भारत की दलित बिजनेसवुमैन कल्पना सरोज, जिन्हें कभी जहर की पुड़िया कहा जाता था
भारत में अब हम कई सफल महिला बिजनेसवुमैन आ चुकी हैं। पर क्या आप देश की बिजनेसवुमैन कल्पना सरोज के बारे में जानते हैं।
साहसी और जिद्दी दिल वाली एक दलित लड़की, पद्मश्री डॉ. कल्पना सरोज की कहानी।
मुख्य बातें
- मामा कहते थे जहर की पुड़िया
- 12 साल की उम्र में हो गई थी शादी
- आत्महत्या करने का भी किया प्रयास
Women Day: भारत में अब कई सफल महिला बिजनेसवुमैन आ चुकी हैं। पर क्या आप देश की दलित बिजनेसवुमैन कल्पना सरोज के बारे में जानते हैं। यदि नहीं तो आज हम उन्हीं के बारे में बता रहे हैं। साहसी और जिद्दी दिल वाली एक दलित लड़की, पद्मश्री डॉ. कल्पना सरोज को न केवल सामाजिक पूर्वाग्रहों से लड़ना पड़ा बल्कि अपने जीवन में कई कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। कभी हार न मानने और आगे बढ़ते रहने की इच्छा के साथ, उन्होंने न केवल अपने सपनों को साकार किया बल्कि कई महिलाओं को आगे बढ़ने में साथ भी दिया।
एक दलित लड़की के रूप में जीवन
महाराष्ट्र के रोपरखेड़ा गांव में जन्मीं कल्पना सरोज एक दलित परिवार से थीं । उस समय, निचली जाति के लिए स्वतंत्रता और बुनियादी शिक्षा मुश्किल थी और बाल विवाह भी बहुत आम था। लड़की को परिवार पर बोझ समझा जाता था और उसकी शादी कम उम्र में कर दी जाती थी।
मामा कहते थे जहर की पुड़िया
उसने पिता पुलिस कांस्टेबल थे और अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अड़े थे, जिसके लिए उन्होंने उसे गांव के स्कूल में भेजा। भले ही वह पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन उन्हें स्कूल में काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा। निचली जाति से आने के कारण बच्चे उसके साथ नहीं खेलते थे। उन्हें स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लेने से भी मना कर दिया जाता था। साथ ही अन्य बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को उसके साथ खेलने के लिए डांटते भी थे।
12 साल की उम्र में हो गई थी शादी
सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण, उसके पिता ने 12 साल की उम्र में उसकी शादी कर दी थी। जिसके बाद वह अपने पति और ससुराल वालों के साथ रहने के लिए मुंबई की एक झुग्गी में चली गई, जहां उसके साथ नौकरानी की तरह व्यवहार किया जाता था, उसे भूखा रखा जाता था और पीटा जाता था। जब उसके पिता 6 महीने बाद उनसे मिलने गए, तो उसे अपनी बेटी के बजाय एक चलती-फिरती लाश मिली।
आत्महत्या करने का भी किया प्रयास
घर लौटने पर, उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने की कोशिश की। उसे अपने गांव के लोगों ने ससुराल छोड़ कर मायके में रहने के लिए ताने मारते थे। इन सबसे परेशान होकर उन्होंने जहर पीकर आत्महत्या करने का प्रयास भी किया था। हॉस्पिटल में 24 घंटे बिताने के बाद जब उन्हें होश आया तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कुछ बड़ा हासिल करने का फैसला किया। उसने अपने माता-पिता को नौकरी की तलाश के लिए अपने चाचा के घर मुंबई जाने के लिए मना लिया।
ऐसे हुआ देश की पहली बिजनेसवुमैन का उदय
उन्हें सबसे पहले एक कपड़ा कारखाने में सिर्फ 2 रुपये में पहली नौकरी शुरू की और सिलाई मशीन चलाने में महारत हासिल की। अपने पिता की नौकरी जाने और परिवार की एकमात्र कमाने वाली होने के कारण उन्हें पैसे के महत्व का एहसास हुआ। वह अपनी साधारण नौकरी से संतुष्ट नहीं थी और कुछ बड़ा हासिल करना चाहती थी। ऐसे में उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया।
1984 में मिला लोन
उन्हें एक सरकारी योजना का पता चला, जिसमें निचली जाति की महिलाओं को लोन दिया जाता था। दो साल बाद, 1984 में, उन्हें लोन मिला। इन पैसों से उन्होंने कुछ सिलाई मशीनें लगाकर अपने बिजनेस की शुरुआत की और दिन में 16 घंटे काम करना शुरू किया। उनकी इस सफर ने एक नया मोड़ तब लिया जब उन्हें केएस फिल्म प्रोडक्शन शुरू किया और अपनी पहली फिल्म लॉन्च की। फिल्म को तीन अलग भाषाओं अंग्रेजी, तेलुगु और हिंदी में डब किया गया था।
कैसे शुरू हुआ कमानी ट्यूब्स?
2001 में, जब वह लोकप्रिय हो रही थी, तो कमानी ट्यूब्स मजदूर संघ ने उनसे अपनी कंपनी को बचाने की उम्मीद उनसे बात की। मजदूरों को पिछले 3 साल से उनका वेतन नहीं दिया जा रहा था। शुरू में उनके कुछ सलाहकारों ने उन्हें इस कंपनी की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया था। लेकिन उनसे मजदूरी की बुरी स्थिति नहीं देखी गई। और उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया। कुछ समय और कड़ी मेहनत के बाद वह कमानी ट्यूब्स कंपनी कर्ज से बाहर निकालने में कामयाब रही और कंपनी को मुनाफे में वापस लाने में सफल रहीं।
आज करोड़ों की हैं मालकिन
कल्पना सरोज आज 11.2 करोड़ की निजी संपत्ति के साथ कमानी ट्यूब्स की सीईओ हैं। उन्हें 2013 में बिजनेस और इंडस्ट्री क्षेत्र में अच्छा काम करने के लिए पद्म श्री और 2006 में महिला उद्यमियों के लिए नौवें राजीव गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने कल्पना सरोज फाउंडेशन की स्थापना भी की है।
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