बचपन के दोस्त रतन टाटा से ले लिया था पंगा,ये बिजनेसमैन कहलाता है कॉरपोरेट जगत का समुराई
Nulsi Wadia and Ratan tata freindship and their controversy: वाडिया ग्रुप का इतिहास करीब 290 साल पुराना है। फोर्ब्स के अनुसार वाडिया ग्रुप जहाज निर्माण के कारोबार में 1736 से जुड़ा हुआ था। और उसके बाद उसने टेक्सटाइल और एफएमसीजी, एविएशन बिजनेस में कदम रखा।
नुल्सी वाडिया और रतन टाटा की दोस्ती में क्यों आई थी दरार
Nulsi Wadia and Ratan tata freindship and their controversy:वाडिया ग्रुप की एयरलाइन गोफर्स्ट (Go First) ग्राउंडेड हो गई है और उसने दिवालिया होने के लिए अप्लाई कर दिया है। कंपनी के सामने कैश फ्लो का भारी संकट है। इस कारण तीन दिन तक के लिए उसने सभी फ्लाइट कैंसिल कर दी है। आगे क्या होगा इसको लेकर असमंजस है। Go First का संकट में फंसना 79 साल के नुस्ली वाडिया के लिए भी झटका है। जिन्होंने ब्रिटेनिया (Britannia Industries),बॉम्बे डाइंग (Bombey Dyeing) जैसी कंपनियां खड़ी की। इस समय उनकी नेटवर्थ करीब 33 हजार करोड़ रुपये है। नुस्ली (Nusli Wadia) को भारतीय कॉरपोरेट जगत का समुराई भी कहा जाता है। वह रतन टाटा (Ratan Tata) के बचपन के दोस्त भी है। लेकिन उसी दोस्त पर, एक समय उन्होंने मुकदमा दर्ज कर दिया था। आइए जानते हैं वो कानूनी लड़ाई जो कॉरपोरेट जगत में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही..
कौन है वाडिया ग्रुप
वाडिया ग्रुप का इतिहास करीब 290 साल पुराना है। फोर्ब्स के अनुसार वाडिया ग्रुप जहाज निर्माण के कारोबार में 1736 से जुड़ा हुआ था। और उसके बाद उसने टेक्सटाइल और एफएमसीजी, एविएशन बिजनेस में कदम रखा। ग्रुप की वेबसाइट के अनुसार इनमें गो फर्स्ट के अलावा बॉम्बे बर्मा ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन, बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड, ब्रिटानिया, नेशनल पेरोक्साइड, बॉम्बे रियल्टी और वाडिया-टेक्नो इंजीनियरिंग सर्विसेज शामिल हैं। और वाडिया ग्रुप के चेयरमैन नुस्ली वाडिया हैं। जिनका नाता पाकिस्तान के कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना से भी है। जिन्ना नुस्ली वाडिया के नाना थे।
रतन टाटा के बचपन के यार
नुस्ली वाडिया टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा के बचपतन के दोस्त हैं। और दोनों की दोस्ती बड़ी गहरी रही है। उस दोस्ती की नजीर उस किस्से से भी सामने आती है कि एक समय नुस्ली वाडिया टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनने की रेस में सबसे आगे थे। लेकिन अपने दोस्त रतन टाटा के लिए वह रास्ते से हट गए। वाडिया जेआरडी टाटा कोअपना गुरू और मार्गदर्शक मानते थे। और बाद में टाटा ग्रुप में रतन टाटा को मजबूत करने में भी उनकी अहम भूमिका थी। कॉरपोरेट जगत में ऐसा कहा जाता है कि एक समय रतन टाटा, नुस्ली वाडिया से सभी अहम फैसलों को लेकर चर्चा करते थे।
फिर क्यों आई दूरी
नुस्ली वाडिया टाटा ग्रुप की कंपनियों टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और टाटा केमिकल्स के बोर्ड में बतौर स्वतंत्र निदेशक शामिल थे। लेकिन 2007 से रतन टाटा के कुछ बिजनेस फैसलों के लेकर वाडिया ने ऐतराज जताना शुरू कर दिया था। इसमें टाटा स्टील द्वारा कोरस स्टील का अधिग्रहण, नैनो प्रोजेक्ट शुरु करने जैसे फैसले अहम थे। हालांकि अभी तक यह केवल कारोबारी गैर रजामंदी की बात थी। लेकिन जब साल 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। तो नुस्ली खुलकर सामने आ गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाना एक व्यक्ति की बदले की कार्रवाई का नतीजा था। यह फैसला लेते वक्त जेआरडी टाटा के सिद्धांतों और नीतियों को भुला दिया गया। इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा था कि मुझे गर्व है कि मैं अकेला स्वतंत्र निदेशक था जिसे मिस्त्री पर भरोसा था और उन्हें हटाने का विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट में दर्ज किया केस
मिस्त्री को हटाने के बाद वाडिया को इंडियन होटल्स, टीसीएस, टाटा मोटर्स और टाटा स्टील समेत अन्य कंपनियों के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक पद हे हटा दिया गया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज करते हुए यह आरोप लगाया था कि सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाने के बाद रतन टाटा और टाटा ग्रुप के बाकी लोगों ने मेरे लिए अपमानजनक शब्द कहे थे। मुझ पर मिस्त्री से मिले होने के आरोप लगाए गए थे। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट से उन्होंने मानहानि का केस वापस ले लिया था।
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प्रशांत श्रीवास्तव author
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