ये नूर कहां से आया : अल्मोड़ा ही नहीं देश की शान हैं प्रसून जोशी, 'रहना तू... है जैसा तू...'

आज City ki Hasti में एक ऐसे शख्स की कहानी, जिन्होंने फिल्मी गानों में कविता की मिठास को फिर से घोला। ऐसे ऐसे शख्स की कहानी, जिसका जन्म तो पहाड़ों में हुआ, लेकिन उसने देश की माटी को इस तरह से समझा और परखा कि उसका एक-एक विज्ञापन और गीत लोगों की जुबां पर चढ़ गया। चलिए जानते हैं प्रसून जोशी की कहानी -

City ki Hasti Prasoon Joshi.

प्रसून जोशी की कहानी

मन के अंधेरों को रौशन सा कर दे... ठिठुरती हथेली की रंगत बदल दे...
मेरे दिल पर फतेह लहराने, मेरी रूह को भिगाने... ये नूर कहां से आया... इस बात को अल्लाह जाने
कैसे मुझे तुम मिल गईं... किस्मत पे आए न यकींन...
जी हां बॉलीवुड फिल्मों की ये वो नग्में हैं, जिन्हें एक पीढ़ी गुनगुनाते हुए बड़ी हो गई। इन गीतों को लिखा है हिमालय के पहाड़ों में जन्मे प्रसून जोशी (Prasoon Joshi) ने। प्रसून जोशी का जन्म 16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा (Almora) में हुआ था, जो उस समय उत्तर प्रदेश में था। अपने मधुर गीतों के लिए तीन बार फिल्मफेयर अवॉर्ड (Filmfare Award) जीत चुके प्रसून जोशी को दो बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड (National Film Award) भी मिल चुका है। इसके अलावा कान्स में भी उन्हें लॉयन गोल्ड मिला है। आइफा (IIFA) भी उनके टेलेंट को तीन बार अवॉर्ड से नवाज चुकी है। भारत सरकार ने उन्हें सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) का चेयरपर्सन भी नियुक्त किया। प्रसून जोशी सिर्फ अल्मोड़ा ही नहीं, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश की शान हैं। आज सिटी की हस्ती में प्रसून जोशी के बारे में ही जानते हैं।
प्रसून जोशी के गीत सच में ऐसे होते हैं, जो मन के अंधेरों को रौशन सा कर देते हैं। करोड़ों दिलों पर फतेह लहराने, रूहों को भिगाने के लिए सच में अल्लाह ही जाने कि वह अपनी कलम में इतना नूर कहां से लाते हैं। किस्मत पर यकींन करना मुश्किल है कि इतना बेहतरीन कवि कैसे इतनी आसानी से बॉलीवुड और हमें मिल गया। हालांकि, वह बनावटी दुनिया में मुखौटे लगाने से परहेज करते हैं, तभी तो उनका गाना भी कहता है - रहना तू... है जैसा तू... थोड़ा सा दर्द तू... थोड़ा सुकूं...

अल्मोड़ा ही नहीं, कई शहरों में रहे

प्रसून जोशी के पिता डीके जोशी पीसीएस अधिकारी थे और तत्कालीन उत्तर प्रदेश में स्टेट एजुकेशन सर्विस के एडिशनल डायरेक्टर भी रहे। बचपन में प्रसून जोशी ने अल्मोड़ा ही नहीं नैनीताल, टिहरी, चमोली गोपेश्वर में समय बिताया। बाद के समय में वह रामपुर, मेरठ और दिल्ली में भी रहे।

घर से संगीत और संस्कृति की समझ मजबूत हुई

उनकी मां सुषमा जोशी पॉलिटिकल साइंस की लेक्चरर रहीं और उन्होंने तीन दशक से भी ज्यादा समय तक ऑल इंडिया रेडियो के लिए प्रस्तुतियां दीं। प्रसून जोशी के माता-पिता दोनों क्वालिफाइड क्लासिकल वोकलिस्ट रहे हैं। उनके माता-पिता से ही उन्हें कला विरासत के रूप में मिली है। बचपन में घर के माहौल से उनकी संगीत और संस्कृति के प्रति मजबूत समझ विकसित हुई।

देश की तासीर समझी

अलग-अलग शहरों, संस्कृति और समाज में रहने की वजह से प्रसून जोशी ने असली भारत की नब्ज को समझा, देश की तासीर समझी। उनकी यही समझ उनके गीतों, कविताओं, स्क्रीनप्ले, डायलॉग और एडवरटाइजिंग में भी झलकती है।

17 साल की उम्र में पहली किताब

प्रसून जोशी ने कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था। thebetterindia.com के अनुसार उनकी पहली किताब 'मैं और वो' (conversation with himself) 17 साल की उम्र में छप गई थी। उनके गीतों के संग्रह की एक किताब 'सनशाइन लेन्स' भी छप चुकी है। इसके अलावा उनकी किताब 'थिंकिंग अलाउड' में उभरते भारत पर निबंध हैं।

गाजियाबाद से पोस्ट ग्रेजुएट

प्रसून जोशी ने फिजिक्स में बीएससी की है। इसके बाद उन्होंने IMT गाजियाबाद से एमबीए किया। MBA के दौरान उन्होंने निर्णय लिया कि संस्कृति और कला के प्रति उनके प्रेम को वह अपने करियर को संवारने में लगाएंगे और इस तरह से उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में करियर बनाने का मन बना लिया।

विज्ञापन की दुनिया में प्रसून

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली में Ogilvy & Mather से की और सिर्फ 10 साल में ही वह मुंबई ऑफिस के एग्जक्यूटिव क्रिएटिव डायरेक्टर बन गए। साल 2002 में उन्होंने एग्जक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट व नेशनल क्रिएटिव डायरेक्टर के तौर पर McCann-Erickson ज्वाइन की। साल 2006 तक वह मैक्केन में साउथ और साउथ-ईस्ट एशिया के रीजनल क्रिएटिव डायरेक्टर बन गए। इसी साल उन्हें प्रमोट करके मैक्केन वर्ल्डग्रुप इंडिया का एग्जक्यूटिव चेयरमैन और रीजनल क्रिएटिव डायरेक्टर एशिया पैसिफिक बनाया गया।

ठंडा मतलब...

इस दौरान उन्होंने नेसले, कोका कोला, माइक्रोसॉफ्ट, मास्टरकार्ड, लोरियाल, इंटेल एक्स बॉक्स, रेकिट बेंकिसर, युनिलीवर, परफेट्टी, ब्रिटेनिया, सफोला, डाबर, आईटीसी फूड्स, टीवीएस मोटर्स, रिलायंस, रिलायंस जियो, पेटीएम जैसे दर्जनों ब्रांड के लिए विज्ञापन बनाए। आमिर खान का कोका कोला वाला वह विज्ञापन याद है ना, जिसमें वह पहाड़ी स्टाइल में ठंडा मतलब... कहते हुए दिखाई देते हैं! उनके हैप्पीडेंट के विज्ञापन ने उन्हें कान्स गोल्ड जिताया। यही नहीं इस विज्ञापन को 21वीं सदी के 20 सबसे अच्छे विज्ञापनों में से एक चुना गया।

स्वच्छ भारत का इरादा

प्रसून जोशी ने सिर्फ बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए ही विज्ञापन नहीं बनाए हैं, बल्कि कई सरकारी योजनाओं को भी उन्होंने पर्सनल टच दिया है। स्वच्छ भारत का इरादा, इरादा कर लिया हमने... देश से अपने वादा, ये वादा कर लिया हमने... स्वच्छ भारत अभियान का यह विज्ञापन प्रसून जोशी ने ही बनाया है। इसके अलावा पल्स पोलिया अभियान, कुपोषण के खिलाफ अभियान, महिला सशक्तिकरण जैसे कई सामाजिक विज्ञापन प्रसून जोशी ने बनाए हैं।

ससुराल गेंदा फूल

'ससुराल गेंदा फूल' गाना हो या 'मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां... यूं तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूं मैं मां... तुझे सब से पता... है ना मां...' जैसे बहुत ही हिट गाने भी उन्होंने ही लिखे हैं। प्रसून जोशी ने लज्जा, हम तुम, फनाह, रंग दे बसंती, तारे जमीन पर, ब्लैक, दिल्ली-6 जैसी फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं। रंग दे बसंती फिल्म के डायलॉग भी उनकी कलम से निकले और फिल्म भाग मिल्खा भाग की स्क्रिप्ट भी प्रसून ने ही लिखी।
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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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