Air pollution in Delhi NCR: दिल्ली और एनसीआर में हो रहे पॉल्यूशन का क्या है पराली कनेक्शन? किन राज्यों से आ रही हैं प्रदूषित हवाएं
Air pollution in Delhi NCR- दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की सफेद चादर ने घेरना शुरू कर दिया है। रविवार 22 अक्टूबर को राजधानी में AQI 266 पहुंच गया, जो खराब स्तर पर माना जा रहा है। हालांकि, राजधानी क्षेत्र में 'ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान'के स्टेज 2 को लागू कर दिया गया है फिर भी प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली में लगातार बढ़ रहे पॉल्यूशन की वजह पंजाब में जलाई जा रही पराली और कंस्ट्रक्शन कार्य से उड़ने वाली धूल को माना जा रहा है।
पराली कनेक्शन
दिल्ली: अक्टूबर-नवंबर माह में धान की कटाई का सीजन शुरू हो जाता है। किसान प्रतिबंधों की अनदेखी कर पराली को आग के हवाले करने से बाज नहीं आते। इसका खामियाजा वायु प्रदूषण के तौर पर झेलना पड़ता है। दिल्ली-एनसीआर में तेजी से गिरती हवा की क्वालिटी के पीछे पराली जलाने की घटनाएं सबसे बड़ी वजह के तौर पर सामने आ रही हैं। राजधानी में रविवार को AQI 266 के पार पहुंच चुका है। प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी बढ़कर करीब 35 फीसदी तक पहुंच गई है, जो अब तक इस वर्ष सबसे अधिक माना जा रहा है। पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि और अनुकूल परिवहन-स्तरीय हवा की गति के कारण भी ऐसा होना बताया जा रहा है। हालांकि, राजधानी क्षेत्र में 'ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान' के स्टेज 2 को लागू कर दिया गया है फिर भी प्रदूषण में कमी के बजाय वृद्धि दर्ज की जा रही है। आइये जानते हैं दिल्ली को पॉल्यूशन से ढकने में किस राज्य का हाथ ज्यादा है।
पराली है क्या बला
धान की फसल को जमीन से काफी छोड़कर काटने के बाद जो नीचे का हिस्सा (ठूंठ) होता है, उसे पराली कहा जाता है। इसे उत्तर भारत में इसी नाम से जानते हैं। किसान धान की फसल की कटाई के बाद उसके मूल्यवान ऊपरी हिस्से को काट देते हैं और कुछ हिस्सा खेत में छोड़ देते हैं, जो किसान के किसी काम का नहीं होता है। ये फसल का गैरजरूरी हिस्सा माना जाता है। लिहाजा, ये किसान के किसी काम का नहीं रहता। किसानों के पास फसल अवशेष या पराली का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में वो इसे जानबूझकर आग लगाकर स्वाहा करने में विश्वास रखते हैं। पराली का धुंआ वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है, जो वायु की गुणवत्ता को खराब करता है। इसके धुएं में जहरीले प्रदूषक वातावरण में फैलते हैं, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और कार्सिनोजेनिक, पॉलीसाइक्लिक, एरोमैटिक और हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं। लिहाजा, दिल्ली में धुंध बढ़ जाती है।
20 मिलियन टन धान की पराली
एक रिसर्च के मुताबिक, करीब एक टन पराली जलाने पर जो गैसें निकलती हैं, उसमें 14 सौ किलोग्राम से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। इसके अलावा पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा 3 किलो और कार्बन मोनोडाइऑक्साइड तकरीबन 60 किलो से भी ज्यादा होती है। ये जहरीली गैसें फेफड़ों, दिल और यहां तक कि आंखों पर बुरा असर डालती हैं। इसकी वजह से अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज, ब्रोंकाइटिस और कैंसर जैसी बीमारियां होने के चांस बढ़ जाते हैं। वहीं, साल 2023 में केवल पंजाब में लगभग 20 मिलियन टन धान की पराली होने का अनुमान है, जिसमें 3.3 मिलियन टन बासमती पराली भी शामिल है। जलाने के बजाय दूसरी तरह से इस समस्या का निस्तारण करने के लिए पंजाब में 2022 में करीब सवा लाख से मशीनें मौजूद हैं। इन मशीनों को तकनीकी तौर पर क्रॉप रेजीड्यू मैनेजमेंट (CRM) कहते हैं।
पंजाब के इन जिलों में पराली जलाने के ज्यादा मामले
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच देश के छह राज्यों में पराली जलाने के कुल 69,615 मामले आए थे, जिनमें से 49,922 अकेले पंजाब के हिस्से में थे। पिछले वर्ष के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पंजाब के संगरूर, बठिंडा, फिरोजपुर, मुक्तसर और मोगा जिले सबसे अधिक फसल जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं। राज्य में हुई पराली जलाने की कुल घटनाओं का लगभग 44 प्रतिशत इन्हीं जिलों का हिस्सा है.
दिल्ली क्यों बन रही गैस चेंबर
जहां बात दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता खराब होने की है तो इसके पीछे वाहनों, फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं, कंस्ट्रक्शन की वजह से पैदा हो रही धूल भी है। वहीं सबसे बड़ा हिस्सा पराली जलाने से निकले जहरीले धुएं का है। पंजाब में जलने वाली पराली का धुआं वातावरत में तैरता हुआ दिल्ली की ओर आता है। यही प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। पिछले सप्ताह सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR-India)ने दिल्ली एनसीआर के शहरों में संतोषजनक हवा होने की बात कही थी। उसके महज 3 दिन बाद फिर हवा में जहर खुल गया। अनुमान लगाया जा रहा है कि दीवाली और सर्द बढ़ने पर प्रदूषण का मीटर तेजी के साथ भागेगा। वैसे दिल्ली में मेट्रो और बसों की सुविधा है, लेकिन लोग अपने वाहनों से ही सफर करना पसंद करते हैं। ज्यादा वाहन भी प्रदूषण के कारक हैं।
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