यहां हुआ था श्री कृष्ण का सुदर्शन हथियाने वाले राक्षस का वध, जिसकी बेटी बनी कान्हा के घर की बहू

उत्तराखंड में एक ऐसा शहर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान विष्णु का कुर्मू (कच्छप) अवतार यहां हुआ था। इसी वजह से इस क्षेत्र को कुमाऊं कहा जाता है। इसी शहर में उस बाणासुर का किला भी है, जिसमें एक समय भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन को भी कब्जा लिया था।

बाणासुर का किला

भगवान श्रीकृष्ण का संबंध द्वापर युग से है। उनकी निशानियां और उनसे जुड़ी जगहें आज भी हमारे आसपास हैं। ऐसी ही एक जगह उत्तराखंड में भी है। जी हां, यह जगह उत्तराखंड के छोटे से शहर चंपावत के पास है। अगर आप यहां गए हैं या आपका उत्तराखंड से संबंध है तो आप इसके बारे में अच्छे से जानते होंगे। हम बात कर रहे हैं बाणासुर के किले की। बाणासुर का यह किला चंपावत जिला मुख्यालय से करीब 7 किमी दूर लोहाघाट में मौजूद है।

बाणासुर की याद में बनाया गया किलाबाणासुर का किला, द्वापर युग का नहीं बना है। बल्कि इसे मध्य काल में बनाया गया है। इसे वानासुर का किला के नाम से भी जाना जाता है। चंपावत में मौजूद इस किले से हिमालय का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। अगर आपको इतिहास में रुचि है या आप ऐतिहासिक धरोहरों पर जाकर उन्हें देखने का शौक रखते हैं तो आपको बाणासुर का किला देखने जरूर जाना चाहिए।

कौन था बाणासुरकहा जाता है बाणासुर एक राक्षस था, जिसके हजार हाथ थे। वह राक्षस राज बाली का सबसे बड़ा पुत्र था, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मुक्ति मिली। वह भगवान शिव का भक्त था। भगवान शिव ने ही बाणासुर के तप से खुश होकर उसे हजार हाथ का वरदान दिया था। भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। वह अपनी ताकत के मद में इतना चूर था कि एक दिन उसने भगवान शिव से ही उस शख्स का नाम बताने को कहा, जो उसे चुनौती दे सके। भगवान शिव ने उसे एक झंडा दिया और कहा कि इसे अपने किले पर फहरा दे, जिस दिन यह झंडा टूट जाए, समझ लेना तुम्हें चुनौती देने वाला आ गया।

यहां से दिखता है हिमालय का शानदार नजारा

बाणासुर की बेटी ऊषा की कहानीबाणासुर अपनी ताकत के नशे में चूर था, उसे अंदाजा ही नहीं हुआ कि उसकी बेटी ऊषा विवाह योग्य हो गई है। एक दिन ऊषा ने अपने सपने में एक राजकुमार को देखा और अपनी सहेली चित्रलेखा जो बाणासुर के मंत्री की बेटी थी को अपने मन की बात बताई। चित्रलेखा के पास ऐसी शक्तियां थीं कि वह सपनों में देखे व्यक्ति को भी पहचान सकती थी। चित्रलेखा ने ऊषा को बताया कि उसने सपने में जिसे देखा वह भगवान श्रीकृष्ण का पोता और द्वारका का राजकुमार अनिरुद्ध है। चित्रलेखा उसे उसके ही सपने से चुराकर ले आई और ऊषा के सामने खड़ा कर दिया। इन दोनों को ही एक-दूसरे से प्यार हो गया और वह साथ में रहने लगे।

ऊषा-अनिरुद्ध का विवाहएक दिन बाणासुर ने देखा कि उसके राज्य का झंडा टूटा हुआ है। बाणासुर ने तुरंत राज्य में अज्ञात व्यक्ति की खोज करने का आदेश दिया। इससे ऊषा और अनिरुद्ध के बारे में बाणासुर को पता चल गया। बाणासुर और अनिरुद्ध के बीच भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। जानकारी होने पर श्रीकृष्ण, बलराम और यादव सेना बाणासुर के खिलाफ मोर्चा लेने चल पड़ी। इसी बीच बाणासुर ने चतुराई से श्रीकृष्ण का सुदर्शन भी हथिया लिया था। लेकिन बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने बाणासुर का अंत किया। ऊषा और अनिरुद्ध का विवाह हुआ और ऊषा श्रीकृष्ण के घर की बहू बनी।

कहां पर है बाणासुर का किला?जैसा कि हमने ऊपर बताया, बाणासुर का किला चंपावत से करीब 7 किमी दूर लोहाघाट के पास कर्णरायत में है। यह समुद्रतल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर बना है। कर्णरायत से बाणासुर के किले तक लगभग डेढ़ किलोमीटर का ट्रैक है, जिसे पैदल पार करना पड़ता है। बाणासुर के किले में एंट्री बिल्कुल मुफ्त है।

यहां आकर आप स्वामी विवेकानंद का मायावती आश्रम देख सकते हैं। इसके अलावा लोहावती नदी, लोहाघाट, चंपावत में गोलू देवता का मंदिर, घटोत्कच का मंदिर और रीठा साहिब के दर्शन भी कर सकते हैं। बाणासुर का किला देखने की चाहत है तो लोहाघाट NH125 पर मौजूद है और दिल्ली, हलद्वानी, टनकपुर से यहां के लिए बसें मिल जाती हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर ही है।

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