चालू वित्त वर्ष में 7 प्रतिशत तक आर्थिक वृद्धि हासिल कर सकता है भारत, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट का दावा
Economic Growth Of India: वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक हाल के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में आर्थिक स्थिरता की बुनियाद मजबूत है। चालू वित्त वर्ष में 6.5 से 7.0 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल कर सकता है।
भारत की आर्थिक ग्रोथ का अनुमान
Economic Growth Of India: वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि देश चालू वित्त वर्ष में 6.5 से 7.0 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के रास्ते पर बढ़ रहा है। अगस्त तक के जीएसटी, पीएमआई, बिजली खपत जैसे महत्वपूर्ण आंकड़ों से यह संकेत मिलता है। मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक हाल के घटनाक्रमों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश में वृहद आर्थिक स्थिरता की बुनियाद मजबूत है। स्थिर वृद्धि, निवेश, रोजगार और महंगाई दर के रुख, मजबूत और स्थिर वित्तीय क्षेत्र तथा संतोषजनक विदेशी मुद्रा भंडार समेत मजबूत बाह्य खाते के साथ भारत की बुनियाद मजबूत है।
अगस्त की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वृहद आर्थिक मोर्चे पर एक चुनौती वैश्विक आर्थिक संभावनाओं में जारी अनिश्चितता से निपटने की है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में नरमी की आशंकाओं और वैश्विक स्तर पर जारी चुनौतियों के बीच हमें दुनिया के विभिन्न देशों में नीतिगत दर में कटौती के एक चक्र का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि और अगस्त तक महत्वपूर्ण आंकड़ों से मिले संकेत यह अनुमान जता रहे हैं कि वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 से 7.0 प्रतिशत रहेगी। वित्त वर्ष 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में आर्थिक वृद्धि का यही अनुमान जताया गया है। इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष की बची हुई अवधि में यह उम्मीद है कि सार्वजनिक व्यय बढ़ेगा। इससे वृद्धि और निवेश को गति मिलेगी।
कृषि क्षेत्र में, खरीफ फसलों का रकबा अधिक रहा है। जलाशयों में पर्याप्त पानी रबी फसलों के लिए अच्छा संकेत है। इससे उपज अच्छी रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बारिश का असमान वितरण कुछ क्षेत्रों में कृषि उत्पादन पर प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, अगर कोई गंभीर प्रतिकूल जलवायु चुनौती सामने नहीं आती है तो ग्रामीण आय और मांग मजबूत होनी चाहिए और खाद्य मुद्रास्फीति कम होगी।
कुछ क्षेत्रों में दबाव के शुरुआती संकेत भी हैं। उदाहरण के लिए, वाहन डीलरों के संगठन फाडा (फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन) ने यात्री वाहनों की बिक्री में कमी और डीलर के स्तर पर कारों की संख्या बढ़ने का संकेत दिया है।
नीलसन आईक्यू के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री की वृद्धि वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में धीमी हुई है। हालांकि, त्योहारों की शुरुआत के साथ यह सब अस्थायी हो सकता है। लेकिन इनपर नजर रखने की जरूरत है। इसके अलावा, चालू वित्त वर्ष में राज्यों के पूंजीगत व्यय में गिरावट आई है।
इसमें कहा गया है कि दुनियाभर के शेयर बाजार तेजी से बढ़ रहे हैं। कुछ देशों में हाल की नीतिगत घोषणाओं से इसमें मजबूती आई है। रिपोर्ट के अनुसार परिणामस्वरूप, इसमें सुधार का जोखिम बढ़ गया है। यदि जोखिम सामने आता है, तो इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, इन चिंताओं के बीच कच्चे तेल की कीमतें अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर हैं।
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