रतन टाटा कभी अरबपतियों लिस्ट में क्यों नहीं आए नजर?
Ratan Tata Interesting Facts: रतन नवल टाटा का बुधवार (09 अक्तूबर 2024) रात को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। 'विनम्र' बिजनेसमैन के तौर पर जाने जाने वाले रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे और उनके पास 30 से अधिक कंपनियां थीं जो 3 महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में संचालित थीं लेकिन कभी भी अरबपतियों की किसी लिस्ट में नहीं आए। अन्यथा यह उम्मीद करना तर्कसंगत हो सकता है कि एक व्यक्ति जिसने कभी छह दशकों तक भारत में सबसे बड़ा बिजनेस साम्राज्य संचालित किया है और अभी भी कंपनियों पर इनका बहुत बड़ा प्रभाव है। आप सोचते होंगे वह टॉप 10 या 20 सबसे अमीर भारतीयों में से एक होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका कारण टाटा ट्रस्ट के जरिये से रतन टाटा द्वारा किए जाने वाले बड़े पैमाने पर परोपकारी कार्य हो सकते हैं।
जमशेदजी टाटा के संविधान पर चले रतन टाटा
रतन टाटा कभी भी अपनी कंपनी के बहुत ज्यादा शेयर नहीं रखते थे, क्योंकि जमशेदजी टाटा ने खुद ही संविधान बनाया था कि टाटा संस में जो भी उन्होंने कमाया, उसका ज्यादातर हिस्सा टाटा ट्रस्ट को दान कर दिया गया। बिल गेट्स जैसे लोगों के आने से बहुत पहले से ही टाटा सबसे बड़े परोपकारी लोग रहे हैं। रतन टाटा को भारत के टाटा समूह को सॉफ्टवेयर से लेकर स्पोर्ट्स कार तक के पोर्टफोलियो के साथ एक विश्व स्तर पर प्रसिद्ध समूह में बदलने का श्रेय दिया जाता है।
ऐसे थे रतन टाटा
सरल व्यक्तितत्व के धनी टाटा एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते एक अलग तरह की छवि बनाई थी। वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। बेहद शर्मीले छात्र के रूप में उन्होंने आर्किटेक्ट बनने की योजना बनाई और संयुक्त राज्य अमेरिका में काम कर रहे थे, जब उनकी दादी, जिन्होंने उन्हें पाला था, उन्होने उन्हें घर लौटने और विशाल पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के लिए कहा। उन्होंने 1962 में ट्रेनी के तौर पर एक छात्रावास में रहकर और ब्लास्ट फर्नेस के पास दुकान के फर्श पर काम करके शुरुआत की। उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया, जिसके बाद 1971 में उन्हें (समूह की एक फर्म) ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया।
टाटा ग्रुप को ले गए नई ऊंचाई पर
टाटा ने 1991 में भारतीय सरकार द्वारा उस वर्ष शुरू किए गए रेडिकल फ्री मार्केट सुधारों की लहर पर सवार होकर पारिवारिक साम्राज्य को संभाला। उनके 21 वर्षों के कार्यकाल में नमक से लेकर स्टील तक के समूह ने जगुआर और लैंड रोवर जैसे ब्रिटिश लक्जरी ब्रांडों को शामिल करते हुए अपने वैश्विक पदचिह्न का विस्तार किया। रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए। एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे। यह वह वर्ष था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और 1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक वैश्विक महाशक्ति में बदल दिया, जिसका परिचालन नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया था।
रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे और इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, वर्ष 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा और फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
परोपकार में भी रहे आगे
भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ, वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी। उन्होंने एक दुर्लभ इंटरव्यू में कहा कि उस समय यह बहुत भयानक था, लेकिन अगर मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो यह एक बहुत ही सार्थक अनुभव रहा है क्योंकि मैंने श्रमिकों के साथ मिलकर कई साल बिताए हैं।