Gandhi Jayanti: जिस नील ने मोहनदास को बनाया महात्मा गांधी, अब उसी से जमकर कमाई कर रहे हैं किसान
Mahatma Gandhi Champaran Movement: पहला सत्याग्रह गांधी जी ने चंपारन (बिहार) में नील की खेती करने वाले किसानों के लिए किया था, जिसकी सफलता के बाद गांधी जी को 'महात्मा' की उपाधि मिली और बापू भी कहा जाने लगा।



महात्मा गांधी का चंपारण आंदोलन
- नील की खेती से किसान मालामाल
- कभी अंग्रेज जबरन करवाते थे खेती
- नील की खेती में होता है जैविक खाद का इस्तेमाल
Mahatma Gandhi Champaran Movement: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की याद में गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) मनाई जाती है। इस मौके पर गांधी जी के पहले सत्याग्रह को जरूर याद किया जाता है। ये सत्याग्रह गांधी जी ने चंपारन (बिहार) में नील की खेती करने वाले किसानों के लिए किया था, जिसकी सफलता के बाद गांधी जी को 'महात्मा' की उपाधि मिली और बापू भी कहा जाने लगा।
अंग्रेज भारतीय किसानों से नील की खेती जबरन करवाते थे। पर किसानों को इससे जमीन के बंजर होने का डर रहता था। हालांकि आज हालात बदल गए हैं।
जमीन कर देते थे नीलाम
नील की खेती भारत में 1777 में बंगाल में शुरू हुई थी। दरअसल नील की खेती से जमीन बंजर हो जाती थी। इसी वजह से अंग्रेज भारतीय किसानों से उनकी जमीनों पर नील की खेती जबरन करवाते ताकि उनके अपने देश में खेती की जमीनें उपजाऊ रहें। यूरोप में नील की मांग बहुत अधिक होने के चलते वे किसानों पर नील की खेती का दबाव बनाते। किसानों को मार्केट रेट का केवल 2-3 फीसदी ही मिलता था।
मना करने वालों किसानों को सजा मिलती और उनकी जमीन कर नीलाम कर दी जाती। मगर अब हालात बदल गए हैं। आज नील की खेती करने वाले किसान मालामाल हैं। इसकी सबसे अहम वजह तकनीक है।
कहां-कहां होती है खेती
- बिहार
- बंगाल
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- उत्तराखंड
ये है प्रॉसेस
- नील के पौधे 2 से 3 मीटर तक के होते हैं
- उन पर बैंगनी और गुलाबी रंग के फूल आते हैं
- इन फूलों से नेचुरल नीला रंग निकलता है
- इसका उपयोग डाई और कपड़े रंगने का नील बनाया जाता है
कितनी होती है कमाई
एक रिपोर्ट के अनुसार 1 एकड़ जमीन पर नील की 700 किलो सूखी पत्तियों का प्रोडक्शन हो सकता है। एक एकड़ पर 8 से 10 हजार रु का खर्च आता है। इस पर दो बार फसल से किसानों को 30 से 35 हजार तक का प्रॉफिट मिल सकता है।
अब नील की खेती में जैविक खाद इस्तेमाल होती है, जिससे जमीन उपजाऊ होती है, क्योंकि जमीन का नाइट्रोजन लेवल बढ़ता है।
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