मुकेश अंबानी पर जुर्माना लगाने का सेबी का आदेश सैट ने रद्द किया, जानें मामला
SAT Quashed SEBI Order: यह मामला नवंबर, 2007 में नकद और वायदा सेगमेंट में आरपीएल शेयरों की खरीद-बिक्री से संबंधित है। इसके पहले मार्च, 2007 में आरआईएल ने अपनी अनुषंगी आरपीएल में लगभग पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था। इस अनुषंगी का वर्ष 2009 में आरआईएल में विलय कर दिया गया था।
मुकेश अंबानी
क्या है मामला
जुर्माने की जद में आने वाली दोनों कंपनियां- नवी मुंबई एसईजेड और मुंबई एसईजेड के प्रवर्तक आनंद जैन हैं जो पहले रिलायंस समूह का हिस्सा रह चुके हैं।इस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के बाद सैट ने सोमवार को अपना फैसला सुनाया। न्यायाधिकरण ने अपने 87 पृष्ठों के आदेश में अंबानी, नवी मुंबई एसईजेड और मुंबई एसईजेड के खिलाफ पारित सेबी के आदेश को रद्द कर दिया।इसके साथ ही न्यायाधिकरण ने सेबी को कहा कि अगर जुर्माने की रकम जमा करा दी गई है तो वह उसे लौटा दे।
यह मामला नवंबर, 2007 में नकद और वायदा सेगमेंट में आरपीएल शेयरों की खरीद-बिक्री से संबंधित है। इसके पहले मार्च, 2007 में आरआईएल ने अपनी अनुषंगी आरपीएल में लगभग पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था। इस अनुषंगी का वर्ष 2009 में आरआईएल में विलय कर दिया गया था।सैट ने कहा कि आरआईएल के निदेशक मंडल ने इस विनिवेश पर निर्णय लेने के लिए खास तौर पर दो लोगों को अधिकृत किया था। इसके अलावा यह नहीं कहा जा सकता है कि कंपनियों के हरेक कानूनी उल्लंघन के लिए वास्तव में प्रबंध निदेशक ही जिम्मेदार है।
कोई जवाबदेही नहीं
अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा कि आरआईएल के निदेशक मंडल की दो बैठकों के ब्योरे से मिले ठोस सबूतों से साबित होता है कि अपीलकर्ता की जानकारी के बिना दो वरिष्ठ अधिकारियों ने विवादित सौदे किए थे। ऐसे में (अंबानी पर) कोई जवाबदेही नहीं बनती है। न्यायाधिकरण के मुताबिक, सेबी यह साबित करने में भी नाकाम रही कि अंबानी कंपनी के दो वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गए शेयर लेनदेन में शामिल थे।नियामक ने आरोप लगाया था कि कंपनी ने 29 नवंबर, 2007 को कारोबार के आखिरी 10 मिनट में नकद खंड में बड़ी संख्या में आरपीएल शेयरों को डंप करके नवंबर 2007 आरपीएल वायदा अनुबंध के निपटान मूल्य में हेराफेरी की थी।
सेबी ने कहा था कि धोखाधड़ी वाले सौदों ने नकदी और वायदा अनुबंध दोनों खंडों में आरपीएल के शेयरों की कीमत को प्रभावित किया और अन्य निवेशकों के हितों को चोट पहुंचाई थी। आरोप लगाया गया था कि नवी मुंबई एसईजेड और मुंबई एसईजेड ने 12 संस्थाओं का वित्तपोषण कर हेराफेरी के लिए धन मुहैया कराया था।
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