Reliance-Ravalgaon Sugar Deal: रिलायंस बेचेगी टूटी फ्रूटी और पान पसंद टॉफी, खरीदी 82 साल पुरानी रावलगांव शुगर

Reliance To Acquire Ravalgaon Sugar: रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स रावलगांव शुगर फार्म को खरीदेगी। इस डील के तहत रावलगांव शुगर फार्म के मैंगो मूड, कॉफी ब्रेक, टूटी फ्रूटी, पान पसंद, चॉको क्रीम और सुप्रीम जैसे ब्रांड रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के हो जाएंगे।

Reliance To Acquire Ravalgaon Sugar

रिलायंस रावलगांव शुगर को खरीदेगी

मुख्य बातें
  • रावलगांव शुगर को खरीदेगी रिलायंस
  • 82 साल पुरानी कंपनी है रावलगांव शुगर
  • 27 करोड़ रु में होगी डील

Reliance To Acquire Ravalgaon Sugar: रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (आरसीपी) रावलगांव शुगर फार्म के कॉफी ब्रेक और पान पसंद जैसे कंफेक्शनरी ब्रांड को खरीदेगी। ये डील 27 करोड़ रु में होगी। बता दें कि आरसीपी रिलायंस रिटेल वेंचर्स की सब्सिडियरी कंपनी है, जो मार्केट कैपिटल के लिहाज से देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) की सब्सिडियरी कंपनी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी हैं। रावलगांव कैंडी ब्रांड 82 साल पुराना है। रावलगांव The Ravalgaon Sugar Farm Ltd नाम से स्टॉक एक्सचेंजों पर लिस्टेड है। बीएसई पर इसकी मार्केट कैपिटल 26.69 करोड़ रु है। बता दें कि डील के तहत आरसीपी के पास रावलगांव शुगर फार्म के कई फेमस ब्रांड आ जाएंगे।

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आरसीपी के हो जाएंगे ये ब्रांड

डील के तहत आरसीपी को रावलगांव शुगर फार्म के मैंगो मूड, कॉफी ब्रेक, टूटी फ्रूटी, पान पसंद, चॉको क्रीम और सुप्रीम जैसे ब्रांड मिलेंगे। रावलगांव शुगर फार्म ने डील के तहत इन उत्पादों के ट्रेडमार्क, प्रोडक्शन टिप्स और सभी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स आरसीपी को बेच दिए हैं।

डील को दे दी मंजूरी

रावलगांव शुगर फार्म की तरफ से शेयर बाजार को दी गई जानकारी में कहा गया है कि इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने इन ब्रांड्स (मैंगो मूड, कॉफी ब्रेक, टूटी फ्रूटी, पान पसंद, चॉको क्रीम और सुप्रीम) के ट्रेडमार्क और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स की बिक्री और ट्रांसफर के लिए मंजूरी दे दी है।

रावलगांव शुगर के सामने आई चुनौतियां

रावलगांव शुगर ने कहा कि ये डील पूरा होने के बाद भी प्रॉपर्टी, जमीन, प्लांट, बिल्डिंग, इक्विपमेंट, मशीनरी जैसी अन्य सभी संपत्तियां इसी के पास बनी रहेंगी।

कंपनी ने कहा है कि हाल के वर्षों में इसके लिए अपने कंफेक्शनरी बिजनेस को मैंटेन रखना मुश्किल हो गया है। इसने संगठित और असंगठित दोनों तरह की कंपनियों से बढ़े मुकाबले के कारण बाजार हिस्सेदारी गंवा दी है।

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काशिद हुसैन author

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