ISRO को एक कंपनी के रूप में जानें, कहां से करता है कमाई, गोदरेज से लेकर ये कंपनियां क्यों पार्टनर
How ISRO Generate Revenue: चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने अहम भूमिका निभाई है। इसने नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेट्रीज को कई कंपोनेंल की सप्लाई की, जिससे चंद्रयान-3 मिशन को महत्वपूर्ण सहायता मिली।
इसरो कैसे कमाई करती है
- इसरो कई तरीकों से करती है कमाई
- सैटेलाइट भेजकर ग्लोबल क्लाइंट्स से आता है रेवेन्यू
- और भी कमाई के हैं कई रास्ते
How ISRO Generate Revenue: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत की स्पेस एजेंसी है। इसरो भारत और मानव जाति के लिए आउटर स्पेस के बेनेफिट्स का लाभ उठाने के लिए विज्ञान, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में काम करती है और ये भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (DoS) की एक यूनिट है।
हाल ही में चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन के लिए इसरो को काफी सराहा गया। चंद्रयान-3 चांद पर खोजबीन करने के लिए इसरो द्वारा लॉन्च किया गया तीसरा चंद्र मिशन है।
लेटेस्ट अपडेट के अनुसार चंद्रयान 3 मिशन का लैंडर मॉड्यूल चांद की सतह से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर है और चांद के चक्कर लगा रहा है। ये 23 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके साथ ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। मगर क्या आप जानते हैं कि इसरो की इस कामयाबी की कहानी कैसे शुरू हुई और किसने इसे शुरू में सहायता दी।
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चंद्रयान के पीछे इस कंपनी का हाथ
चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (Hindustan Aeronautics) ने अहम भूमिका निभाई है। इसने नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेट्रीज को कई कंपोनेंल की सप्लाई की, जिससे चंद्रयान-3 मिशन को महत्वपूर्ण सहायता मिली।
एलएंडटी और गोदरेज भी हैं पार्टनर
एलएंडटी (Larsen & Toubro) लॉन्च व्हीकल्स के क्षेत्र में करीब 50 वर्षों से इसरो के साथ साझेदारी की हुई है। वहीं इसरो की मदद से गोदरेज एयरोस्पेस इंजनों की एसेंबलिंग सीखने और आगे बढ़ने की योजना बना रही है।
एलएंडटी और गोदरेज एयरोस्पेस के अलावा एमटीएआर टेक्नोलॉजीज (MTAR Technologies), ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) और ASACO ने भी अलग-अलग इक्विमेंट के लिए इसरो के साथ पार्टनरशिप की हुई है।
कैसे करती है कमाई
इसरो एक कंपनी के रूप में कई तरीकों से कमाती भी है। जैसे कि 2022 में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बताया था कि ग्लोबल क्लांट्स के लिए सैटेलाइट लॉन्च कर इसरो ने 2320 करोड़ रु कमाए। इसके अलावा इसरो रिमोट सेंसिंग डेटा, कम्युनिकेशन सैटेलाइट सर्विसेज, नेविगेशन सर्विसेज और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एंड कंसल्टेंसी से कमाती है।
विक्रम साराभाई की लीडरशिप में हुई शुरुआत
विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) के नेतृत्व में इसरो को जब 1969 में जब शुरू किया गया तो उस समय देश को अंतरिक्ष में रॉकेट से ज्यादा टेबल पर खाने की जरूरत थी। तब इसरो ने यह सुनिश्चित किया है कि वह इस काम में किए गए 'निवेश' को सही ठहराए।
किसने की मदद
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को शुरू में अंतरिक्ष तक पहुंचने के लिए विदेशी सहायता लेनी पड़ी और 1975 में एक विदेशी लॉन्चपैड से सोवियत रॉकेट का उपयोग करके अपनी पहली सैटेलाइट, आर्यभट्ट लॉन्च की।
1975 में बनाया रॉकेट
ऐसा नहीं है कि 1975 तक इसरो ने रॉकेट इंजन डेवलप करने के बारे में नहीं सोचा था। ये काम चुपचाप शुरू हो गया था, और इसरो ने 1963 में तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) से पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च किया था।
उसके बाद इसरो ने पीछे मुड़कर नहीं और चांद के अलावा मंगल (Mars) तक के अपने मिशन में कामयाबी हासिल की।
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