Bhairav Garhi Temple:गढ़वाल के रक्षक के दर पर गए किरण रिजिजू, जानिए कहां है भैरवगढ़ी मंदिर और कैसे पहुंचें
Bhairavgarhi Temple: केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह पहाड़ की चढ़ाई चढ़ रहे हैं। यह वीडियो कब का है यह तो जानकारी नहीं है, लेकिन जहां वह गए हैं वह गढ़वाल के रक्षक का मंदिर है। जानिए इस मंदिर के बारे में सब कुछ -
पौड़ी के भैरवगढ़ी मंदिर पहुंचे किरेन रिजिजू
Bhairavgarhi Temple: जी हां, इस आर्टिकल में हम बात भैरवगढ़ी मंदिर (Bhairavgarhi Mandir) की ही कर रहे हैं। भैरव को काल भैरव के नाम से भी जाना जाता है। भैरवगढ़ी मंदिर पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) के बड़े पर्यटन स्थल लैंसडाउन से सड़क मार्ग से करीब 18 किमी दूर है, इसके बाद मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू होती है। इसी चढ़ाई को चढ़ते हुए किरण रिजिजू का वीडियो वायरल हो रहा है।
भैरवगढ़ी मंदिर गुमखाल (Bhairavgarhi Temple, Gumkhal) के पास कीर्तिखाल में है। पौड़ी के पहाड़ों में यह जगह दुगड्डा (Dugadda), पौड़ी, सतपुली (Satpuli) और लैंसडाउन से सड़क मार्ग से जुड़ी हुई है। सड़क किनारे ही मंदिर का प्रवेश द्वार है और यहां से मंदिर के लिए पूजा सामग्री भी मिल जाती है। भैरवगढ़ी का असली नाम लंगूरगढ़ है, जो लालूंग पर्वत की चोटी पर है और यहां के लोगों में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। भैरवगढ़ी में गढ़वाल के रक्षक भैरव का मंदिर है, जिन्हें भगवान शिव का 15वां अवतार माना जाता है। हर साल जून में यहां वार्षिक मेले का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
देखें किरण रिजिजू का वीडियो
भैरवगढ़ी मंदिर: मंडुवे के आटे का प्रसादमंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग की स्थापना की गई है, जहां श्रद्धालु बैठकर भजन-कीर्तन करते रहते हैं। कहा जाता है कि काल भैरव को काला रंग पसंद होता है, इसलिए यहां पर मडुवे यानी रागी के आटे का प्रसाद बनाया जाता है। यह प्रसाद थोड़ा कड़ा होता है और छोटे-छोटे नान की तरह शेप में बनाया जाता है, जिसे गढ़वाली में रोट कहा जाता है। साधक और पुजारी यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए आते हैं और माना जाता है कि मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहां चांदी का छत्र चढ़ाते हैं।
भैरवगढ़ी मंदिर: जब गोरखाओं ने की घेराबंदीगढ़वाल को 52 गढ़ों का देश कहा जाता है और माना जाता है कि सन 1791 में लंगूरगढ़ बहुत ही शक्तिशाली गढ़ था। उस समय नेपाल की गोरखा सेना ने इस पूरे क्षेत्र पर हमला करके बड़े भूभाग को अपने राज्य में शामिल कर लिया था। लंगूरगढ़ को जीतने के लिए गोरखा सेना ने दो साल तक इकी घेराबंदी करके रखी। आखिर लंबे संघर्ष के बाद गोरखाओं की हार हुई और वह लंगूरगढ़ को छोड़कर भाग गए।
भैरवगढ़ी मंदिर समुद्र तल से 1855 मीटर की ऊंचाई पर मंदिरभैरवगढ़ी मंदिर, भैरव की गुमटी पर बना है और इसके बाएं हिस्से में एक शक्तिकुंड भी है। इस क्षेत्र में जब भी किसी की शादी होती है तो नवविवाहित जोड़ा कुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के साथ यहां दर्शनों के लिए पहुंचता है। यह मंदिर समुद्रतल से करीब 1855 मीटर की ऊंचाई पर है।
भैरवगढ़ी मंदिर आलौकिक खूबसूरतीइतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां आसपास बर्फ से लदी पहाड़ियां आसानी से देखने को मिल जाती है। पर्यटकों को यहां से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत गहरी खाइयां मंत्रमुग्ध कर देती हैं। कुछ लोग तो यहां सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ लेने ही आते हैं और भैरवगढ़ी मंदिर में दर्शन करके पुण्य भी कमाकर जाते हैं। चारों तरफ फैली हरियाली और यहां का शांत वातावरण पर्यटकों को खूब लुभाता है।
भैरवगढ़ी मंदिर का रास्तामंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सड़क से पैदल चढ़ाई शुरू करनी होती है। सड़क से करीब 250 मीटर पक्के सीसी मार्ग चलने के बाद यहां एक वैष्णो देवी मंदिर है। इस रास्ते में धूप और बारिश से बचने के लिए शेड भी लगाई गई है। यहां से आगे बढ़ने पर कुछ ही दूर जाते ही पगडंडी की चौड़ाई कम हो जाती है और कुछ ही दूरी पर कच्चा मार्ग भी शुरू हो जाता है। इस डेढ़ किमी के रास्ते में शेड भी नहीं है, जो आपको धूप और बारिश से बचा सके। भैरवगढ़ी मंदिर से 200-250 मीटर पहले एकबार फिर शेड लगे हुए मिलते हैं, जो आपको चैन की सांस देते हैं। यहां रास्ता भी अच्छा बना हुआ है। सड़क से भैरवगढ़ी मंदिर तक की यह पूरी दूरी करीब 2 किमी की है, लेकिन बीच-बीच में कुछ शॉर्टकल भी हैं, जिनसे यह दूरी कुछ कम हो जाती है। लेकिन अगर आप पहाड़ों में चलने के अभ्यस्त नहीं हैं तो आपको शॉर्टकट रास्तों से बचना चाहिए। क्योंकि यहां न सिर्फ भटकने की आशंका रहती है, बल्कि पैर फिसलने की संभावना भी बनी रहती है।
भैरवगढ़ी मंदिर की यात्रा को लेकर कुछ FAQ
- भैरवगढ़ी मंदिर में क्यों जाएं - आपको धार्मिक यात्रां पसंद हैं, आप प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ लेना चाहते हैं, आपको शांत जगह की तलाश है तो आपको यहां जरूर जाना चाहिए, यहां पहुंचकर आपको मानसिक शांति और संतुष्टि मिलेगी। जून में वार्षिक मेला लगता है, आप चाहें तो उसमें शामिल हो सकते हैं।
- कब जाए भैरवगढ़ी मंदिर - इस मंदिर में दर्शनों के लिए आप कभी भी जा सकते हैं। लेकिन गर्मियों में यहां का ठंडा मौसम कई श्रद्धालुओं और प्रयटकों को यहां खींच लाता है। बारिश के मौसम में यहां की खूबसूरती अलग ही स्तर पर निखरकर सामने आती है, लेकिन यहां के ट्रैक पर चलते हुए आपके पैरों पर जोंक चिपकने का खतरा रहता है।
- कैसे पहुंचे भैरवगढ़ी मंदिर - मंदिर तक कैसे पहुंचना है ये तो हम आपको ऊपर बता चुके हैं। अन्य शहरों से सड़क मार्ग के जरिए यहां पहुंचा जा सकता है। लैंसडाउन से करीब 18 किमी दूर इस मंदिर तक जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है जो करीब 35 किमी दूर है और एयरपोर्ट देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है।
- ठहरने की व्यवस्था कहां होगी - कीर्तिखाल में जहां भैवरगढ़ी मंदिर है, यहां होटल की व्यवस्था नहीं है। हालांकि, यहां पर अब कुछ होमस्टे मिल सकते हैं। गुमखाल और लैंसडाउन में होटल मिल सकते हैं, जिनका किराया सीजन के हिसाब से तय होता है।
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