Red Sea Trade Route: लाल सागर में संकट से भारत होगा प्रभावित, 50% निर्यात पर पड़ेगा असर
Red Sea Trade Route: घरेलू कंपनियां यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के साथ व्यापार करने के लिए स्वेज नहर के जरिए लाल सागर मार्ग का उपयोग करती हैं।

लाल सागर ट्रेड रूट
- लाल सागर में संकट है बरकरार
- भारत का आयात-निर्यात होगा प्रभावित
- भारत का आधा निर्यात इसी रूट से होता है
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स्वेज नहर का उपयोग
घरेलू कंपनियां यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के साथ व्यापार करने के लिए स्वेज नहर के जरिए लाल सागर मार्ग का उपयोग करती हैं। पिछले वित्त वर्ष में देश से 18 लाख करोड़ रुपये का निर्यात (50 प्रतिशत) और 17 लाख करोड़ रुपये का आयात (30 प्रतिशत) इन क्षेत्रों से हुआ था।
समुद्री रास्ते से कितना आयात-निर्यात
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में देश का कुल माल व्यापार 94 लाख करोड़ रुपये का रहा था। इस मूल्य का 68 प्रतिशत और मात्रा (Volume) का 95 प्रतिशत समुद्री मार्ग से हुआ था। भारत 30 प्रतिशत डीएपी सऊदी अरब से, 60 प्रतिशत रॉक फॉस्फेट जॉर्डन एवं मिस्र से और 30 प्रतिशत फॉस्फोरिक एसिड जॉर्डन से आयात करता है।
कृषि वस्तुएं और समुद्री फूड प्रोडक्ट
कृषि वस्तुओं और समुद्री फूड प्रोडक्ट जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों पर माल के खराब नेचर और/या कम मार्जिन के कारण भारी प्रभाव देखने को मिल सकता है, जो बढ़ती माल ढुलाई लागत से जोखिमों की भरपाई करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
नवंबर, 2023 से चीन उत्तरी यूरोप कंटेनर माल ढुलाई रेट 300 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 6,000-7,000 डॉलर/टीईयू हो गई हैं।
कपड़ा, रसायन और कैपिटल गुड्स
दूसरी ओर, कपड़ा, केमिकल और कैपिटल गुड्स जैसे सेक्टरों में काम करने वाली कंपनियों पर तुरंत प्रभाव नहीं पड़ सकता है, क्योंकि उनके पास हाई कॉस्टर को वहन करने की बेहतर क्षमता है, या कमजोर बिजनेस साइकिल भी इसका एक कारण है। लेकिन लंबे समय तक चलने वाला संकट इन सेक्टरों को भी कमजोर बना सकता है क्योंकि ऑर्डर घटने से उनकी वर्किंग कैपिटल का साइकिल प्रभावित होगा।
बढ़ गया सप्लाई का समय
पोत परिवहन जैसे कुछ क्षेत्रों को बढ़ती माल ढुलाई दरों से लाभ हो सकता है। फार्मा, धातु और उर्वरक क्षेत्र की कंपनियों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। नवंबर, 2023 से लाल सागर क्षेत्र मार्ग से जाने वाले जहाजों पर बढ़ते हमलों ने जहाजों को ‘केप ऑफ गुड होप’ के वैकल्पिक लंबे मार्ग पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। इससे न केवल माल की आपूर्ति का समय 15-20 दिन तक बढ़ गया है, बल्कि माल ढुलाई दरों और बीमा प्रीमियम में वृद्धि के कारण पारगमन लागत में भी काफी वृद्धि हुई है।
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