अब गांवों में भी खुलकर खर्च कर रहे लोग, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खपत का फासला घटा
Consumption gap between urban and rural areas: लेटेस्ट घरेलू उपभोग खर्च सर्वे से यह निष्कर्ष सामने आया है कि गांवों में खपत पर खर्च बढ़ा है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि समीक्षाधीन अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'गिनी' गुणांक 0.266 से घटकर 0.237 और शहरी क्षेत्रों के लिए 0.314 से घटकर 0.284 हो गया।
गांवों और शहरी क्षेत्र में कम हुआ खर्चों का अंतर (तस्वीर-Canva)
Consumption gap between urban and rural areas: गांवों में खपत पर खर्च बढ़ा है। अगस्त 2023-जुलाई 2024 की अवधि में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खपत का फासला एक साल पहले की तुलना में घट गया। नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष सामने आया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि समीक्षाधीन अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'गिनी' गुणांक 0.266 से घटकर 0.237 और शहरी क्षेत्रों के लिए 0.314 से घटकर 0.284 हो गया। उपभोग व्यय से संबंधित 'गिनी' गुणांक सांख्यिकीय रूप से एक समाज के भीतर खपत में असमानता और धन के वितरण की गणना करता है।
अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के दौरान किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार 'घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण' (एचसीईएस) से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत की असमानता पिछली सर्वेक्षण के मुकाबले घट गई है। सामाजिक कल्याण योजनाओं को ध्यान में रखे बगैर 2023-24 में ग्रामीण और शहरी भारत में औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) क्रमशः 4,122 रुपये और 6,996 रुपये (वर्तमान मूल्यों पर) रहने का अनुमान है। पिछले सर्वेक्षण 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में एमपीसीई 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये था। हालांकि विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के जरिये मुफ्त में मिली वस्तुओं के मूल्यों को ध्यान में रखा जाए तो एमपीसीई के ये अनुमान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमशः 4,247 रुपये और 7,078 रुपये हो जाते हैं।
नवीनतम एमपीसीई के अनुमान देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मौजूद कुल 2,61,953 परिवारों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित हैं। मौजूदा कीमतों के संदर्भ में औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय में सालाना आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग नौ प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। एमपीसीई में शहरी और ग्रामीण खपत का अंतर 2011-12 में 84 प्रतिशत पर था जो घटकर 2022-23 में 71 प्रतिशत हो गया। हालिया सर्वेक्षण 2023-24 में यह फासला और भी कम होकर 70 प्रतिशत रह गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में खपत बढ़ने की रफ्तार में तेजी का पता चलता है।
पिछले सर्वेक्षण में नजर आए रुझान को जारी रखते हुए गैर-खाद्य वस्तुओं पर औसत मासिक व्यय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः 53 प्रतिशत और 60 प्रतिशत रहा। इस तरह घरेलू औसत मासिक व्यय में गैर-खाद्य वस्तुएं प्रमुख योगदानकर्ता बनी रहीं। वाहन, कपड़े, बिस्तर, जूते, विविध सामान और मनोरंजन एवं टिकाऊ सामान ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में परिवारों के गैर-खाद्य व्यय में प्रमुख हिस्सा रखते हैं। ग्रामीण और शहरी परिवारों के खाद्य वस्तुओं के समूह में पेय पदार्थ, जलपान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का प्रमुख व्यय हिस्सा है।
शहरी परिवारों के गैर-खाद्य व्यय में घर का किराया, गैरेज का किराया और होटल बिल लगभग सात प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ प्रमुख घटक है। राज्यों के बीच औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय सिक्किम (ग्रामीण- 9,377 रुपये और शहरी- 13,927 रुपये) में सबसे अधिक है जबकि यह छत्तीसगढ़ (ग्रामीण - 2,739 रुपये और शहरी - 4,927 रुपये) में सबसे कम है। राज्यों के बीच औसत एमपीसीई में ग्रामीण-शहरी फासला मेघालय (104 प्रतिशत) में सबसे अधिक है, उसके बाद झारखंड (83 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (80 प्रतिशत) हैं।
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