बुरे हाल आलू किसान, ज्यादा पैदावार से कम कीमत में बेचने को मजबूर

Potato farmers feeling heat of low prices: आलू की पैदावार के मामले में यूपी अव्वल है। इसलिए जब यूपी में आलू के दाम बढ़ते या घटते हैं तो इसका असर पूरे देश पर पड़ता है।

potato farmers

यूपी में आलू किसान बेहाल

Potato farmers feeling heat of low prices: आलू की पैदावार के मामले में यूपी देश में अब्बल है। देश के पूरे उत्पादन में 35 फीसदी हिस्सा यूपी से ही आता है। सरकार इस रिकॉर्ड को गर्व से गिना तो देती है लेकिन जब ये रिकॉर्ड बनाने वाले मुश्किल में आते है तो मदद देने वाले हाथ अपना दायरा सिकोड़ लेते है। इस साल आलू की बड़ी पैदावार ने किसानों को मुसीबत में डाल दिया है। बाजार में आलू कीमतें कम हो गई है और कोल्ड स्टोरेज तकरीबन फुल हो गए है सो अब किसानों के सामने औने पौने दाम पर आलू बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं है ।
बुरे हाल में किसान
कन्नौज के दौलतपुर के किसान ग्रीस वर्मा ने अपने तीन हेक्टेयर जमीन में जब आलू बोया तो भरोसा था इस बार मुनाफा खूब होगा बेटी की शादी धूमधाम से हो जाएगी और बेटे का फार्मेसी के डिप्लोमा में एडमिशन भी करा देंगे। मौसम की मेहरबानी रही और फसल भी अच्छी हुई । लेकिन सब कुछ ठीक होने के बाद समस्या ये है कि अब बाजार में आलू को कीमत ही नही मिल रही।
ग्रीस वर्मा जी ने खेतो से आलू की खुदाई तो करा ली लेकिन अब ढूढने से खरीदार नहीं मिल रहे। कोई खरीदार मिल भी जाए तो 250 से 350 रू का प्रति क्विंटल का रेट लगाता है। कोल्ड स्टोर में रखने के लिए भाड़ा खर्च करके जाएं तो ज्यादातर कोल्ड स्टोर फूल है कोई खाली भी है तो उसके संचालक भरा हुआ कहकर किसानों को लौटा दे रहे हैं। ऐसे में मरता क्या न करता मजबूरी में ग्रीस वर्मा को कम कीमत पर आलू बेचना पड़ रहा है । ये दर्द अकेले ग्रीस का नही है बल्कि कन्नौज सहित सभी जिलों के आलू किसान इसी मुश्किल से दो चार हो रहे है।
क्या कहता है आलू के नफा नुकसान का गणित
आलू की पैदावार के मामले में यूपी अव्वल है। इसलिए जब यूपी में आलू के दाम बढ़ते या घटते हैं तो इसका असर पूरे देश पर पड़ता है। अब आलू के लागत फिर उसके बाद नफा और नुकसान का गणित को देखें तो किसान के फसल बोने से लेकर फसल खोदने तक लागत और मुनाफे में बड़ी खाई है। अगर एक हेक्टेयर के हिसाब से लागत का आकलन लगाया जाय तो
बीज पर लगभग 35,000
जोताई-बोआई पर 4,000
खाद - 30,000
सिंचाई - 12,000
स्प्रे - 15,000
खोदाई, भराई - 15,000
बोरी - 15,000
ट्रैक्टर किराया - 6,000
बाकी खर्चा लगभग - 10,000 मिलाकर कुल 1 लाख से लेकर डेढ़ लाख तक का खर्चा आता है।
अब आलू की पैदावार को देखे तो 1 हेक्टेअर में 300 क्विंटल आलू पैदा होता है। और अभी बाजार के हालात के हिसाब से आलू बेचने पर 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से उसे 1,05,000 लाख रुपये मिलेंगे जबकि लागत डेढ़ लाख रुपये है। इस तरह बाजार में बेचने पर किसान को 37 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है।
आलू मंडियों में पसरा सन्नाटा, न तो किसान आलू बेचने आ रहा ना ही आलू खरीदने आए रहे व्यापारी
कन्नौज के ठठिया में आलू की बड़ी मंडी है आम तौर पर आलू की फसल आने तक आलू के बाजारों में भीड़भाड़ रहा करती थी लेकिन इस दफा गिरती कीमतों के चलते किसान मंडियों में सस्ते दामों में आलू को बेचने के बजाय कोल्ड स्टोरेज में रखने की कोशिशों में लगा है। इसी के चलते आलू मंडिया सन्नाटे में पसरी हुई है । ठठिया मंडी में ज्यादातर आढ़तियों की दुकानें बंद है जो एकाध आलू आढ़ती है भी उनका कहना है कि यूपी से देश के कई राज्यो में आलू भेजा जाता है लेकिन इस बार बाहर से व्यापारी आया ही नहीं है किसान को कीमत मिल नही रही तो मंडिया सुनी हैं एकाध व्यापारी जरूर मंडी में मिले जो केरल से आलू खरीदने आए है ।
कोल्ड स्टोरेज फुल
अभी बाजार में कीमतें ज्यादा नहीं है। तो किसान के सामने आलू का भंडारण ही विकल्प है जिससे आगे चलकर कीमतें बढ़ने पर आलू निकाल कर बेचा जा सके लेकिन समस्या के दरवाजे तो यहां भी खुले है ज्यादातर कोल्ड स्टोरेज ने क्षमता पूरी होने का पोस्टर लगा दिया है
कन्नौज में 150 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज है इनमे से जो खाली है वहा आलू किसान ट्रैक्टर में आलू भरकर लंबी लंबी कतार लगाए खड़े हैं। किसानों का कहना है कि आ तो गए है लेकिन यहां का अता पता नही है कि कब तक नंबर आ पाएगा । होली से पहले का आलू जो कोल्ड स्टोरेज में है पल्लेदार न होने से वो भी अंदर रैक में नही लगा है ऐसे में हमारा आलू कब लगेगा पता नही हालांकि अब कोई रास्ता भी किसानों के सामने नही बचा है ।
क्यों खड़ा हुआ संकट
आलू किसान नवाब सिंह बताते है आज जो मुसीबत हमारे सामने आई है उसके पीछे आलू का बढ़ता उत्पादन और भंडारण की समस्या है छह साल के आलू उत्पादन पर नजर डाले तो हर साल उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है ।
2017-18... 155.55
2018 -19.. 155.23
2019-20.. 140.04
2020-21.. 158.40
2021 -22 ...242.75
2022-23 में तकरीबन 242.93 लाख मीट्रिक टन पैदावार हुई है।
और इसके मुकाबले यूपी में भंडारण क्षमता 162 लाख टन है। यूपी में लगभग 2000 कोल्ड स्टोरेज है और इनकी क्षमता के मुकाबले भी 80-85% आलू ही कोल्ड स्टोर में जमा होता है। इसके पीछे कोल्ड स्टोरों की मनमानी भी एक वजह है। किसानों की अक्सर शिकायत होती है कि आलू रखने से कोल्ड स्टोर मना कर रहे हैं। छापेमारी के दौरान यह बात सामने भी आई और कार्रवाई भी होती है। अब सरकार ने उद्यान विभाग के कर्मचारियों की निरीक्षण में ड्यूटी भी लगा दी है ताकि स्टोर सचालक मनमानी न कर पाए।
आलू की आफत में मददगार बनी योगी सरकार
किसान संकट में है तो सरकार ने आलू के गिरते दामों को देखते हुए सात जिलों फर्रुखाबाद, कौशांबी, उन्नाव, मैनपुरी, एटा, कासगंज व बरेली में 650 रुपये प्रति क्विंटल की दर से आलू खरीद का एलान किया है। इन जिलों में एक-एक खरीद केंद्र शुरू करने की तैयारी है। इससे पहले 2017 में जब ऐसी ही समस्या सामने थी तब 1293.70 मीट्रिक टन आलू की खरीद की गई थी । इस साल 242 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा आलू की पैदावार हुई है और सरकार ने 10 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य तय किया है। इसके सरकार ने आलू का निर्यात भी शुरू किया है लेकिन उत्पादन के मुकाबले ये काफी कम है। नेपाल से हाफेड ने 15 हजार मीट्रिक टन का एग्रीमेंट किया है। वहीं आगरा से मलेशिया, दुबई और कतर के लिए अभी 600 मीट्रिक टन आलू भेजा गया है।
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मनीष यादव author

साल 2011 था जब इंद्रप्रस्थ से पत्रकारिता के सफर की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया । कुछ साल जयपुर रहा और अब ठिकाना अवध है। माइक पकड़ कर कोशिश करता हूं कि आम...और देखें

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