क्या है ग्रीन डिपाजिट,जिसमें निवेश का बैंक दे रहे है मौका, पैसा लगाने से पहले जान लें जरूरी बातें

What Is Green Deposits: इन अकाउंट में डिपाजिट किए गए फंड्स का उपयोग फाईनेंशियल संस्थान द्वारा ऐसे लोन तथा फाईनेशियल सपोर्ट देने के लिए किया जाता है। जो इस तरह की परियोजनाओं और कारोबारों से जुड़े हैं ।

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आरबीआई ने दी अनुमति

What Is Green Deposits:ग्रीन डिपाजिट्स का अर्थ बैंकों तथा फाईनेंशियल संस्थानों द्वारा ऑफर किए जाने वाले ऐसे फाईनेंशियल प्रोडक्ट्स से है जो पर्यावरण से जुड़े टिकाऊ पहल और प्रोजेक्ट्स को प्रमोट करते हैं। इन डिपाजिट्स को खास तौर पर ग्रीन तथा टिकाऊ प्रोजेक्ट जैसे रिन्यूवेबल एनर्जी, एनर्जी एफिशिएंसी, वेस्ट मेनेजमेंट तथा अन्य पर्यावरण अनुकूल कदमों को फाईनेंस करने के लिए डिजाइन किया जाता है।

इन अकाउंट में डिपाजिट किए गए फंड्स का उपयोग फाईनेंशियल संस्थान द्वारा ऐसे लोन तथा फाईनेशियल सपोर्ट देने के लिए किया जाता है। जो इस तरह की परियोजनाओं और कारोबारों से जुड़े हैं । आवश्यक तौर पर, वे निवेशक जो इन ग्रीन डिपाजिट्स में निवेश करते हैं, वे पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं की फंडिंग में योगदान करते हैं।

रेग्यूलर डिपाजिट और ग्रीन डिपाजिट में क्या फर्क होता है?

ग्रीन डिपाजिट्स मुख्य रूप से रेग्यूलर डिपाजिट्स की तुलना में अपने उद्देश्य और बैंकों और फाईनेंशियल संस्थानों द्वारा उनके इस्तेमाल के तरीके के नजरिए से अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, रेग्यूलर अकाउंट्स में जमा किए गए फंड्स का प्रयोग बैंकों द्वारा कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसमें अनेक प्रकार के बोरोअर्स को उधार देना, रोज़मर्रा के बैंकिंग ऑप्रेशन्स को सपोर्ट करना, तथा निवेश करना जिनको बैंक की नीतियों के अनुसार तय किया जाता है।

दूसरी तरफ, ग्रीन डिपाजिट्स को खास तौर पर पर्यावरण के नजरिए से सस्टेनेबल परियोजनाओं तथा कदमों की फाईनेंसिंग के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीन डिपाजिट को चुन कर, डिपाजिटर्स ऐसी परियोजनाओं के लिए योगदान कर सकते हैं और उनको सपोर्ट कर सकते हैं, जिनका पर्यावरण पर पॉजिटिव प्रभाव होता है और वे सस्टेनेबिलिटी को प्रोमोट करते हैं।

ग्रीन डिपाजिट के प्रकार

ये डिपाजिट कई प्रकार के होते हैं, जो डिपाजिटर्स की खास जरूरतों को पूरा करते हैं। अनेक प्रकार के ग्रीन डिपाजिट्स हैं जिनमें से सेलेक्शन की जा सकती है, जिसमें फिक्स्ड डिपाजिट्स (एफडी), सेविंग डिपाजिट्स, रिकरिंग डिपाजिट्स तथा सर्टिफिकेट ऑफ डिपाजिट्स शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक डिपाजिट के साथ अलग-अलग फीचर्स और लाभ जुड़े रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति और संगठन अपने निवेश उद्देश्यों तथा व्यक्तिगत पसंद के आधार पर सबसे सही विकल्प को चुन सकते हैं।

आरबीआई फ्रेमवर्क

आरबीआई का लक्ष्य ग्रीन फाईनेंस इकोसिस्टम (जीएफएस) को विकसित करना है और उसने रेग्यूलेटेड इकाईयों (आरई) जैसे बैंक तथा नॉन-बैंकिंग फाईनेंशियल कम्पनीज़ (एनबीएफसी) द्वारा ग्रीन डिपाजिट्स स्वीकार करने के लिए फ्रेमवर्क जारी किया है। इससे भारत में ग्रीन परियोजनाओं में निवेश करने में सहायता मिलेगी, तथा ग्राहकों को अपने सस्टेनेबिलिटी एजेन्डे को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। 11 अप्रैल को आरबीआई ने ग्रीन डिपाजिट्स को स्वीकार करने के लिए फ्रेमवर्क जारी किया था। यह फ्रेमवर्क 1 जून, 2023 से लागू हो चुका है। इसका उद्देश्य, सस्टेनेबल परियोजनाओं के लिए फंड्स के डायरेक्ट फ्लो को तय करना, डिपाजिटर्स के हितों की रक्षा करना और ग्रीनवाशिंग चिंताओं का समाधान करना है।

आरबीआई के अनुसार, फाईनेंशियल सेक्टर में ग्रीन एक्टिविटीज़ की दिशा में रिसोर्सेज़ को मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना मौजूद है। भारत में, ग्रीन फाईनेंस सेक्टर में तेजी आ रही है, तथा रेग्यूलेटेड इकाईयां (आरई) मौटे तौर पर फंडिंग के बड़े स्रोर्स के रूप में डिपाजिट्स पर निर्भर करती हैं। वास्तव में, कुछ आरई द्वारा ग्रीन परियोजनाओं तथा एक्टिविटीज़ को सपोर्ट करने के लिए पहले से ही ग्रीन डिपाजिट्स ऑफर करने शुरू कर दिये हैं। हमारे देश में ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम के विकास को बढ़ावा देने के लिए, एक फ्रेमवर्क तय किया गया है ताकि आरई द्वारा ग्रीन डिपाजिट्स को स्वीकार करना आसान बनाया जा सके।

निवेशकों को क्या जांच करनी चाहिए?

ऐसे बैंक या फाईनेंशियल संस्थान पर विचार करते हुए, जो ग्रीन डिपाजिट्स विकल्प ऑफर करते हैं, यह महत्वपूर्ण है कि किसी प्रतिष्ठित संस्थान को चुना जाए जिसके साथ रेस्पोंसिबल बैंकिंग प्रेक्टिसेज़ तथा ट्रांसपैरेंट रिपोर्टिंग का मजबूत ट्रैक रिकार्ड जुड़ा हो। बैंक द्वारा फंड किए जाने वाली परियोजनाएं आपके व्यक्तिगत मूल्यों और सस्टेनिबिलिटी लक्ष्यों से मेल करते हैं, इसे तय करने के लिए, यह ज़रूरी है कि आप परियोजनाओं के टाइप्स को समझ लें जिनको बैंक अपने ग्रीन डिपाजिट्स के ज़रिए फंड उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, रेग्यूलर डिपाजिट्स की तुलना में, ग्रीन डिपाजिट्स द्वारा ऑफर किए जाने वाली ब्याज दरों तथा रिटर्न की तुलना भी कर लेनी चाहिए, ताकि यह तय किया जा सके कि फाईनेंशियल रिटर्न्स कम्पेटेटिव हैं तथा आपके निवेश उद्देश्यों से मेल करते हैं।

रिटेल डिपाजिटर के लिए, इसमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वह अपने फंड्स को ग्रीन डिपाजिट्स में लगाते हैं या सामान्य डिपाजिट्स में। बैंकों द्वारा आपको सभी रिटेल डिपाजिट्स पर एक समान ब्याज दर ऑफर की जाएगी। लेकिन, कुछ बैंक या संस्थान नॉन-कॉलेबल ग्रीन डिपाजिट्स पर रिटेल डिपाजिटर्स को उच्च ब्याज दर ऑफर कर सकते हैं। सीनियर सिटीजन्स को 0.50% की अतिरिक्त ब्याज दर ऑफर की जाती है। यदि आप कंपनी के ग्रीन डिपाजिट्स में अपना पैसा लगा रहे हैं, तो तय कर लें कि आप AAA या इससे भी अधिक रैंक कंपनी डिपाजिट्स में अपना पैसा लगाते हैं।

इन ब्याज दरों, संस्थानों और उनकी निवेश स्ट्रेटजी का सावधानी से मूल्यांकन करके, निवेशक ग्रीन डिपाजिट्स को चुनते समय सोच समझ कर निर्णय ले सकते हैं, जो उनके फाईनेंशियल उद्देश्यों तथा सस्टेनेबिलिटी प्रिओरिटीज़ से मेल करते हैं।

(लेखक आदिल शेट्टी, बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ हैं)

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