मोदी सरकार का बड़ा यू-टर्न ! यूनिवर्सल बेसिक इनकम के प्लान से झाड़ा पल्ला
Universal Basic Income: मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम का कंसेप्ट भारत के लिए आवश्यक नहीं है। उनका मानना है कि नेचुरल इकोनॉमिक ग्रोथ देश की कई उम्मीदों को पूरा करेगी।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर सरकार का यू-टर्न
- सीईए ने कहा - नहीं है जरूरी
- लोग बन सकते हैं आलसी
हालांकि एनडीए सरकार (NDA Govt) के पहले कार्यकाल के दौरान, उस समय के सीईए अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) ने नागरिकों के लिए यूबीआई के आइडिया का प्रस्ताव रखा था। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में, उन्होंने हर नागरिक की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए यूबीआई की वकालत की थी, जिससे कई मौजूदा गरीबी-विरोधी योजनाओं की तुलना में इसे लागू करना आसान था।
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क्या थी सुब्रमण्यम की दलील
सर्वे में सुब्रमण्यन ने कहा था कि अकेले केंद्र सरकार ने 950 केंद्रीय सेक्टर और केंद्र द्वारा प्रायोजित उप-योजनाएं चलाईं, जिनकी लागत जीडीपी (GDP) की लगभग 5 प्रतिशत है। यह देखते हुए कि इन योजनाओं के प्रभाव की लिमिटेशंस हो सकती हैं, उन्होंने तर्क दिया था कि यूबीआई आइडिया पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, जो महात्मा गांधी के "हर आंख से हर आंसू पोंछने" के मकसद को प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
लोग बन जाएंगे आलसी
भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry) की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में नागेश्वरन यूबीआई स्कीम को खारिज कर दिया और कहा कि यह भ्रष्ट लाभ का आधार बन सकता है और लोगों को इनकम-जनरेटिंग के मौके तलाशने से रोक सकता है। यानी लोग आलसी बन जाएंगे। इसलिए नागेश्वरन का मानना है कि भारत के लिए यूनिवर्सन सोशल सिक्योरिटी कोई ऐसी चीज नहीं है जो निकट भविष्य में एजेंडे में होनी चाहिए।
इन लोगों को मिलना चाहिए सपोर्ट
नागेश्वरन ने कहा कि सपोर्ट उन लोगों तक ही सीमित होना चाहिए जो इकोनॉमिक एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने में सक्षम नहीं हो सकते। ऐसे लोगों को उस पॉइंट तक ले जाना चाहिए जहां वे अच्छे ढंग से इकोनॉमी में शामिल हो सकें।
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