच में लाया जाए। क्योंकि हजारों साल पुराना यह फसल अपना वजूद ना को दे इसी को लेकर वह प्रयास करते रहे और अब राष्ट्रपति उन्हें सम्मानित करेंगी। इस जानकारी के बाद वह और उनका पूरा परिवार काफी खुश है।
(संवाददता-रशाद लारी की रिपोर्ट)
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