Income Tax Rules: नया वित्तीय वर्ष का हो गया आगाज, इनकम टैक्स के ये 6 नियम आपके लिए जानना जरूरी

Income Tax Rules: नया वित्तीय वर्ष 2024-25, एक अप्रैल से शुरू हो गया है। हालांकि इनकम टैक्स नियमों में कोई बदलाव नहीं हुए हैं फिर वेतनभोगियों को ये 6 नियमों जानना जरूरी है।

Income Tax Rules

इनकम टैक्स नियम जरूर जानें (तस्वीर-Canva)

Income Tax Rules: नया वित्तीय वर्ष 2024-25, एक अप्रैल से शुरू हो गया है। एक अप्रैल से ही कई इनकम टैक्स नियम लागू हो गए हैं। इस साल सरकार ने एक फरवरी को पेश किए अंतरिम बजट के दौरान वित्त वर्ष 2024-25 के लिए इनकम टैक्स कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया। इसलिए पिछले वित्तीय वर्ष के सभी इनकम टैक्स नियम बने रहेंगे। पूर्ण बजट नई सरकार के गठन होने के बाद जुलाई में पेश होगा। तक इनकम टैक्स को लेकर यही नियम बने रहेंगे।

पुरानी और नई टैक्स व्यवस्थाओं में से चुनें

वेतन पर टीडीएस (स्रोत पर टैक्स कटौती) के लिए कर्मचारी को पुरानी और नई टैक्स व्यवस्थाओं के बीच चयन करना होगा। याद रखें नई टैक्स व्यवस्था डिफॉल्ट टैक्स व्यवस्था विकल्प है। अगर आप अपने नियोक्ता को सूचित नहीं करते हैं कि आप पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनना चाहते हैं तो आपका नियोक्ता नई टैक्स व्यवस्था के आधार पर वेतन आय से टैक्स काट लेगा। जैसे ही नियोक्ता आपसे ऐसा करने के लिए कहे इसे तुरंत करें।

पुरानी और नई टैक्स व्यवस्थाओं में छूट सीमा

पुरानी और नई टैक्स व्यवस्थाओं में मूल छूट सीमा में अंतर है। अगर किसी व्यक्ति की आय किसी वित्तीय वर्ष में मूल छूट सीमा से अधिक नहीं होती है तो ऐसे व्यक्ति की आय को टैक्स से छूट दी जाती है। वर्तमान में नई टैक्स व्यवस्था के तहत 3 लाख रुपए तक की आय टैक्स फ्री है। यह छूट सीमा उम्र की परवाह किए बिना नई टैक्स व्यवस्था चुनने वाले सभी व्यक्तियों के लिए लागू है। पुरानी टैक्स व्यवस्था के मामले में किसी व्यक्ति के लिए मूल छूट सीमा उसकी उम्र पर निर्भर करती है। 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के लिए, एक वित्तीय वर्ष में 2.5 लाख रुपए टैक्स फ्री हैं। 60 से 80 वर्ष की आयु के सीनियर सिटिजन्स के लिए एक वित्तीय वर्ष में 3 लाख रुपए टैक्स से छूट है। 80 वर्ष और उससे अधिक आयु के सीनियर सिटिजन्स के लिए 5 लाख रुपए तक की आय टैक्स फ्री है।

पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था के तहत शून्य टैक्स देय

इनकम टैक्स कानून दोनों टैक्स व्यवस्थाओं के तहत रेजिडेंट इंडिविजुअल्स को टैक्स छूट प्रदान करते हैं। अगर नेट टैक्स योग्य आय निर्दिष्ट सीमा से अधिक नहीं है तो सेक्शन 87A के तहत उपलब्ध टैक्स छूट शून्य टैक्स देय बनाती है। नई टैक्स व्यवस्था पुरानी टैक्स व्यवस्था की तुलना में अधिक टैक्स छूट प्रदान करती है। नई टैक्स व्यवस्था 25000 रुपए तक की टैक्स छूट प्रदान करती है, जिससे 7 लाख रुपए तक की आय पर शून्य टैक्स देय हो जाता है। पुरानी टैक्स व्यवस्था 12,500 रुपए तक की टैक्स छूट प्रदान करती है, जिससे 5 लाख रुपए तक की नेट टैक्स योग्य आय पर शून्य टैक्स देय होता है।

कटौतियां और टैक्स छूट

दोनों टैक्स व्यवस्थाएं कुछ कटौतियां और छूट प्रदान करती हैं। हालांकि पुरानी टैक्स व्यवस्था नई टैक्स व्यवस्था की तुलना में अधिक टैक्स छूट और कटौती प्रदान करती है। उपलब्ध कटौतियों के कुछ उदाहरण निर्दिष्ट निवेश और व्यय के लिए सेक्शन 80सी के तहत 1.5 लाख रुपए तक हैं। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम के लिए सेक्शन 80डी, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में 50000 रुपए तक के अतिरिक्त निवेश के लिए सेक्शन 80CCD(1B)। व्यक्ति अधिकतम 2 लाख रुपए तक के गृह ऋण पर भुगतान किए गए ब्याज पर कटौती, एजुकेशन लोन पर भुगतान किए गए ब्याज पर कटौती के साथ-साथ किए गए दान पर कटौती का दावा भी कर सकते हैं। कटौतियों के अलावा कोई व्यक्ति मकान किराया भत्ता (HRA) के साथ-साथ अवकाश यात्रा भत्ता (LTA) पर टैक्स छूट का दावा कर सकता है।

नई टैक्स व्यवस्था व्यक्तियों को केवल दो कटौतियां प्रदान करती है। वेतन और पेंशन आय से 50,000 रुपए की मानक कटौती और एनपीएस खाते में नियोक्ता के योगदान के लिए सेक्शन 80CCD(2) कटौती कर सकते हैं। नई टैक्स व्यवस्था में पारिवारिक पेंशनभोगी भी 15,000 रुपए की मानक कटौती के पात्र हैं। ये कटौतियां पुरानी टैक्स व्यवस्था के तहत भी उपलब्ध हैं। पात्र कटौतियों (चयनित कर व्यवस्था के आधार पर) का दावा करके, कोई व्यक्ति अपनी नेट टैक्स योग्य आय और टैक्स देयता को भी कम कर सकता है।

समय पर आईटीआर करें फाइल

अगर आप इस वर्ष इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनने की योजना बना रहे हैं तो सुनिश्चित करें कि आईटीआर 31 जुलाई की समय सीमा समाप्त होने से पहले दाखिल किया जाए। ऐसा इसलिए है क्योंकि नई टैक्स व्यवस्था डिफॉल्ट विकल्प है और इनकम टैक्स नियम किसी व्यक्ति को पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनने की अनुमति केवल तभी देते हैं जब आईटीआर समय पर दाखिल किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति विलंबित आईटीआर (1 अगस्त से 31 दिसंबर के बीच) दाखिल करता है, तो टैक्स देनदारी की गणना नई टैक्स व्यवस्था के आधार पर ही की जाएगी।

नई टैक्स व्यवस्था में कम सरचार्ज

नई टैक्स व्यवस्था चुनने वाले उच्च आय वाले व्यक्ति को कम अधिभार दर का भुगतान करना होगा। नई टैक्स व्यवस्था के तहत 5 करोड़ रुपए से अधिक की आय पर दर 37% से घटाकर 25% कर दी गई है। हालांकि अगर व्यक्ति पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनता है, तो 37% का सरचार्ज दर लागू होगी।

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रामानुज सिंह author

रामानुज सिंह अगस्त 2017 से Timesnowhindi.com के साथ करियर को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां वे असिस्टेंट एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं। वह बिजनेस टीम में ...और देखें

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