गिरीश तिवारी उर्फ गिर्दा, जिनके गीतों ने उत्तराखंड आंदोलन में चिंगारी को ज्वाला बना दिया

बात उत्तराखंड की हो या उत्तराखंड के कवियों की, जनकवि गिरीश तिवारी उर्फ गिर्दा से बड़ा नाम और कौन सा हो सकता है। आज City की हस्ती में हम उन्हीं गिर्दा की कर रहे हैं। गिर्दा की कविताओं ने जन-जन को ऐसा झकझोरा कि उत्तराखंड आंदोलन में उनके गीत, जनगीत बन गए। चलिए जानते हैं गिर्दा और उनके गीतों के बारे में -

जनकवि गिरीश तिवारी

उत्तराखंड का या साहित्य प्रेमी शायद ही कोई शख्स ऐसा हो जो गिरीश तिवारी उर्फ 'गिर्दा' को न जानता हो। गिर्दा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, उनकी आग उगलती कविताएं उनका परिचय अपने आप देती हैं। गिर्दा शब्द को उत्तराखंड के लोग तो अच्छे से समझते हैं, लोग नहीं समझते, उन्हें इस शब्द का संधि विच्छेद करके हम बता देते हैं। गिरीश तिवारी के पहले नाम गिरीश से 'गिर' लिया गया है, जबकि कुमाऊं क्षेत्र में 'दा' शब्द बड़े भाई के लिए आदर से लिया जाता है। इस तरह से गिरीश तिवारी सभी के बड़े भाई बनकर 'गिर्दा' कहलाए। कुमाऊं क्षेत्र में इसी तरह से बड़े आदरणीय व्यक्ति का नाम लिया जाता है। जनकवि गिर्दा ने जन-जन में चेतना जगाने का काम किया और उनकी कविताएं आज उनके इस दुनिया से जाने के करीब 14 साल बाद और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं। City की हस्ती में आज जानते हैं उत्तराखंड के जनकवि गिरीश तिवारी उर्फ गिर्दा के बारे में -

गिर्दा का बचपन

गिर्दा का जन्म 10 सितंबर 1945 को अल्मोड़ा के पास हवलबाग (हौलबाग) के एक गांव में हुआ था। उस समय यह हिस्सा ब्रिटिश इंडिया के यूनाइटेड प्रोविंस का हिस्सा था, जो बाद में उत्तर प्रदेश बना और अल्मोड़ा एक जिला बन गया। साल 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद अल्मोड़ा उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र का प्रमुख जिला बना। यहीं अल्मोड़ा शहर में हवलबाग के पास एक गांव है ज्योली, जहां पर गिर्दा का जन्म हुआ। गिर्दा ने अल्मोड़ा के सरकारी इंटर कॉलेज से पढ़ाई की और बाद में आगे की पढ़ाई के लिए वह नैनीताल चले गए। स्वर्गीय लेखक और गीतकार ब्रिजेंद्र लाल साह से मुलाकात के बाद गिर्दा ने कविता के जरिए बात कहने की अपनी कला को पहचाना। 21 साल की उम्र में उनकी मुलाकात लखीमपुर खीरी में समाजिक कार्यकर्ताओं से हुई और वह उनके काम से काफी प्रभावित हुए। इस तरह से गिर्दा के जीवन को एक रास्ता मिला और वह एक क्रिएटिव राइटर के साथ ही समाजिक कार्यकर्ता बन गए। वह चिपको आंदोलन से भी जुड़े रहे और बाद में उत्तराखंड आंदोलन में उनके गीतों ने आंदोलनकारियों में जगी चिंगारी को भड़काने का काम किया।

अंधेर नगरी और नगाड़े खामोश हैं

गिर्दा ने कई मशहूर नाटकों 'अंधा युग', 'अंधेर नगरी', 'थैक यू मिस्टर ग्लैड' और 'भारत दुर्दशा' जैसे नाटकों का निर्देशन किया। उन्होंने स्वयं भी कई नाटक लिखे, जिनमें 'नगाड़े खामोश हैं' और 'धनुष यज्ञ' प्रमुख हैं। साल 2002 में उनकी कविताओं और गीतों का संकलन पब्लिश हुआ था, जिसमें मुख्य तौर पर उनकी उत्तराखंड आंदोलन से जुड़ी कविताएं और उत्तराखंड काव्य को संकलित किया गया था।

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