गौतम अडानी को है इस बात का अफसोस, दुनिया के तीसरे सबसे रईस शख्स पूरी नहीं कर पाए...
Gautam Adani: अडानी ग्रुप के तहत आज दुनिया की सबसे बड़ी सोलर एनर्जी कंपनी, भारत का सबसे बड़ा एयरपोर्ट और बंदरगाह हैं। ग्रुप का बिजनेस एनर्जी से लेकर सीमेंट उद्योग तक फैला हुआ है।
Gautam Adani:गौतम अडानी को है इस बात का अफसोस, दुनिया के तीसरे सबसे रईस शख्स पूरी नहीं कर पाए...
नई दिल्ली। अडानी ग्रुप (Adani Group) के प्रमुख गौतम अडानी (Gautam Adani) सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के सबसे धनी व्यक्ति हैं। गौतम अडानी को देश और दुनिया में बड़ी कामयाबी मिली है, लेकिन उन्हें एक चीज का अब भी बहुत अफसोस हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि उन्हें अपनी कॉलेज की पढ़ाई (Gautam Adani Education) पूरी नहीं कर पाने का आज भी अफसोस है।
ऐसे शुरू हुई सफलता की कहानी
गौतम अडानी साल 1978 में सिर्फ 16 साल की उम्र में औपचारिक शिक्षा को बीच में ही छोड़कर अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चले गए थे। इसके तीन साल बाद उन्हें कारोबार में पहली कामयाबी मिली जब एक जापानी खरीदार को हीरे बेचने के लिए उन्हें कमीशन के तौर पर 10,000 रुपये मिले। इसके साथ ही एक उद्यमी के तौर पर अडानी का सफर शुरू हुआ और आज वह दुनिया के तीसरे सर्वाधिक अमीर उद्यमी बन चुके हैं। फिर भी उन्हें कॉलेज की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने का अफसोस है।
अडानी ने गुजरात में विद्या मंदिर ट्रस्ट पालनपुर के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि शुरुआती अनुभवों ने उन्हें बुद्धिमान बनाया लेकिन औपचारिक शिक्षा ज्ञान का विस्तार तेजी से करती है। बनासकांठा के शुरुआती दिनों के बाद वह अहमदाबाद चले गए थे जहां उन्होंने माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के लिए चार साल बिताए। उन्होंने कहा, ''मैं सिर्फ 16 साल का था, जब मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ने और मुंबई जाने का फैसला किया... एक सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता है - मैं मुंबई क्यों चला गया और अपने परिवार के साथ काम क्यों नहीं किया? युवा इस बात से सहमत होंगे कि एक किशोर लड़के की उम्मीद और आजादी की इच्छा को काबू कर पाना मुश्किल है। मुझे बस इतना पता था कि - मैं कुछ अलग करना चाहता था और यह मैं अपने दम पर करना चाहता था।''
जापानी खरीदार के साथ हुआ था उनका पहला सौदा
उन्होंने कहा, "मैंने रेलगाड़ी का एक टिकट खरीदा और गुजरात मेल से मुंबई जाने के लिए रवाना हो गया। मुंबई में मेरे चचेरे भाई प्रकाशभाई देसाई ने मुझे महेंद्र ब्रदर्स में काम दिलाया, जहां मैंने हीरों के व्यापार की बारीकियां सीखनी शुरू की। मैंने जल्द ही उस व्यवसाय को समझ लिया और लगभग तीन वर्षों तक महेंद्र ब्रदर्स के साथ काम करने के बाद मैंने झवेरी बाजार में हीरे का अपना ब्रोकरेज शुरू किया।'' उन्होंने कहा, ''मुझे अभी भी वह दिन याद है, जब मैंने एक जापानी खरीदार के साथ अपना पहला सौदा किया था। मैंने 10,000 रुपये का कमीशन बनाया था।'' यह एक उद्यमी के रूप में उनकी यात्रा की शुरुआत थी।
उन्होंने कहा, ''मुझसे एक और सवाल अक्सर किया जाता है कि क्या मुझे इस बात का कोई पछतावा है कि मैं कॉलेज नहीं गया। अपने जीवन और इसमें आए विभिन्न मोड़ों पर विचार करते हुए, मैं यह मानता हूं कि अगर मैंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की होती तो मुझे फायदा होता। मेरे शुरुआती अनुभवों ने मुझे बुद्धिमान बनाया, लेकिन अब मुझे एहसास होता है कि औपचारिक शिक्षा तेजी से किसी के ज्ञान का विस्तार करती है।''
(एजेंसी इनपुट्स के साथ)
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