चैत्र नवरात्र 2023: उज्जैन शक्तिपीठ में विराजित हैं मां हरसिद्धी, जरासंध के वध से पहले श्रीकृष्ण ने किए थे मां के दर्शन, जानिए इस मंदिर का पौराणिक महत्व
Chaitra Navratri 2023: राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। मंदिर में दीप स्तंभों का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने से पहले मां हरसिद्धि की पूजा की थी। इसके बाद ही इस शक्तिपीठ का नाम हरसिद्धि प्रचलित हुआ। शारदीय व चैत्र प्रतिपदा के नवरात्रों के दौरान मां के दर पर आराधकों की भीड़ लगती है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन में है मां हरसिद्धि का पौराणिक मंदिर (फाइल फोटो)
- जरासंध के वध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने की थी मां की पूजा
- राजा विक्रमादित्य की कुल देवी थी मां हरसिद्धी
- उज्जैन में गिरी थी माता रानी की कोहनी
Chaitra Navratri 2023: माता रानी के 51 शक्तिपीठों में से एक चमत्कारी शक्तिपीठ मध्य प्रदेश के उज्जैन में है। इस मंदिर की मान्यता है की यहां मौजूद दो दीप स्तंभों पर दीपक जलाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। पौराणिक इतिहास के जानकारों के मुताबिक, मंदिर में दीप स्तंभों का निर्माण उस समय राजा विक्रमादित्य ने करवाया था।
अब इस हिसाब से अंदाज लगाया जाए तो ये दीप स्तंभ दो हजार वर्ष से भी प्राचीन हैं। ऐसा इसलिए है कि, राजा विक्रमादित्य का इतिहास भी करीब 2 हजार सालों से भी पुराना है। पुराणों में मौजूद उल्लेख के मुताबिक, इस जगह पर देवी सती की कोहनी गिरी थी। दोनों स्तंभ करीब 51 फीट ऊंचे हैं व दोनों एक हजार 11 दीपों से रोशन होते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं इस पौराणिक शक्तिपीठ के बारे में ।
श्रीकृष्ण ने की थी मां की पूजा देश के 51 शक्तिपीठों में से एक मोक्ष दायिनी मां शिप्रा के तट पर स्थित है उज्जैन में हरसिद्धि माता मंदिर। हरसिद्धि माता उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं। मंदिर को लेकर किवंदती प्रचलित है कि, माता दिन में गुजरात और रात्रि में बाबा महाकाल की अवंतिका नगरी में निवास करती हैं। पुराणों में मौजूद उल्लेखों के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने से पहले मां हरसिद्धि की पूजा की थी। इसके बाद ही इस शक्तिपीठ का नाम हरसिद्धि प्रचलित हुआ।
राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं मां हरसिद्धीइतिहासविदों के मुताबिक, उज्जैन नगरी के राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। बताया जाता है कि, हर 12 साल में एक बार वे अपना शीश काट कर माता रानी के चरणों में अर्पित करते थे। हर बार मां की कृपा से उनका शीश पुनः धड़ से जुड़ जाता था। बारहवीं बार जब राजा विक्रमादित्य ने अपना शीश मां के चरणों में भेंट चढ़ाया तो वह वापस धड़ से नहीं जुड़ा और उनका जीवन काल खत्म हो गया। मां हरसिद्धि के मंदिर में एक कोने में आज भी 11 सिंदूर लगे रुण्ड पड़े हैं। कहते हैं ये राजा विक्रमादित्य के कटे मुण्ड हैं।
नवरात्री में जुटती है भक्तों की भीड़हरसिद्धि मंदिर में वैसे तो हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है। बाबा महाकाल के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालु मां हरसिद्धि के दर्शन भी करते हैं। मगर, शारदीय व चैत्र प्रतिपदा के नवरात्रों के दौरान मां के दर पर आराधकों की भीड़ लगती है। नवरात्रि के अवसर पर मंदिर में कई धार्मिक आयोजन होते हैं। रात्रि कीे आरती के समय यहां का वातावरण उल्लास मय होता है। यह मंदिर बाबा महाकाल के मंदिर से कुछ ही दुरी पर स्थित हैं। भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर में विशेष तिथियों पर भी पूजन करवाते हैं।
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