इन 2 भाइयों ने पूरे भारत को बना दिया नमकीन का दीवाना, हल्दीराम-बीकाजी की गजब है कहानी
Haldiram & Bikaji Success Story: भारत में नमकीन सेगमेंट में दो सबसे बड़े नाम हैं हल्दीराम और बीकाजी। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि बीकाजी भी हल्दीराम फैमिली बिजनेस से ही निकली हुई कंपनी है।

हल्दीराम और बीकाजी की सफलता और अलग होने की कहानी
- हल्दीराम की शुरुआत 1919 में हुई
- बीकाजी ब्रांड इसी कंपनी में से निकला है
- गंगा बिशन अग्रवाल ने की थी शुरुआत
Haldiram & Bikaji Success Story: भारत में नमकीन सेगमेंट में दो सबसे बड़े नाम हैं हल्दीराम (Haldiram) और बीकाजी (Bikaji)। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि बीकाजी भी हल्दीराम फैमिली बिजनेस से ही निकली हुई कंपनी है। बीकाजी शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनी है, जबकि हल्दीराम के भी लिस्ट होने की चर्चा है। इसके लिए 3 अलग-अलग भाइयों द्वारा चलाए जा रहे दिल्ली और नागपुर बिजनेस का विलय प्रॉसेस में है।
इस साल अप्रैल में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने हल्दीराम स्नैक्स (Haldiram Snacks) और हल्दीराम फूड्स (Haldiram Foods) का हल्दीराम स्नैक्स फूड (Haldiram Snacks Food) में विलय करने को मंजूरी दे दी थी। आगे जानिए आखिर परिवार के किस सदस्य के पास कौन सी कंपनी या सब्सिडियरी का कंट्रोल है।
नागपुर और दिल्ली में बिजनेस
नागपुर स्थित हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल सबसे बड़े भाई शिव किशन अग्रवाल चलाते हैं, जिनके पिता मूलचंद और दादा हैं गंगा बिशन अग्रवाल, जिन्हें हल्दीराम जी कहा जाता था। वहीं दिल्ली स्थित हल्दीराम स्नैक्स उनके छोटे भाई मनोहर और मधुसूदन अग्रवाल चलाते हैं। शिव किशन वो हैं, जिन्होंने बीकाजी ब्रांड की शुरुआत की।
अब आप ये सोच रहे होंगे कि क्या दो हल्दीराम कंपनियां हैं और बीकाजी ब्रांड और बीकाजी फूड्स इंटरनेशनल (Bikaji Foods International) में क्या अंतर है। आगे जानिए पूरी डिटेल।
कहानी 1919 से हुई शुरू
1919 में गंगा बिशन अग्रवाल ने अपने पिता के भुजिया बिजनेस में रुचि दिखाई। गंगा बिशन ने छोटी उम्र में ही भुजिया का अपना वर्जन बनाने का फैसला किया, जो बेसन से नहीं बल्कि मोठ के आटे से बनी पतली भुजिया थी। उनका प्रयोग सफल रहा।
हल्दीराम के तीन बेटे
गंगा बिशन यानी हल्दीराम के तीन बेटे थे - मूलचंद, सत्यनारायण और रामेश्वरलाल। मूलचंद के चार बेटे हैं। 1950 के दशक में गंगा बिशन अपने बेटों सत्यनारायण और रामेश्वरलाल के साथ कोलकाता में पहुंचे और "हल्दीराम भुजियावाला" ब्रांड की स्थापना की। उनके साथ सबसे बड़े पोते शिव किशन भी थे।
मूलचंद, उनकी पत्नी और तीन छोटे बेटे बीकानेर की दुकान संभालते थे। 1960 के दशक में गंगा बिशन, रामेश्वरलाल और सत्यनारायण को बागडोर सौंपकर बीकानेर लौट आए। सत्यनारायण ने "हल्दीराम एंड संस" शुरू किया और परिवार से अलग हो गए, लेकिन अपने पिता की सफलता को दोहराने में असफल रहे।
भाई ने भाई तोड़ा नाता
रामेश्वरलाल ने अपने भाई मूलचंद से भी नाता तोड़ लिया, जिससे कोलकाता और बीकानेर में कारोबार एक-दूसरे से अलग हो गए। 1980 के दशक में शिव किशन अग्रवाल और उनकी बहन सरस्वती ने अपने बिजनेस को एक नए राज्य - महाराष्ट्र, जहां नागपुर में उनका एक कामयाब बिजनेस था, तक बढ़ाया।
वहीं मूलचंद के सबसे छोटे बेटे - मनोहरलाल और मधुसूदन - 1984 में ब्रांड को नई दिल्ली ले गए। इस कदम ने ब्रांड को एक राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। मूलचंद के बेटे शिव रतन ने बीकानेर में कामकाज संभाला और उसे बीकाजी नाम से बढ़ाया, जो नवंबर 2022 में लिस्ट हुई।
कोर्ट में चला मुकदमा
भाई और उनके कजिन प्रभु, जिन्हें प्रभुजी के नाम से जाना जाता है, 1990 के दशक की शुरुआत में "हल्दीराम भुजियावाला" के नाम से बिजनेस करने के अधिकार को लेकर कानूनी लड़ाई में पहुंच गए।
''भुजिया बैरन्स: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ हाउ हल्दीराम बिल्ट ए 5000 करोड़ एम्पायर'' किताब के अनुसार, इस कानूनी लड़ाई के बीच दिल्ली बिजनेस ने अपना नाम बदलकर "हल्दीराम" रख लिया।
दशकों से चली आ रही अदालती 2010 में खत्म हुई और प्रभु और उनके भाई, जो कोलकाता यूनिट चलाते थे, को दिल्ली में "Haldiram's" या "Haldiram" नाम का उपयोग करने से रोक दिया गया।
अब किसके पास कौन-सी यूनिट
- दिल्ली इकाई : मनोहरलाल और मधुसूदन अग्रवाल
- नागपुर इकाई : शिव किशन अग्रवाल
- बीकानेर इकाई : शिव रतन अग्रवाल
- कोलकाता इकाई : रामेश्वरलाल के बेटे प्रभु अग्रवाल
किसकी कितनी कमाई
सीएनबीसी टीवी 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार इनमें, कमाई के मामले में दिल्ली 5,000 करोड़ रुपये के साथ सबसे बड़ी यूनिट है। इसके बाद नागपुर (4,000 करोड़ रुपये) और बीकानेर (1,600 करोड़ रुपये) हैं।
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