फिर बढ़ेगी महंगाई, दाल से लेकर प्याज, चीनी, सब्जियों के दाम बढ़ने की आशंका
Inflation May Rise Due To Maharashtra Drought: महाराष्ट्र में जलाशयों का स्तर पिछले वर्ष की तुलना में 20% कम है। वजह है बारिश कम होना। पानी की कमी से महाराष्ट्र में रबी सीजन में प्याज की बुआई कम घट सकती है।
महाराष्ट्र में सूखे से बढ़ सकती है महंगाई
- महाराष्ट्र में सूखे जैसी स्थिति
- कृषि उत्पादों का घट सकता है उत्पादन
- बढ़ सकती है महंगाई
कम बारिश से इनका उत्पादन घटेगा और बाजारों में सप्लाई कम हो जाएगी। नतीजे में ये सारी चीजें महंगी होंगी। प्याज, दालें, चीनी, फल और सब्जियों की कीमतें बढ़ने से महंगाई दर में भी इजाफा होगा। इसलिए आपको महंगाई के झटके के लिए तैयार रहना चाहिए।
घट गया जलाशयों का स्तर
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार इस समय महाराष्ट्र में जलाशयों का स्तर पिछले वर्ष की तुलना में 20% कम है। वजह है बारिश कम होना। पानी की कमी से महाराष्ट्र में रबी सीजन में प्याज की बुआई कम घट सकती है। अरहर और चीनी का उत्पादन पहले से ही गिरना तय है, जबकि गेहूं और चना की बुआई भी कम उत्पादन का संकेत है। बता दें कि देश के कुल चीनी उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी करीब 33 फीसदी, प्याज के उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक और दालों के उत्पादन में 15 फीसदी है।
अहम इलाकों में बारिश हुई कम
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, मानसून के दौरान महाराष्ट्र में वैसे तो कुल बारिश सामान्य रही, लेकिन मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और उत्तरी महाराष्ट्र जैसे कई क्षेत्रों में बारिश कम हुई। रबी सीजन में 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक बारिश को "भारी कमी" कैटेगरी में रखा गया है।
प्याज की कम बुआई से अगले साल सप्लाई पर निगेटिव असर पड़ सकता है। प्याज की कीमतें पहले ही काफी अधिक चल रही हैं। इसके नतीजे में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index) एक साल पहले की तुलना में इस महीने 6.6% बढ़ गया।
पानी की कमी बड़ी समस्या
प्याज के बीज से नर्सरी तैयार करने में 45-55 दिन का समय लगता है, जिसके बाद पौध की रोपाई की होती है। खरीफ प्याज 90 दिनों में उगती है, मगर इसके उलट रबी प्याज को तैयार होने में 120 दिन लगते हैं। महाराष्ट्र के कई क्षेत्र इस चार महीने में पानी की कमी के कारण आवश्यक सिंचाई नहीं कर पाएंगे।
कर्नाटक में भी बारिश की कमी
महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसून में कम बारिश के कारण अरहर के उत्पादन में कमी आ सकती है। इससे चने का उत्पादन भी कम रह सकता है। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में चना और तुअर के प्रॉसेसर नितिन कलंत्री के मुताबिक चना के बुआई क्षेत्र में भी 10-15% की गिरावट आ सकती है।
ज्वार पर भी पड़ेगा असर
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार थोक व्यापारी राजगोपाल बियानी के मुताबिक महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक में ज्वार कृषक समुदाय का मुख्य भोजन है और अब शहरी लोग भी अब गेहूं के बजाय ज्वार खाना पसंद करते हैं। मगर ज्वार की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। ज्वार की थोक कीमतें पहले ही 85 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं।
गेहूं की कीमतें
देश के कुल गेहूं उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी बहुत कम है, लेकिन उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ की उपज कई जिलों में कुछ महीनों के लिए अनाज की आवश्यकता को पूरा करती है। राज्य के गेहूं उत्पादन में भी गिरावट की आशंका है। इससे देश में कुल गेहूं की मांग बढ़ेगी जबकि थोक कीमतें लगातार दूसरे वर्ष 27-28 रुपये प्रति किलोग्राम के असुविधाजनक उच्च स्तर पर चल रही हैं।
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