हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ को लेकर घमासान,रघुराम राजन के बयान को SBI ने बताया दुर्भावनापूर्ण

SBI On Hindu Rate of Growth: घटती ग्रोथ के आंकड़ों पर रघुराम राजन ने कहा था कि मेरी आशंकाएं बेवजह नहीं हैं। इकोनॉमी पुरानी हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ के बेहद करीब है और यह डराने वाली बात है, हमें इससे बेहतर करना होगा।

RAGHU RAM RAJAN SBI

हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ मामले ने तूल पकड़ा

SBI On Hindu Rate of Growth: आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ की आशंका वाले पर बयान पर एसबीआई रिसर्च टीम ने पलटवार किया है। SBI की रिसर्च टीम Ecowrap के अनुसार रघुराम राजन का भारतीय इकोनॉमी पर दिया गया बयान पक्षपात पूर्ण, दुर्भावनापूर्ण और अपरिपक्व है। SBI का यह रिएक्शन, राजन के उस बयान पर आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत कम ग्रोथ वाली 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' के बेहद करीब पहुंच गया है।

राजन ने क्यों कहा कि भारत हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ के करीब पहुंचा

हाल ही में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के आंकड़े सामने आए हैं। जिसमें GDP ग्रोथ रेट घटकर 4.4 फीसदी पर पहुंच गई है। जबकि दूसरी तिमाही में यह 6.3 फीसदी और पहली तिमाही में 13.2 फीसदी थी। घटती ग्रोथ के आंकड़ों पर राजन ने कहा था कि मेरी आशंकाएं बेवजह नहीं हैं। RBI ने तो चौथी तिमाही के लिए और भी कम 4.2 फीसदी की ग्रोथ रेट का अनुमान जताया है। वहीं अगर अक्टूबर-दिसंबर तिमाही की औसत ग्रोथ रेट की तीन साल पहले से तुलना की जाय तो वह 3.7 फीसदी है। यानी वह पुरानी हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ के बेहद करीब है और यह डराने वाली बात है, हमें इससे बेहतर करना होगा।

हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ टर्म को 70 के दशक में अर्थशास्त्री और प्रोफेसर राज कृष्ण अक्सर ने दिया था। वह अक्सर कहा करते थे कि हम कुछ भी कर लें, हमारी विकास दर इतनी ही रहती है। और उन्होंने इसी आधार पर 1978 में भारतीय इकोनॉमी के लिए हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ टर्म प्रचलित हो गया।आजादी के समय भारतीय इकोनॉमी कमजोर स्थिति में थी। और निवेश कम होने और बचत आधारित इकोनॉमी होने से 1950 से 1980 के दौरान ग्रोथ रेट महज 3.5 फीसदी के आस-पास ही रहती थी।

SBI ने इन आंकड़ों से राजन का किया खंडन

एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष ने राजन के बयान का खंडन करते हुए बताया है कि साल 2021-22 में सरकार द्वारा किया गया ग्रॉस कैपिटल फॉर्मेशन (GCF) 10.7 फीसदी से बढ़कर 11.8 फीसदी हो गया है। इसी कारण निजी क्षेत्र का निवेश 10 फीसदी से बढ़ाकर 10.8 फीसदी पहुंच गया है। और इसी का असर है कि साल 2022-23, GCF 32 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की संभावना है।

इसी तरह साल 2020-21 की तुलना में सकल बचत 29 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी हो गई है। और इसके 2022-23 में 31 फीसदी के स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। रिपोर्ट के अनुसार घरेलू बचत जरुर 2021-22 के 15.4 फीसदी से गिरकर 2022-23 में 11.1 फीसदी पर आ गई है। लेकिन फिजिकल एसेट में 2021-22 के दौरान 11.8 फीसदी की दर से बढ़ी है।

इसके अलावा उत्पाकदता बताने वाले सूचकांक ICOR में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। जो कि वित्त वर्ष 2011-12 में 7.5 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2021-22 में केवल 3.5 फीसदी रह गया है। इसका मतलब यह है कि उत्पादन की अगली इकाई के लिए अब केवल आधी पूंजी की आवश्यकता है। इसके साथ ही आरबीआई ने इकोनॉमी में 7 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान जताया है। जो कि मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए अच्छी ग्रोथ रेट है।

एसबीआई के इस पलटवार के बाद ऐसी संभावना है कि रघुराम राजन भी नए तथ्यों के सामने आ सकते हैं। अब देखना यह है कि किसके दावे सच होंगे।

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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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