अर्श से फर्श तक पहुंची कोचर दंपति, जानिए क्या है वीडियोकॉन लोन फ्रॉड मामला
Videocon Loan Fraud Case: हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने संसद में जानकारी दी थी कि आईसीआईसीआई बैंक ने 42,164 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला है।
क्या है वीडियोकॉन लोन फ्रॉड मामला?
- चंदा कोचर का का जन्म जोधपुर में हुआ था।
- उन्होंने मुंबई में अपनी पढ़ाई- लिखाई की है।
- कोचर भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की चर्चित शख्सियत हैं।
नई दिल्ली। आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा कोचर (Chanda Kochhar) ना सिर्फ भारत में, बल्कि विदेश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित, बैंकिंग सेक्टर की बड़ी शख्सियत रही हैं। ऊंचाइयां छूने वाली कोचर और उनके पति दीपक कोचर (Deepak Kochhar) अब गिरफ्तार हो गए हैं। उनपर लोन धोखाधड़ी का आरोप है। इनके बाद इस मामले में वीडियोकॉन ग्रुप के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत (Venugopal Dhoot) को भी गिरफ्तार किया गया। दरअसर सात साल पहले 3,250 करोड़ रुपये के लोन फ्रॉड के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की ओर से कोचर दंपति के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है।
क्या है पूरा मामला? (
चंदा साल 1984 में एक प्रशिक्षु के रूप में आईसीआईसीआई बैंक में शामिल हुईं और 2001 में कार्यकारी निदेशक बनी थीं। साल 2009-2011 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने उद्योगपति वेणुगोपाल धूत के वीडियोकॉन ग्रुप को अवैध रूप से लोन स्वीकृत करने का आरोप लगाया था। इससे पहले साल 2019 में सीबीआई ने वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों और दोपक एवं चंदा कोचर और धूत पर केस दर्ज किया था।
ये रही जरूरी डिटेल
सीबीआई का कहना है कि साल 2012 में वीडियोकॉन ग्रुप को आईसीआईसीआई बैंक से 3,250 करोड़ रुपये का लोन मिला, जिसके बाद धूत ने कथित तौर पर 64 करोड़ रुपये न्यू पावर रिन्यूएबल्स में ट्रांसफर कर दिए। इस कंपनी में दीपक कोचर की 50 फीसदी हिस्सेदारी थी। मामले में अपनी चार्जशीट में सीबीआई ने कहा है कि कोचर की वजह से आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप और अन्य कंपनियों को लोन स्वीकृत किया, जो कि बैंक की नीतियों के खिलाफ था। इसके बाद इन्हें गैर निष्पादित संपत्ति यानी एनपीए (NPA) घोषित कर दिया गया था। इसकी वजह से बैंक को नुकसान उठाना पड़ा और लोन लेने वालों को लाभ हुआ। मामले में जांच करने के बाद सीबीआई की ओर से इसे धोखाधड़ी करार दिया गया।
इस संदर्भ में बैंकिंग सूत्रों ने कहा कि चंदा के नेतृत्व के दौरान आईसीआईसीआई बैंक ने ज्यादा एनपीए की जानकारी दी। पुणे के व्यवसायी प्रफुल्ल शारदा की ओर से मांगी गई RTI के मुताबिक, साल 2021 तक यह लगभग 2,00,000 करोड़ रुपये था। साल 2018 की शुरुआत में चंदा छुट्टी पर चली गईं, जिसके बाद उन्होंने रिटायरमेंट के लिए आवेदन किया। आईसीआईसीआई बैंक ने रिटायरमेंट का आवेदन स्वीकार किया। बाद में कुछ अनियमितताएं सामने आईं।
कोचर के खिलाफ कार्रवाई
रिपोर्ट में कोचर को आईसीआईसीआई बैंक की आचार संहिता का उल्लंघन करने और बैंक की जरूरतों से सही तरीके से न निपटने की बात भी कही गई, जिसके बाद बैंक ने कोचर के खिलाफ कार्रवाई की और फिर बैंक से उनकी रिटायरमेंट को बर्खास्तगी घोषित किया और बैंक से मिलने वाले सारे लाभों से वंचित कर दिया। फिर कोचर ने न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की रिपोर्ट पर सवाल उठाया और साथ ही आईसीआईसीआई बैंक की ओर से बंबई हाई कोर्ट और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में उनकी बर्खास्तगी को चुनौती दी।
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