Macro Fundamentals of India: मजबूत मैक्रो फंडामेंटल्स की मदद से भारत की स्थिति मजबूत, नई रिपोर्ट में हुआ खुलासा
Macro Fundamentals of India: एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत मजबूत मैक्रो फंडामेंटल्स के सहारे वैश्विक स्तर पर बेहतर स्थान बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को राजकोषीय चीजों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और राजकोषीय को मजबूत बनाए रखने के रास्ते पर चलना चाहिए।

भारत के मैक्रो फंडामेंटल्स मजबूत
- भारत के मैक्रो फंडामेंटल्स मजबूत
- नई रिपोर्ट में खुलासा
- इकोनॉमी के लिए चीजें बेहतर
Macro Fundamentals of India: एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत मजबूत मैक्रो फंडामेंटल्स के सहारे वैश्विक स्तर पर बेहतर स्थान बना हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को राजकोषीय चीजों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और राजकोषीय को मजबूत बनाए रखने के रास्ते पर चलना चाहिए। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय बजट 2025-26 से पहले वित्त वर्ष 2026 के लिए जीडीपी वृद्धि 10.2 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। फिलहाल वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.2 से 6.4 प्रतिशत और मुद्रास्फीति 4 से 3.8 प्रतिशत है।" जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 26 में 4.5 प्रतिशत (15.9 लाख करोड़ रुपये) पर आ सकता है।
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कर्ज में होगी वृद्धि
रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि हमें यह भी समझना चाहिए कि बाहरी क्षेत्र के लिए अनिश्चितताओं की दुनिया में, विकास को बढ़ावा देने के लिए रास्ते को थोड़ा सा बदलने में कोई बुराई नहीं है।
वित्त वर्ष 26 में सकल बाजार उधार (14.4 लाख करोड़ रुपये) की उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि कोविड-19 महामारी उधार का कुछ हिस्सा रीपेमेंट के लिए देय है, जिसके नतीजे में कर्ज में वृद्धि होगी। 11.2 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध उधारी (वित्त वर्ष 26 में 4.05 लाख करोड़ रुपये का रिडम्पशन और 75,000 से 100,000 करोड़ रुपये का अपेक्षित स्विच)।
1.1 लाख करोड़ रुपये की पुनर्खरीद
सरकार ने वित्त वर्ष 25 में अब तक 1.1 लाख करोड़ रुपये की रिपर्चेज और 1.46 लाख करोड़ रुपये के स्विच किए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, "नीति निर्माताओं और रेगुलेटर्स से कम्युनिकेशन क्लियर होना चाहिए और बाजार सहभागियों की अपेक्षाओं को ध्यान में रखना चाहिए। जस्ट-इन-टाइम (जेआईटी) जैसी योजनाएं जो सिस्टेमैटिक लिक्विडिटी पर प्रभाव डाल सकती हैं, उन्हें पहले क्रम के साथ-साथ दूसरे क्रम के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक रिबैलेंस की आवश्यकता है।"
स्वास्थ्य बीमा उत्पादों पर मिले जीएसटी छूट
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी की बात करें तो जीएसटी (जीएसटी 2.0) में टैक्स रेट को बेहतर बनाने और बिजली शुल्क, फिर एविएशन टर्बाइन ईंधन और अंत में पेट्रोल/डीजल को शामिल करने के साथ सुधारों के दूसरे दौर की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य बीमा उत्पादों को जीएसटी से छूट देना/कम करना, कम से कम सभी खुदरा और स्वास्थ्य केंद्रित उत्पादों के लिए, भी आवश्यक है। (इनपुट - आईएएनएस)
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