कैसे पड़ा भोपाल का नाम, जानें राजा भोज से नवाबों और आधुनिक युग तक की पूरी कहानी
भोपाल शहर आज देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्य प्रदेश की राजधानी है। लेकिन एक समय यह स्वतंत्र राज्य था। राजा भोज की बसाई इस नगरी में लंबे समय तक नवाबों का राज रहा। आजादी के समय भारत के साथ विलय संधि करने वाला भोपाल अंतिम राज्य था। चलिए जानते हैं भोपाल का पूरा इतिहास -
भोपाल शहर की पूरी दास्तां
इसमें कोई शक नहीं कि हिंदुस्तान का दिल मध्य प्रदेश है और मध्य प्रदेश का दिल उसकी राजधानी भोपाल। भोपाल को उसकी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। भोपाल को उसके तालाबों के लिए जाना जाता है और भोपाल को जाना जाता है वहां के शुद्ध वातावरण के लिए। हालांकि, भोपाल के दामन पर 1984 के गैस त्रासदी के दाग भी हैं, जिसमें करीब साढ़े पांच हजार लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन भोपाल उस दौर से बहुत आगे निकल आया है। भोपाल के नामकरण से लेकर नवाबों के शासन और आधुनिक युग तक मेरा शहर और उसका इतिहास में जानें पूरी कहानी।
कैसे पड़ा भोपाल का नाम
भोपाल शहर का नाम ही उसके नामकरण के इतिहास को बताता है। इस शहर की स्थापना 11वीं सदी में मालवा के प्रसिद्ध राजा रहे राजा भोज ने की थी। राजा भोज का अपने समय के प्रसिद्ध राजाओं और राजसत्ताओं के साथ सत्ता संघर्ष भी चलता रहता था। इसमें चालुक्य, चंदेल और कलचुरी जैसे राजवंश शामिल थे। राजा भोज ने अपने राज्य के पूर्वी बॉर्डर को सुरक्षित करने के लिए यहां एक बांध यानी पाल बनाया। इस बांध के बनने से शहर का बड़ा तालाब यानी अपर लेक बनी। इसके बाद राजा भोज ने यहां किला बनाया और शहर की नींव रखी। राजा भोज ने यहां पाल यानी बांध बनाया था, इसलिए शहर का नाम भोजपाल रखा गया। बाद के समय में भोजपाल शहर को भोपाल कहा जाने लगा। 1908 के इंपीरियल गैजेटियर में भी भोपाल का नाम पूर्व में भोजपाल होने का जिक्र है।
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अल्तमश के साथ मुस्लिम शासकों की घुसपैठ
राजा भोज ने यहां बांथ बनाकर बहुत बड़े ताल की नींव रखी थी। हालांकि, अब उस ताल का एक छोटा सा हिस्सा ही मौजूद है, जिसे बड़ा तालाब कहा जाता है। भोपाल के बड़े तालाब के बारे में कभी कहावत थी, 'तालों में ताल भोपाल ताल, बाकी सब तल्लैया'। भोपाल का ज्यादा पुराना इतिहास नहीं मिलता है। मालवा के राजपूतों से इस शहर का इतिहास मौजूद है। अल्तमश के आक्रमण के साथ मालवा क्षेत्र में मुसलमानों की घुसपैठ शुरू हुई और वह भोपाल भी आए। साल 1401 में दिलावर खान गोरी ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। दिलावर खान गोरी ने भोपाल नहीं, धार को अपनी राजधानी बनाया और उसके बाद उसके बेटे ने यहां राज किया।
14वीं सदी की शुरुआत में गोंड योद्धा यादोराम ने यहां गोंड साम्राज्य की स्थापना की और गढ़ मंडला को अपने राज्य का मुख्यालय बनाया। गोंड राजवंश में कई शक्तिशाली राजा हुए, जिनमें मदन शाह, गोरखदास, अर्जुनदास और संग्राम शाह प्रमुख थे। मालवा में मुगलों के आक्रमण के दौरान भोपाल पर गोंड साम्राज्य का कब्जा था। इन क्षेत्रों को चकला कहा जाता था, जिसमें चकला गिन्नौर में 750 गांव थे और भोपाल भी इसका हिस्सा था। गोंड राजा निजाम शाह इस क्षेत्र के शासक थे।
निजाम शाह की मौत
निजाम शाह को चैन शाह ने जहर देकर मार दिया। निजाम शाह की विधवा कमलावती और बेटा नवल शाह उनके निधन के बाद असहाय हो गए। तब नवल शाह बहुत छोटे थे। रानी कमलावती ने दोस्त खान के साथ एक समझौता किया, लेकिन दोस्त मोहम्मद खान एक चतुर और चालाक अफगान सरदार था। उसने धीरे-धीरे छोटी-छोटी रियासतों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। रानी कमलावती की मृत्यु के बाद उसने गिन्नौर के किले पर भी कब्जा कर लिया। उसने विद्रोहियों पर लगाई लगाई और अन्य लोगों को उनके नियंत्रण के हिसाब से अनुदान भी दिया।
भोपाल बना राज्य
दोस्त खान ने विश्वासघात और छल के जरिए देवड़ा राजपूतों को नष्ट कर दिया। उन्हें मारकर नदी में बहा दिया गया, तब से ही उस नदी को हलाली कहा जाने लगा। इसके बाद वह अपनी राजधानी इस्लामियानगर ले गया और यहां एक किला बनवाया। 66 साल की उम्र में साल 1726 में दोस्त मोहम्मद खान की मौत हुई। इस समय तक उसने भोपाल राज्य का निर्माण कर लिया था और उसे एक मजबूत आधार दे दिया था। दोस्त मोहम्मद खान ने साल 1722 में भोपाल को अपनी राजधानी बनाने का फैसला किया था। हालांकि, 1726 में उसकी मौत के बाद उसके उत्तराधिकारी यार मोहम्मद खान इस्लामनगर वापस चले गया।
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यार मोहम्मद खान का मराठों से युद्ध हुआ, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। यार मोहम्मद ने मराठों को काफी धन दिया और संधि करने की कोशिश की, ताकि उसका राज्य बर्बाद न हो। साल 1742 में उसका निधन हुआ और उसे इस्लामनगर में दफनाया गया। दीवान बिजय राम की मदद से यार मोहम्मद के निधन के बाद उसका बड़ा बेटा फैज मोहम्मद खान सत्ता पर काबिज हुआ। उसने भोपाल पर भी कब्जा किया। 1745 में पेशवाओं ने भोपाल पर हमला कर दिया और सेहोर सहित कई इलाकों पर कब्जा कर लिया। फैज मोहम्मद खान की कोई संतान नहीं थी, 1777 में उसकी मौत के बाद उसका भाई हयात मोहम्मद खान सत्ता पर काबिज हुआ। लेकिन फैज मोहम्मद की विधवा बेगम सलाहा सत्ता अपने हाथ में लेना चाहती थी और दोनों के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। इस सत्ता संघर्ष में हयात मोहम्मद खान नवाब बनकर सामने आए। इस बीच अंग्रेजों के भारत में कदम पड़ चुके थे और ईस्ट इंडिया कंपनी भोपाल की तरफ बढ़ी। हयात मोहम्मद खान ने उनके साथ अच्छे संबंध स्थापित लिए।
पुल पुख्ता की कहानी
छोटा खान को हयात मोहम्मद खान के दरबार में दीवान बनाया गया। फंदा की लड़ाई में नवाब को काफी नुकसान हुआ और छोटा खान भी मारा गया। बता दें कि छोटा खान ने ही लोअर लेक (छोटी झील) पर बांध तक पत्थरों का पुल बनाया था, जिसे पुल पुख्ता नाम से जाना जाता है। नवाब हयात मोहम्मद खान का 10 नवंबर 1808 में निधन हो गया और उसके निधन के बाद उसका बेटा गौस मोहम्मद खान नवाब बना। बाद में नजर मोहम्मद खान ने सत्ता संभाली और 1816 से 1819 तक शासन किया। उसने अंग्रेजों के साथ संधि की, जिसके अनुसार अंग्रेजों ने भोपाल को बाहरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा की गारंटी दी। नजर मोहम्मद खान की एक एक्सीडेंट की वजह से 1819 में मौत हो गई और उसकी बीवी गौहर बेगम ने सत्ता अपने हाथ में ले ली।
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1837 में नवाब जहांगीर मोहम्मद खान सत्ता में आया और उसने जहांगीराबाद नाम से नया इलाका बसाया। सिकंदर बेगम से नवाब के रिश्ते खराब हुए तो वह इस्लामनगर चली गईं और वहां शाह जहां बेगम को जन्म दिया। बाद में सिकंदर बेगम सत्ता पर काबिज हुईं। सिकंदर बेगम के निधन के बाद शाह जहां बेगम ने भोपाल की बागडोर संभाली। उन्होंने राज्य के कल्याण के लिए अच्छे काम किए। उनके निधन के बाद उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम शासक बन गई और उन्होंने अहमद अली खान से विवाह किया, जिसे वजीरुद दौला की उपाधि दी गई थी। 4 जनवरी 1902 को हार्ट अटैक के कारण अहमद अली का निधन हो गया।
सुल्ताना जहां बेगम के अच्छे काम
सुल्तान जहां बेगम के शासन के दौरान भोपाल में कई बिल्डिंगें बनीं। उनके शासन के दौरान ही सुल्ताना गर्ल्स स्कूल और अलेजेंड्रिया नोबल स्कूल (अब हमीदिया हाई स्कूल) की स्थापना हुई। 1926 में नवाब हमीदुल्ला खान ने सत्ता संभाली और वह दो बार (1931-32 और 1944-47) चांस्लर ऑफ द चैंबर ऑफ प्रिंसेस चुने गए। देश की आजादी की योजना की घोषणा के साथ 1947 में नवाब ने प्रिंसेस के चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और भोपाल अंतिम राज्य था, जिसने भारत में शामिल होने की संधि पर हस्ताक्षर किए। 1 मई 1949 को भोपाल भारत का राज्य बन गया। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र से आए शरणार्थियों को भोपाल के पश्चिमी इलाके बैरागढ़ में बसाया गया।
शहरयार खान और सैफ अली खान की जड़ें भोपाल में
नवाब हमीदुल्ला खान की बेटी आबिदा सुल्तान ने 1950 में पाकिस्तान जाने का फैसला किया। वह पाकिस्तान की विदेश सेवा में शामिल हो गई। इसलिए भारत सरकार ने उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा को नवाब का उत्तराधिकारी स्वीकार किया। जब आबिदा पाकिस्तान गई, उस समय वह 37 साल की थीं और उनका एक बेटा भी था। उनके बेटे का नाम शहरयार खान था, जो पाकिस्तान के विदेश सचिव बने और बाद में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। पटौदी के अंतिम नवाब इफ्तिखार अली खान ने नवाब की छोटी बेटी बेगम साजिदा से विवाद किया। 1995 में बेगम साजिदा के निधन के बाद उनके इकलौते बेटे मंसूर अली खान जिन्हें पटौदी के नवाब कहा जाता था, वह भोपाल शाही परिवार के मुखिया बन गए। उन्हीं मंसूर अली खान के बेटे सैफ अली खान बॉलीवुड में बड़े एक्टर हैं।
आज का भोपाल
आज भोपाल में कई छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाईयां मौजूद हैं। यह शहर मध्य प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र भी है। यहां पर इसरो की मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी मौजूद है। यहां कई बड़े-बड़े सरकारी संस्थान भी हैं। देश के पहले 20 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में भोपाल का नाम भी शामिल रहा है। भोपाल को साल 2017, 2018 और 2019 में लगातार तीन साल सबसे साफ राजधानी चुना गया। साल 2023 में भी इस शहर को सबसे स्वच्छ राज्य राजधानी चुना गया।
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