उत्तराखंड : देवभूमि की वह जगह जहां रीठा भी मीठा होता है और प्रसाद में दिया जाता है

उत्तराखंड के चमोली जिले में एक ऐसी जगह है, जहां का रीठा भी मीठा होता है। यह जगह कोई और नहीं बल्कि रीठा साहिब गुरुद्वारा है। इस लेख में जानिए रीठा साहिब का इतिहास क्या है और यहां कैसे पहुंच सकते हैं।

Reetha Sahib gurudwara.

रीठा साहिब गुरुद्वारा, चंपावत

रीठा को अंग्रेजी में सोपनट (Soapnut) यानी साबुन वाला फल कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब रीठा पानी के संपर्क में आता है तो यह साबुन का ही काम करता है। रीठा खाने वाला फल नहीं है, क्योंकि यह कड़वा होता है। लेकिन उत्तराखंड तो देवभूमि है। यहां कड़वा रीठा भी मीठा हो जाता है। यही नहीं, उत्तराखंड में एक ऐसा धार्मिक स्थान भी है, जहां पर रीठा का प्रसाद मिलता है। आश्चर्यजनक रूप से यहां का रीठा मीठा होता है। चलिए जानते हैं कि उत्तराखंड के किस शहर में है ये धार्मिक स्थल और यहां की खास बातें -

कहां है रीठा साहिब गुरुद्वार

रीठा साहिब गुरुद्वारा उत्तराखंड के चंपावत जिले में है। पहाड़ों की गोद में बसे द्यूरी की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसी द्यूरी गांव, जिसे अब कस्बा भी कहा जा सकता है में रीठा साहिब गुरुद्वारा है। इस गुरुद्वारे को लोधिया और रतिया नदियों के तट पर 1960 में बनाया गया था। यहां पास में ही ढेरनाथ मंदिर भी है और बैसाखी पूर्णिमा पर गुरुद्वारे में एक बड़े मेले का आयोजन होता है।

रीठा साहिब नाम कैसे पड़ा

कहा जाता है कि गुरुनानक देव स्वयं यहां आए थे। यहां पर गुरुनानक की एक नाथ योगी के साथ मुलाकात हुई, जिन्हें नानक जी ने भगवान के नाम को याद करते हुए मानव सेवा में आने के लिए प्रेरित करने की कोशिश की। रीठा साहिब को उसका यह नाम कैसे मिला, इस संबंध में जनमसखी में तो नहीं मिलता, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि गुरुनानक देव जी ने अपनी जादुई शक्ति से कड़वे रीठा को मीठे में बदल दिया था। ऐसा उन्होंने भाई मरदाना को खिलाने के लिए किया। आज भी यहां पर रीठा का एक पेड़ है। हालांकि, यह वह पेड़ नहीं है, जिसका संबंध गुरुनानक देव जी से है। गुरुद्वारे में आने वाले श्रद्धालुओं को मीठे रीठा का प्रसाद दिया जाता है।

यहां लोगों का यह भी मानना है कि सिर्फ उसी साख के रीठा मीठे नहीं हैं, जिसके नीचे गुरुनानक देव जी बैठे थे। यही नहीं प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले सभी रीठा मीठे भी नहीं होते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि गुरुद्वारा से करीब 10 किमी दूर एक ट्रैक है, जहां पर ऐसे की रीठा के पेड़ हैं। उन पेड़ों से रीठा लाकर गुरुद्वारे के प्रसाद में मिलाए जाते हैं। जहां वह पेड़ हैं, उसे नानक बागची यानी नानक का बाग कहते हैं।

कैसे जाएं

यह जिला मुख्यालय चंपावत शहर से करीब 72 किमी दूर एक बहुत ही खूबसूरत जगह द्यूरी में है। नानक मत्ता से रीठा साहिब की हवाई दूरी सिर्फ 60 किमी है, लेकिन सड़क मार्ग से यह 209 किमी दूर है। हलद्वानी से रीठा साहिब की दूरी करीब 119 किमी है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन बरेली-टनकपुर मार्ग पर टनकपुर ही है, जो यहां से 166 किमी दूर है। अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो नजदकी एयरपोर्ट पंतनगर है, जहां से आपको सड़कमार्ग से रीठा साहिब पहुंचना होगा।

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