Insurance: बीमा की क्या है असली कीमत, कहीं आलोचना के शोर में दब तो नहीं गई सच्चाई?
The unseen goodness of the insurance industry: बीमा उद्योग को अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन क्या यह केवल एकतरफा नजरिया है? IRDAI की रिपोर्ट के अनुसार, बीमा कंपनियों ने पिछले साल 1.72 लाख करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया, जिसमें से 80,000 करोड़ रुपये स्वास्थ्य बीमा के लिए दिए गए। इसके बावजूद, नकारात्मक खबरें ज्यादा सुर्खियाँ बटोरती हैं।

बीमा की असली कीमत: क्या आलोचनाओं में छिपी है सच्चाई?
Criticism vs. Reality, The True Cost of Insurance: बीमा उद्योग लाखों-करोड़ों लोगों और उनके व्यवसायों को सुरक्षा प्रदान करता है, फिर भी इसे बार-बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। मीडिया रिपोर्ट्स में अक्सर इसके नकारात्मक पहलुओं को उजागर किया जाता है, लेकिन क्या इसमें पूरी सच्चाई होती है?
आईआरडीएआई (IRDAI) की रिपोर्ट के अनुसार, बीमा कंपनियों ने पिछले साल 1.72 लाख करोड़ रुपये के दावों का निपटारा किया, जिसमें से 80,000 करोड़ रुपये सिर्फ स्वास्थ्य बीमा के लिए दिए गए। फिर भी, उन लोगों की कहानियाँ शायद ही कभी सामने आती हैं, जिन्हें इस प्रणाली का लाभ मिला। इसके विपरीत, अस्वीकृत दावों को लेकर अधिक हंगामा होता है। बीमा कंपनियाँ 80% से अधिक दावों का भुगतान करती हैं, जबकि 20% दावे धोखाधड़ी या अन्य कारणों से खारिज किए जाते हैं।
सुरक्षा की कीमत: क्यों जरूरी है बीमा?
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 60% चिकित्सा खर्च लोग अपनी जेब से भरते हैं। बीमा के अभाव में, यह आँकड़ा 100% तक बढ़ सकता है, जिससे लाखों परिवार आर्थिक संकट में आ सकते हैं। हर साल 7% भारतीय आबादी चिकित्सा खर्चों के कारण गरीबी रेखा से नीचे चली जाती है। अगर बीमा न हो, तो यह स्थिति और भी खराब हो जाएगी।
बीमा के बिना क्या होगा?
मोटर उद्योग पर प्रभाव: बीमा कंपनियाँ हर साल 55,000 करोड़ रुपये से अधिक के मोटर क्लेम का भुगतान करती हैं। यदि बीमा न हो, तो सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजा मिलना मुश्किल होगा। आयुष्मान भारत योजना को खतरा: यह योजना 55 करोड़ से अधिक लोगों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवरेज देती है। बीमा कंपनियों की भागीदारी के बिना, यह योजना टिकाऊ नहीं रहेगी।
प्राकृतिक आपदाओं से रिकवरी
बाढ़, चक्रवात और भूकंप जैसी आपदाओं के बाद बीमा कंपनियाँ मुआवजे के रूप में करोड़ों रुपये का भुगतान करती हैं। यदि बीमा उद्योग न रहे, तो यह जिम्मेदारी सरकार और नागरिकों पर आ जाएगी।
बीमा उद्योग पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन इसकी असली कीमत तब समझ में आती है जब हम इसके योगदान को गहराई से देखते हैं। आलोचना से पहले यह जानना जरूरी है कि बीमा सिर्फ एक सेवा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के भविष्य की सुरक्षा का आधार है।
नोट- यह लेख तपन सिंघल, चेयरमैन, जनरल इंश्योरेंस काउंसिल और एमडी एवं सीईओ, बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के द्वारा लिखा गया। यहा लेखक के अपने विचार हैं। यह टाइम्स नाउ नवभारत के विचार नहीं हैं।
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