क्या भारत पर भी मंदी का साया ! वित्त मंत्री का बयान और ये आकंड़े बताएंगे तस्वीर

Indian Economy And Recession Challenge: रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से बदलते फैक्टर का असर भारतीय रूपये, विदेशी मुद्रा भंडार और निर्यात पर भी दिख रहा है। महंगाई 5 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। और औद्योगिक उत्पादन में 18 महीने में गिरावट आई है। जो भारतीय अर्थव्यस्था के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

India And Recession Challenge

भारत के सामने बढ़ी आर्थिक चुनौती

मुख्य बातें
  • महंगाई से मार्च तक राहत नहीं मिलने वाली है।
  • आईएमएफ ने भारत की GDP ग्रोथ रेट का अनुमान घटा दिया है।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बोली काफी ध्यान से बजट बनाना होगा।
Indian Economy And Recession Challenge:दुनिया आर्थिक मंदी के कितन करीब है और उसका भारत पर किस तरह से असर होने वाला है। पिछले दो दिनों में 2 दिग्गजों के बयान काफी कुछ इशारा कर रहे हैं। पहला बयान दिग्गज अमेरिकी निवेशक रे डालियो (Ray Dalio) का है। जिसमें उन्होंने कहा है कि अमेरिका का फेडरल रिजर्व बैंक जिस तरह से लगातार कर्ज महंगा कर रहा है, उससे एक भयावह तूफान बनता नजर आ रहा है, जो अपने साथ बड़े आर्थिक दर्द लेकर आएगा।
दूसरा बयान भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) का है। उन्होंने बृहस्पितवार को कहा है कि भारत का अगला आम बजट (Budget) बहुत ही ध्यान से कुछ इस प्रकार बनाना होगा जिससे देश की ग्रोथ की रफ्तार कायम रहे और कीमतें भी काबू में रहें।
रे डालियो के बयान से साफ है कि दुनिया आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है। जबकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय इकोनॉमी के सामने खड़ी होती चुनौतियों को सामने रख दिया है। क्योंकि किसी भी देश के लिए बढ़ती महंगाई के बीच ग्रोथ को बरकरार रखना बहुत ही चुनौती भरा काम है। शायद इसी वजह से विश्व बैंक, IMF और भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत की ग्रोथ रेट का अनुमान घटा दिया है।
महंगाई पर मार्च तक राहत नहीं
इस समय महंगाई (Inflation) 5 महीने के उच्चतम स्तर पर है। बुधवार को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सितंबर में महंगाई दर (CPI)बढ़तर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई है। यह लगातार नौवां महीना है जब महंगाई दर रिजर्व बैंक के सामान्य स्तर (6 फीसदी) से ज्यादा है। कीमतें बढ़ने की सबसे बड़ी वजह खाद्य महंगाई दर है जो सितंबर में 8.60 फीसदी पर पहुंच गई। जबकि अगस्त में यह आंकड़ा 7.62 फीसदी था। इसी तरह कपड़े-जूते की कीमतों की महंगाई दर 10.17 फीसदी, ईंधन और बिजली की महंगाई दर 10.39 फीसदी पर पहुंच गई है।यानी गरीब तबके और मध्यम वर्ग पर महंगाई का सबसे ज्यादा बोझ पड़ रहा है।
परेशान करने वाली बात यह है कि महंगाई से फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली है। S&P ग्लोबल रेटिंग्स की सितंबर में जारी रिपोर्ट के अनुसार, अगले साल मार्च (2023) तक भारत में महंगाई दर 6.8 फीसदी पर बनी रहेगी। जिसके वित्त वर्ष 2023-24 में ही कम होकर 5 फीसदी पर आने की उम्मीद है। यानी आरबीआई जिस तरह महंगाई को काबू पाने के लिए कर्ज महंगा करने की पॉलिसी पर चल रहा है, वह उसे आगे भी बरकरार रख सकता है। अगर ऐसा होता है तो फिर कर्ज महंगा होगा। और कर्ज महंगा हुआ तो ग्रोथ में कमी आना तय है। जिसका सीधा असर नौकरियों और लोगों की इनकम पर पड़ेगा। CMIE के आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी दर 12 अक्टूबर को बढ़कर 7.32 फीसदी पर पहुंच गई है। जबकि सितंबर में यह 6.43 फीसदी थी।
भारत पर ग्लोबल फैक्टर का कैसे हो रहा है असर
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से बदलते फैक्टर का असर भारतीय रूपये, विदेशी मुद्रा भंडार और निर्यात पर भी दिख रहा है। 7 अक्टूबर को रुपया अपने रिकॉर्ड गिरावट पर पहुंच गया। रुपया उस समय डॉलर के मुकाबले 82.33 के स्तर पर पहुंच गया। इसका असर यह हो रहा है भारत का आयात महंगा होता जा रहा है। जिसकी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर हो रहा है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 30 सितंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 532.664 अरब डॉलर पर आ गया है। जिसमें पिछले 13 महीने में करीब 110 अरब डॉलर की कमी आई है।
इसके अलावा दुनिया में गिरती मांग की वजह से निर्यात में भी कमी आ रही है। अगस्त में पिछले 20 महीने में पहली बार निर्यात में गिरावट आई थी। इस अवधि में निर्यात 1.15 फीसदी गिरकर 33 अरब डॉलर पर आ गया था। जो कि सितंबर में पिछले साल 2021 के मुकाबले 3.52 फीसदी गिर कर 32.62 अरब डॉलर पर आ गया।
आर्थिक मोर्चे पर एक और चिंता बढ़ाने वाली खबर आई है। अगस्त में देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ने की बजाय घट गया। अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 0.8 फीसदी घट गया। जो पिछले 18 महीनों का सबसे निचला स्तर है। इससे पहले फरवरी 2021 में देश के औद्योगिक उत्पादन में 3.2 फीसदी की भारी गिरावट देखने को मिली थी। इसका मतलब है कि मांग कम होने से कंपनियों ने उत्पादन घटा दिया है।
इन्ही संकेतों के कारण आईएमएफ ने भारत की GDP ग्रोथ रेट का अनुमान साल 2022-23 के लिए 7.4 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया है। वहीं विश्व बैंक ने इसी अवधि के लिए 6.5 फीसदी ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है। अब देखना है कि वित्त मंत्री इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या कदम उठाती हैं।
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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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