इस सेठ ने तोड़ा था औरंगजेब का गुरूर,मस्जिद की जगह मंदिर बनाने का मिला फरमान
Nagar Seth Shantidas Jhaveri And Aurangzeb:शांतिदास झावेरी अहमदाबाद के प्रमुख ज्वैलर थे। और वह मुगल बादशाहों और उनके परिवार के लोगों को भी हीरे-जवाहरात और दूसरे आभूषण की सप्लाई करते थे। झावेरी का रुतबा ऐसा था कि उन्हें नगर सेठ कहा जाता था। यही नहीं शाहजहां ने उन्हें एक समय गुजरात का कार्यकारी गवर्नर बना दिया ।
गुजरात के जौहरी थे शांतिदास झावेरी
Nagra Seth Shantidas Jhaveri And Aurangzeb:भारतीय इतिहास में मुगल बादशाह औरंगजेब की पहचान एक क्रूर और हिंदू विरोधी शासक के रुप में रही है। औरंगजेब ने अपने शासनकाल में तो मंदिर तुड़वाए ही, उसने शाहजहां के दौर में शहजादे के रुप में भी मंदिरों को तुड़वाया । लेकिन एक शख्स ऐसा था जिसके आगे औरंगजेब की भी नहीं चली थी। और उसने जब गुजरात में मंदिर तोड़ा तो न केवल उसे दोबारा मंदिर निर्माण का फरमान मिला बल्कि उसे अपने शाहजहां से खरी-खोटी भी सुननी पड़ी थी। हम बात कर रहे हैं नगर सेठ के नाम से मशहूर शांतिदास झावेरी की, जो कि शाहजहां के शासनकाल में बहुत पॉवरफुल शख्स थे। और उन्होंने अहमदाबाद में चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। लेकिन जब औरंगजेब गुजरात गर्वनर बना तो उसने हिमाकत की और जैन मंदिर को तुड़वा दिया। उसके बाद शांतिदास ने जो किया वह इतिहास में दर्ज है..
रुतबा ऐसा कि बन गए गवर्नर
शांतिदास झावेरी अहमदाबाद के प्रमुख ज्वैलर थे। और वह मुगल बादशाहों और उनके परिवार के लोगों को भी हीरे-जवाहरात और दूसरे आभूषण की सप्लाई करते थे। झावेरी का रुतबा ऐसा था कि उन्हें नगर सेठ कहा जाता था। यही नहीं शाहजहां ने उन्हें एक समय गुजरात का कार्यकारी गवर्नर बना दिया । जो कि मुगल इतिहास की चौंकाने वाली घटना थी। क्योंकि इसके पहले कभी भी गैर सैनिक या मुगल परिवार के अलावा किसी शख्स को इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली थी। शांतिदास झावेरी जैन धर्म को मानने वाले थे। और उन्होंने अपने बड़े भाई वर्धमान के साथ मिलकर चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर (1621-1640) का निर्माण कराया।
औरंगजेब ने तोड़ दिया मंदिर
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार जब शांतिदास की जगह शाहजहां ने औरंगजेब को 1645 ईसवी में गुजरात का गवर्नर बनाया, तो उसने चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर को तोड़ दिया। और उस जगह पर कुव्वत-उल-मस्जिद का निर्माण करा दिया। औरंगजेब के इस कृत्य से गुजरात के लोगों में रोष भर गया था और शांतिदास ने इसकी शिकायत सीधे शाहजहां से कर दी। दस्तावेजों से पता चलता है कि शाहजहां इस बात से बहुत नाराज हुआ था। उसने फरमान जारी कर मंदिर को फिर से बनाने को कहा।
फिर से मंदिर बनाने का मिला फरमान
इसके बाद भले ही शाहजहां के फरमान के बाद मंदिर को दोबारा बनाने की बात हुई। लेकिन न तो उसका मस्जिद के रुप में इस्तेमाल हुआ और न ही उसमें दोबारा जैन पूजा के लिए तैयार हुए। ऐसे में ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि शांतिदास ने पास में ही दूसरा मंदिर बनवा दिया। और पुरानी इमारत खंडहर बन गई। लेकिन इस फरमान से यह हुआ कि शातिंदास का रुतबे और सम्मान में और इजाफा हो गया।
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