Devgad Alphonso Mango: देवगढ़ अल्फांसो या हापुस आमों पर क्यूआर कोड और बारकोड लगाने और खाने योग्य स्याही से इन पर निशान लगाने तक के प्रयोग मददगार साबित नहीं हुए। स्याही महंगी होने के बावजूद कोड को आसानी से कॉपी किया जा सकता था।
Devgad Alphonso Mango: देवगढ़ अल्फांसो या हापुस आम की एक बेहद प्रीमियम और महंगी किस्म है। इस आम के उत्पादक कई सालों से कई कोशिश कर चुके हैं कि व्यापारी हापुस या अल्फांसो आम के इस प्रीमियम वैरिएंट में सस्ती किस्मों को न मिला पाएं। लेकिन अभी तक सफलता बहुत कम मिली है। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ़ में उगाए जाने वाले ये आम अपने पतले छिलके, भरपूर खुशबू और बेहतरीन स्वाद के लिए जाने जाते हैं। साइज के आधार पर इन आमों की कीमत प्रति दर्जन 1,000 रु से लेकर 3,500 रु तक होती है।
ऊंची कीमतों के चलते इन प्रीमियम आमों के साथ नकली आम मिलाए जाते हैं। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार देवगढ़ तालुका आम उत्पादक सहकारी समिति के बोर्ड सदस्य ओमकार सप्रे के अनुसार कर्नाटक जैसे राज्यों से आम की सस्ती किस्में, जो केवल कुछ सौ रुपये प्रति दर्जन में बेची जाती हैं, उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिए देवगढ़ आमों के साथ मिला दी जाती हैं, जिससे ब्रांड को नुकसान पहुँचता है।
क्यूआर कोड और बारकोड भी फेल
इन आमों पर क्यूआर कोड और बारकोड लगाने और खाने योग्य स्याही से इन पर निशान लगाने तक के प्रयोग मददगार साबित नहीं हुए। स्याही महंगी होने के बावजूद कोड को आसानी से कॉपी किया जा सकता था।
अब, उत्पादकों ने एक नया टेक्नोलॉजी वाला तरीका निकाला है। वे हर आम पर एक यूनीक कोड वाला स्टिकर लगाते हैं, जिसका केवल आधा हिस्सा दिखाई देता है। इस तरीके को तैयार करने वाले प्रशांत यादव के मुताबिक स्टिकर के सामने वाले हिस्से पर यूनीक नंबर का आधा हिस्सा होता है, और बाकी संख्या स्टिकर को फाड़ने पर उसके पीछे होती है।
वे आगे कहते हैं कि आपको बस इतना करना है कि सील की तस्वीर और उसके पीछे लिखे नंबरों को किसान सहकारी समिति को भेजना है और आपको एक सर्टिफिकेशन मैसेज मिलेगा, जिससे न केवल किसान की पहचान होगी, बल्कि यह भी पता चल जाएगा कि आम देवगढ़ के किस हिस्से से आता है।
नया तरीका है कारगर
सप्रे के अनुसार किसान नए तरीके से खुश हैं क्योंकि इससे उन्हें अपने प्रीमियम ब्रांड को अलग पहचान दिलाने में मदद मिलती है और उपभोक्ताओं को असली देवगढ़ आम मिलते हैं। उन्होंने कहा, "हमें भी लाभ होता है क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी सारी उपज की कहाँ खपत हो रही है।
सप्रे ने कहा कि देवगढ़ हापुस के साथ सस्ती किस्मों को मिलाना एक छोटा मामला लग सकता है, लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह किस्म अन्य आमों की तुलना में प्रीमियम है।
कितना होता है उत्पादन
रत्नागिरी हापुस, जो एक प्रीमियम आम की किस्म है, देवगढ़ आमों की तुलना में 25% सस्ती है। देवगढ़ से हर साल 30,000 टन आम का उत्पादन होता है, मगर मिलावट ने किसानों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है क्योंकि उन्हें अक्सर अपनी उपज की असल कीमत नहीं मिलती है।
सप्रे के अनुसार, देवगढ़ हापुस रत्नागिरी जिले और गोवा में उगाए जाने वाले आम की किस्मों की ही प्रजाति है, लेकिन देवगढ़ की भौगोलिक स्थिति उन्हें अलग बनाती है। देवगढ़ में, उनके पास एक लैटेराइट चट्टानी क्षेत्र है, जिसमें उच्च लौह तत्व है। भूमि क्षेत्र समुद्र तल से ऊंचा है, जिससे जमीन में नमी की मात्रा कम हो जाती है। उच्च स्तर की धूप की गर्मी के साथ, यह प्रकृति सुगंध और स्वाद के अनूठे संयोजन में योगदान देती है।
इन आम के उत्पादन में 2000 किसान लगे हैं
सप्रे ने कहा कि देवगढ़ में लगभग 2,000 आम किसान हैं और वे सभी अब इस सील के साथ अपने आम बेचेंगे। उन्होंने कहा हमने भौगोलिक संकेत रजिस्ट्रार से बात की है और हमारे अल्फांसो के लिए जीआई (भौगोलिक संकेत) की सुरक्षा की शर्तों के अनुसार, हम देवगढ़ के सभी किसानों के लिए यह अनिवार्य करने जा रहे हैं कि वे अपने आमों पर यह सील लगाएं, ताकि उन्हें अपने आमों की पहचान देवगढ़ अल्फांसो के रूप में करानी पड़े।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | बिजनेस (business News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |