अमृतसर का नाम कैसे पड़ा, जानें इसका इतिहास और क्यों कुछ लोग कहते हैं अंबरसर

अमृतसर आज लुधियाना के बाद पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह पंजाब की आर्थिक राजधानी है और सांस्कृतिक केंद्र भी है। यहां पर विश्व प्रसिद्ध गोल्डन टेम्पल यानी हरमंदिर साहिब है। इसी अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। जानिए कब और कैसे इस शहर की नींव पड़ी, कैसे इस शहर को उसका यह नाम मिला।

My City Amritsar.

अमृतसर की कहानी

अमृतसर पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। वैसे बता दें कि पंजाब का सबसे बड़ा शहर लुधियाना है। अमृतसर पंजाब के माझा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और यह संस्कृति, यातायात और पंजाब में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है। अमृतसर शहर ही अमृतसर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। अमृतसर पंजाब और हरियाणा की राजधानी व केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ से 217 किमी उत्तर-पश्चिम में बसा शहर है। दिल्ली से अमृतसर की दूरी करीब 455 किमी है। अमृतसर भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। अमृतसर शहर से अटारी-वाघा बॉर्डर मात्र 28 किमी दूर है और पाकिस्तान के सबसे बड़े शहरों में से एक लाहौर की दूरी यहां से सिर्फ 47 किमी है।

अमृतसर के अन्य नाम

अमृतसर के तो नाम में ही अमृत है। अमृतसर के अलावा भी इस शहर को कई अन्य नामों से जाना जाता है और पूर्व में जाना जाता था।

  • अमृतसरा
  • रामदासपुर
  • अंबरसर

जैसा कि हमने ऊपर ही बताया अमृतसर, पंजाब में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है। यह पंजाब की आर्थिक राजधानी भी है। अमृतसर एक बड़ा पर्यटन केंद्र है और यहां पर हर रोज लगभग 1 लाख टूरिस्ट आते हैं। भारत सरकार की हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑगमेंटेशन योजना यानी HRIDAY योजना के तहत अमृतसर को एक धरोहर नगरी के रूप में चुना गया है। अमृतसर में ही विश्व प्रसिद्ध और सिख धार्मिक स्थल हरमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) है। दुनिया में सबसे अधिक श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे में ही आते हैं। यह शहर अपने भोजन के लिए भी खूब पहचान रखता है। यहां के भोजन के लिए अमृतसरी फूड शब्द का इस्तेमाल होता है। अमृतसरी नान और लच्छा पराठा आपने भी कभी न कभी जरूर खाया होगा। यहां पर लकड़ी के चेस बोर्ड और चेस पीस बनाने की इंडस्ट्री है।

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अमृतसर से जुड़ी पौराणिक कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं अमृतसर में था। यहां आज भी भगवान वाल्मीकि तीर्थ स्थल मौजूद है। रामायण के अनुसार देवी सीता ने अपने और भगवान राम के दोनों बच्चों लव और कुश को यहीं रामतीर्थ आश्रम में जन्म दिया था। रामतीर्थ मंदिर अमृतसर से करीब 12 किमी पश्चिम की ओर चोगांवा रोड पर मौजूद है। माना जाता है कि रामायण काल में यहां पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। यह भी माना जाता है कि लव-कुश ने भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा यहीं पर पकड़ा और पवनपुत्र हनुमान को आज के दुर्गियाना मंदिर के बास एक पेड़ से बांध दिया था। कहते हैं कि लव-कुश के नाम पर यहां दो शहर बसे, जिन्हें आज लाहौर (लव के नाम पर) और कसूर (कुश के नाम पर) कहा जाता है और आज यह दोनों शहर पाकिस्तान में हैं।

आधुनिक अमृतसर की नींव किसने रखी

ब्रिटानिका के अनुसार साल 1577 में सिखों के चौथे गुरु रहे गुरु रामदास ने अमृतसर की नींव रखी थी। उन्हें मुगल बादशाह अकबर ने यहां पर जमीन दी थी। गुरु रामदास ने यहां के तत्कालीन गांव तुंग में एक पवित्र सरोवर की खुदाई करने का आदेश दिया, जिसे 'अमृत सरस' नाम दिया गया। इसी अमृत सरस से शहर का नाम अमृतसर पड़ा। इस पवित्र सरोवर के बीच में मौजूद एक टापू पर पांचवें सिख गुरु अर्जन देव ने एक मंदिर 'हरमंदिर साहिब' का निर्माण करवाया। मंदिर तक जाने के लिए मार्बल का पुल भी बनाया गया। बाद में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल (1801-39) में मंदिर के ऊपरी हिस्से को सोने की परत चढ़े तांबे के गुंबद से सजाया गया। तभी से इस धार्मिक स्थल को स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के नाम से जाना जाने लगा। धीरे-धीरे अमृतसर सिख धर्म को मानने वालों का केंद्र बन गया और बढ़ती सिख शक्ति के केंद्र के रूप में विकसित हुआ।

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एक अन्य कहानी के अनुसार गुरु अमर दास ने इस जगह को चुना और 'गुरु दा चक्क' नाम दिया। बाद में गुरु अमर दास ने राम दास से नया शहर बसाने के लिए जगह तलाशने को कहा। इसके साथ ही गुरु ने उनसे कहा कि वहां एक सरोवर खोदें, जो शहर का केंद्र बिंदु हो। साल 1574 में राम दास को सिख पंथ का चौथा गुरु बनाया गया। इस दौरान तीसरे गुरु अमर दास के पुत्रों से उन्हें काफी विरोध भी झेलना पड़ा। गुरु रामदास ने इस शहर की नींव रखी और शहर का नाम रामदासपुर रखा गया। उन्होंने भारत के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारियों और कलाकारों को यहां नए शहर में बसने के लिए बुलाया। पांचवें गुरु अर्जन देव के समय लोगों के दान और श्रमदान के चलते शहर का तेजी से विकास हुआ।

महाराण रणजीत सिंह ने बनवाई मोटी दीवार

साल 1762 और 1766-67 में दुर्रानी साम्राज्य के अहमद शाह दुर्रानी ने सिखों की धरती पर हमला किया। इस दौरान उसने पूरे अमृतसर शहर को घेर लिया और यहां लोगों का कत्ल-ए-आम करके शहर को बर्बाद कर दिया। सिख साम्राज्य के शासनकाल के दौरान साल 1822 में महाराणा रणजीत सिंह ने कटरा महा सिंह क्षेत्र से शुरू करके शहर को एक मोटी दीवार से सुरक्षित किया। उन्होंने कटरा मोती राम, कटरा कंवर खड़क सिंह (कटरा निक्कई), कटरा फतेह सिंह कल्लियांवाला और कटरा अहलुवालिया बनवाए। किले नुमा रिहायशी इलाकों 'कटरा' के अलावा महाराणा रणजीत सिंह ने शहर में कई अन्य निर्माण भी करवाए।

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बाद में शेर सिंह ने शहर की दीवार को बनाना जारी रखा और यहां 12 दरवाजे बनवाए। उन्होंने धूर कोट नाम से एक किला भी बनवाया। इस किले की दीवारें 1 यार्ड यानी 3 फीट चौड़ी और 7 यार्ड यानी 21 फीट ऊंची थीं। यह किलेनुमा शहर कुल 5 किलोमीटर में फैला था। इसके 12 दरवाजों का नाम इस प्रकार था -

  • लाहोरी दरवाजा (लाहोरी गेट)
  • खजाना दरवाजा (खजाना गेट)
  • देओरी हकीमन (गेट हकीमा)
  • गिलावली दरवाजा (अब मौजूद नहीं है)
  • दरवाजा रैंगर नांगलियां (गेट भगतावाला) (अब मौजूद नहीं है)
  • दरवाजा रामगढ़ियां (चट्टिविंद गेट) (बाद में जीर्णोद्धार किया गया)
  • दरवाजा अलूवालिया (दरवाजा घेव मंडी) (मौजूद नहीं था, बाद में जीर्णोद्धार किया गया)
  • दोबूर्जी दरवाजा (दिल्ली दरवाजा)
  • देवढ़ी कलान
  • दरवाजा रामबाग
  • देवढ़ी शाजादा (हाथी दरवाजा)
  • दरवाजा लोहगढ़ (अब मौजूद नहीं है)

साल 1849 में अमृतसर ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना। उस समय अमृतसर एक किलेनुमा शहर था, जिसके चारों ओर दीवार थी। साल 1866 में अंग्रेजों ने यहां 13वां दरवाजा बनाया, जिसे हॉल गेट नाम दिया गया। बाद में अंग्रेजों ने कुछ दीवारों और दरवाजों को गिरा दिया और कुछ अन्य निर्माणा कराए। साल 1885 में शहर की बिल्कुल नई दीवार बनाई गई।

जलियांवाला बाग

स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर जलियांवाला बाग भी है। भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान यहां पर अंग्रेजों ने मानवता को शर्मसार करने वाली हरकत की थी। 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेज कर्नल REH डायर के ऑर्डर पर ब्रिटिश सैनिकों ने प्रदर्शन कर रहे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं, जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 निहत्थे प्रदर्शनकारी शहीद हो गए। उस समय आजादी की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के अनुसार इस नरसंहार में करीब 1000 लोगों की जान गई थी। इसके अलावा सैकड़ों अन्य घायल हो गए। अंग्रेजों के नरसंहार की यह जगह आज राष्ट्रीय स्मारक है।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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