Ratan Tata: ‘नोएल टाटा को उत्तराधिकारी बनने के लिए और अनुभव की जरूरत’, ऐसा क्यों मानते थे रतन टाटा
9 अक्टूबर 2024, यह वह दिन था जब पूरा देश शोक में था। भारत माता ने इस दिन अपने कई रत्नों में से एक, सर रतन टाटा को खो दिया था। रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया था। 2011 में जब रतन टाटा के उत्तराधिकारियों की तलाश चल रही थी तब नोएल टाटा का नाम भी पेश किया गया था।
‘नोएल टाटा को उत्तराधिकारी बनने के लिए और अनुभव की जरूरत’, ऐसा क्यों मानते थे रतन टाटा
Ratan Tata: 9 अक्टूबर 2024 को देश शोक में था। वजह, भारत माता के सबसे कीमती रत्नों में से एक, सर रतन टाटा (Ratan Tata) का निधन था। रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतेले भाई, नोएल टाटा (Noel Tata) को टाटा ट्रस्ट (Tata Trust) का चेयरमैन नियुक्त किया गया। रतन टाटा का उत्तराधिकारी चुनना किसी चैलेंज से कम बिलकुल नहीं था। आखिरकार उनके उत्तराधिकारी को उनकी लिगेसी का ध्यान भी रखना था। साल 2011 में भी सर रतन टाटा के उत्तराधिकारी की खोज चल रही थी और लिस्ट में तब नोएल टाटा का नाम भी था। रतन टाटा की जीवनी, ‘रतन टाटा - ए लाइफ’ (Ratan Tata A Life) के मुताबिक तब रतन टाटा ने कहा था कि उनका उत्तराधिकारी बनने के लिए नोएल टाटा के पास मौजूदा अनुभव से अधिक अनुभव होना चाहिए था।
चयन प्रक्रिया से दूर रहे रतन टाटा
मार्च, 2011 में जब रतन टाटा के उत्तराधिकारी की तलाश के लिए कई उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया गया, तो उसमें नोएल टाटा भी शामिल थे। रतन टाटा ने उत्तराधिकारी को खोजने के लिए बनी चयन समिति से दूर रहने का फैसला किया था।रतन टाटा की जीवनी - ‘रतन टाटा ए लाइफ’ (Ratan Tata Biography) के अनुसार, बाद में उन्हें इस फैसले पर पछतावा हुआ। इस किताब को थॉमस मैथ्यू ने लिखा है और हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया है। किताब में कहा गया कि रतन टाटा चयन समिति से इसलिए दूर रहे, क्योंकि टाटा समूह के भीतर से कई उम्मीदवार थे, और वह उन्हें यह भरोसा देना चाहते थे कि एक सामूहिक निकाय सर्वसम्मति से निर्णय के आधार पर उनमें से किसी एक की सिफारिश करेगा। चयन समिति से दूर रहने का दूसरा कारण व्यक्तिगत था, क्योंकि यह व्यापक रूप से माना जाता था कि उनके सौतेले भाई नोएल टाटा उनके उत्तराधिकारी के लिए स्वाभाविक उम्मीदवार थे।
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‘मेरा बेटा भी अपने आप उत्तराधिकारी न बन पाता’
कंपनी में पारसियों और समुदाय के परंपरावादियों की ओर से दबाव के बीच नोएल टाटा को ‘अपना’ माना जाता था। किताब के अनुसार, हालांकि रतन टाटा के लिए केवल व्यक्ति की प्रतिभा और मूल्य ही मायने रखते थे। लेखक के मुताबिक, रतन टाटा नहीं चाहते थे कि नोएल को न चुने जाने की स्थिति में उन्हें उनके विरोधी के रूप में देखा जाए।किताब के मुताबिक, रतन टाटा ने कहा, ‘‘शीर्ष पद के लिए सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा करने के लिए नोएल के पास अबतक के अनुभव से अधिक अनुभव होना चाहिए था।’’ रतन टाटा ने कहा था कि यदि उनका कोई पुत्र भी होता, तो वह कुछ ऐसा करते कि वह अपने आप उनका उत्तराधिकारी न बन पाता।
इनपुट: भाषा (PTI)
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