ATM पर मिल सकते हैं नकली बैंकर, एक फेवीक्विक उड़ा देगा पैसा

ATM Fraud : यूपी के गाजियाबाद के कई इलाकों में एक गैंग सक्रिय था, जो कि एटीएम लोकेशन पर जाकर, नकली बैंकर बनकर फ्रॉड करता था। इसके लिए वह सबसे पहले एटीएम के अंदर बने कॉर्ड रीडर स्पेस में फेवीक्विक लगा दिया करते थे। और उस एटीएम में किसी इमरजेंसी में कॉल करने के लिए एक नंबर लिख देते थे।

ATM Fraud

एटीएम फ्रॉड

मुख्य बातें
  • RBI की गाइडलाइन के अनुसार, फ्रॉड होते ही कस्टमर को तुरंत बैंक में शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
  • फेवीक्विक को हथियार बनाकर, गैंग करता था फ्रॉड
  • वरिष्ठ नागरिक और कम टेक सेवी लोग बनते हैं आसान शिकार

ATM Fraud Case: हाल ही में गाजियाबाद पुलिस ने ATM से पैसे निकालने वाले ऐसे गैंग को पकड़ा है, जिसके तरीके ने पुलिस को भी हैरान कर दिया है। घोखेबाजों ने इतने अलग और शातिर तरह से प्लानिंग के साथ फ्रॉड किया कि पुलिस को भी यकीन नहीं हो रहा था, कि ऐसे भी कोई फ्रॉड को अंजाम दे सकता है। फ्रॉड करने वालों ने इसके लिए फेवीक्विक का इस्तेमाल किया और उसके जरिए लोगों के बैंक अकाउंट से लाखों रुपये उड़ा दिए। पुलिस के अनुसार इसके लिए धोखेबाजों ने एकदम नायाब तरीका अपनाया

नकली बैंकर बनकर करते फ्रॉड

रिपोर्ट्स के अनुसार गाजियाबाद के कई इलाकों में एक गैंग सक्रिय था, जो कि एटीएम लोकेशन पर जाकर, नकली बैंकर बनकर फ्रॉड करता था। इसके लिए वह सबसे पहले एटीएम के अंदर बने कॉर्ड रीडर स्पेस में फेवीक्विक लगा दिया करते थे। और उस एटीएम में किसी इमरजेंसी में कॉल करने के लिए एक नंबर लिख देते थे।

इसके बाद जब कोई व्यक्ति एटीएम में पैसे निकालने के लिए जाता, तो जैसे ही वह कार्डरीडर में अपना एटीएम कार्ड स्वैप करता, तो वह कार्ड रीडर में लगे फेवीक्विक की वजह से फंस जाता था। ऐसे में परेशान व्यक्ति फिर एटीएम में लिखे नंबर पर संपर्क करता था।

उसके संपर्क के बाद, शातिर अपराधियों का गैंग, बैंकर बनकर एटीएम पहुंच जाता था, और वह फिर एटीएम कार्ड निकालने के नाम पर, उस वयक्ति से पिन नंबर आदि पूछ लेते थे। और इसी दौरान उसके एटीएम को बदल देते थे। और बाद में फिर पैसे निकाल लेते थे। वहीं अगर एटीएम नहीं बदल पाते, तो डिटेल हासिल कर ऑनलाइन फ्रॉड कर लिया करते थे।

फ्रॉड के शिकार होने पर क्या करें

RBI की गाइडलाइन के अनुसार, फ्रॉड होते ही कस्टमर को तुरंत बैंक में शिकायत दर्ज करनी चाहिए। क्योंकि शिकायत दर्ज होने के बाद ट्रांजेक्शन की पूरी जिम्मेदारी बैंक पर होती है। लेकिन यदि आपने शिकायत में देरी तो जिम्मेदारी कस्टमर की हो जाती है। इस स्थिति में बैंक पर रिफंड करने की कानूनी बाध्यता लागू नहीं होती।

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